The Fiddler
Herman Melville
एक वायलिन वादक (भाग-2)
मैं महसूस कर रहा था, जिस अवसाद और तनाव से परेशान होकर मैं घर से निकला था वह तनाव अब उङन छू हो गया था। मैंने थियेटर में चारों तरफ निगाह डाली, हर तरफ उल्लास बिखरा हुआ था। तालियों की गङगङाहट थी, हंसी के फव्वारे थे। ये जोकर सिर्फ खुशियाँ बिखेर रहे थे। क्यों और कैसे कर रहे थे?
फिर मेरे सामने मेरी पंक्तियाँ घूमने लगी थी, जिसमें युद्ध की विध्वंसता को न्यायिक बताने की कोशिश की गई थी। मैं तो जैसे उस सर्कस के घेरे से बाहर ही निकल आया था।
अब मैं सिर्फ अपनी कविता में मौजूद दुख और कष्ट को देख रहा था और मैं उस पर अपनी प्रशंसा की चाहत को लेकर दुविधा में भी था।जिस तरह यहाँ विदूषक के लिए तालियां बज रही हैं वैसी ही प्रशंसा के लिए मेरी चाहत को, लोग मेरा पागलपन कहेंगे और मेरे लिए यह उनकी संवेदनहीनता है। शायद यह दोनों ही बातें सही हैं ।
पर मैं क्यों जोकर के प्रशंसकों की प्रशंसा चाहता हूं ?
यह शायद किसी ऐसे विद्वान के समान है जिसकी विदूषक के चुटकले पर इस तरह प्रतिक्रिया आएगी कि, जब चुटकले पर लोग हंस रहे होंगे और तालियों का शोर होगा, तब वह अपने मित्र से फुसफुसा कर कह रहा होगा कि कितनी मूर्खतापूर्ण बात विदुषक ने कही है!
मैंने फिर ऑडिटोरियम पर नज़रें डाली, हाॅटबाॅय का जादू चारों ओर बिखरा था। पर मैं ही अब अपने को अपमानित समझ रहा था। मेरा असहनीय घमंड टूट रहा था।
लग रहा था जैसे मैं आलोचनाओं से घिरा हूँ । हाॅटबाॅय ने अपने हाथ हिलाए और उस विदूषक के चुटकले पर किलकारी भरी आवाज़ निकाली।उसकी प्रसन्नता मेरे लिए जैसे मेरा प्रतिकार था।
शो के बाद हम टैलर के स्टाॅल पर बैठे थे। मैं हाॅटबाॅय के सामने बैठा था। उसके चेहरे पर शो की सफलता की खुशी झलक रही थी पर यह उसकी दिनचर्या का भाग है, अतः चेहरे पर शांति भी थी ।
उसमें बुद्धिमत्ता और विनोदपटुता का सम्मिश्रण था। मैं उन दोनों की बातचीत सुन रहा था, बहुत कम बोल रहा था। मैं हाॅटबाॅय की बातों से प्रभावित हो रहा था। उसकी बातचीत में उत्साह था। उसकी नज़र में दुनिया सुंदर थी। वे विभिन्न विषयों पर बात कर रहे थे। उसकी अपनी निजी धारणाएँ थी।
उसका दुनिया देखने का अपना एक नज़रिया था। वह जीवन में खुशी ढूंढ लेता था। वह जीवन के अंधेरों और उजालों से परिचित था। उसका हास्य उसकी किसी कमी के कारण नहीं उपजा था, यह उसके व्यक्तित्व की एक पहचान थी।
क्रमशः