विश्व  प्रसिद्ध  कहानियां (भाग -21)

The Fiddler

Herman Melville

एक वायलिन वादक (भाग-2)

मैं महसूस कर रहा था, जिस अवसाद और तनाव से परेशान होकर मैं घर से निकला था वह तनाव अब उङन छू हो गया था। मैंने थियेटर में  चारों तरफ निगाह डाली, हर तरफ उल्लास बिखरा हुआ था। तालियों  की गङगङाहट  थी, हंसी के फव्वारे थे। ये जोकर सिर्फ खुशियाँ बिखेर रहे थे। क्यों और कैसे कर रहे थे?


फिर मेरे सामने मेरी पंक्तियाँ घूमने लगी थी, जिसमें युद्ध की विध्वंसता को न्यायिक बताने की कोशिश की गई थी। मैं तो जैसे उस सर्कस के घेरे से बाहर ही निकल आया था।

अब मैं सिर्फ अपनी कविता में मौजूद दुख और कष्ट को देख रहा था और  मैं उस पर अपनी प्रशंसा की चाहत को लेकर दुविधा में भी था।जिस तरह यहाँ विदूषक के  लिए तालियां बज रही हैं वैसी ही प्रशंसा  के लिए मेरी चाहत को, लोग मेरा पागलपन कहेंगे और मेरे लिए यह उनकी संवेदनहीनता है। शायद यह दोनों ही बातें  सही हैं  ।

पर मैं क्यों जोकर के प्रशंसकों की प्रशंसा चाहता हूं ?
यह शायद  किसी ऐसे विद्वान के समान है जिसकी विदूषक के चुटकले पर इस तरह प्रतिक्रिया आएगी कि, जब चुटकले पर लोग हंस रहे होंगे और तालियों का शोर होगा, तब वह अपने मित्र  से फुसफुसा  कर कह रहा होगा कि कितनी मूर्खतापूर्ण  बात विदुषक ने कही है!



मैंने फिर ऑडिटोरियम  पर नज़रें डाली, हाॅटबाॅय का जादू चारों ओर बिखरा था। पर मैं ही अब अपने को अपमानित  समझ रहा था। मेरा असहनीय घमंड टूट रहा था।

लग रहा था जैसे मैं आलोचनाओं से घिरा हूँ । हाॅटबाॅय ने अपने हाथ हिलाए और उस विदूषक के चुटकले पर किलकारी भरी आवाज़ निकाली।उसकी प्रसन्नता मेरे लिए जैसे मेरा प्रतिकार था।


शो के बाद हम टैलर के स्टाॅल पर बैठे थे। मैं हाॅटबाॅय  के सामने बैठा था। उसके चेहरे पर शो की सफलता की खुशी झलक रही थी पर यह उसकी दिनचर्या का भाग है, अतः चेहरे पर शांति भी थी ।


उसमें बुद्धिमत्ता और विनोदपटुता का सम्मिश्रण  था। मैं उन दोनों की बातचीत सुन रहा था, बहुत कम बोल रहा था। मैं हाॅटबाॅय की बातों से प्रभावित हो रहा था। उसकी बातचीत में उत्साह था। उसकी नज़र में दुनिया सुंदर थी। वे विभिन्न  विषयों पर बात कर रहे थे। उसकी अपनी निजी धारणाएँ थी।

उसका दुनिया देखने का अपना एक नज़रिया था। वह जीवन में खुशी ढूंढ  लेता था। वह जीवन के अंधेरों और उजालों से परिचित था। उसका हास्य उसकी किसी कमी के कारण नहीं उपजा था, यह उसके व्यक्तित्व की एक पहचान  थी।

क्रमशः

Advertisement

विश्व प्रसिद्ध कहानियां (भाग -20)

The Fiddler

Herman Melville

हरमन मेलविल एक अमेरिकी उपन्यासकार, लघुकथाकार और अमेरिकी पुनजार्गरण काल के कवि थे।

एक वायलिन वादक

तो अब मेरी कविता शापित कर दी गई है, मेरा यश धूमिल हो गया है। अब मैं अस्तित्वहीन हूँ, एक असहनीय भाग्य!

मैं सभी आलोचनाओं और प्रतिकारों से मुक्त होने के लिए बाहर मुख्य सङक पर निकल आया। सङक के एक कोने में कुछ दिन से एक सर्कस लगा हुआ है। लोगों की उत्साही भीड़ उसी सर्कस की ओर बढ़ रही है। सर्कस का मुख्य आकर्षण उनका एक प्रधान विदूषक है। लोग उसी की करामातें देखने को बेताब हैं ।

मैं अभी निकला ही था कि मेरे परममित्र स्टैंडर्ड ने मुझे आवाज़ लगाई ।
” हैल्मस्टोन, मेरे दोस्त, अच्छे मिले, पर क्या मसला है? कोई हत्या का मामला है क्या! जिसमें न्याय नहीं मिला हो, बहुत परेशान दिख रहे हो?”

“तुमने देखा?” मेरा प्रश्न स्वाभाविक रूप से अपनी कविता की आलोचना से संबंधित ही था।
” ओह! हाँ , सुबह की, उसकी प्रस्तुति देखी थी, कमाल का जोकर है। लेकिन यह तो यहीं है, ‘ हाॅटबाॅय। हाॅटबाॅय, इनसे मिलो, यह हैल्मस्टोन हैं।


मुझे तुरंत अपने अनुपयुक्त प्रश्न की गलती का अहसास हो गया था। जब मैंने देखा कि अचानक मेरा किसी से परिचय कराया जा रहा था ।

वह व्यक्ति छोटे कद का एक प्राणी था, उत्साह से भरपूर, ग्रामीण व्यक्तित्व, चेहरे पर भूरी, गंभीर , प्रसन्नता का भाव लिए आँखें , उसके बाल उसकी आयु का सही परिचय दे रहें थे। दिखने में बहुत छोटा व्यक्ति, आयु में अनुमानतः 40 वर्ष तो होना ही चाहिए ।

हाॅटबाॅय बहुत ही प्रसन्नचित्त आवाज में बोला, ” क्या तुम सर्कस जा रहे हो? चलो, हैल्मस्टोन आप भी चलो। मैं सर्कस के बाद आप दोनों को टैलर की बढ़िया चाट खिलाता हूँ ।

हाॅटबाॅय के व्यवहार में उपस्थित सद्भाव, शालीनता और बातचीत में वाकपटुता ने मेरा दिल जीत लिया था। उसके ह्रदय की सरलता से कोई भी अछूता नहीं रह सकता था।

सर्कस में करामातें देखते हुए मेरी नजरें मुख्य प्रसिद्ध विदूषक की अपेक्षा हाॅटबाॅय की ओर ही टिकी थी, उसकी प्रस्तुतियां सहज ही चेहरे में मुस्कान लाती थीं और मेरे मन में उल्लास भर रही थी। विदूषक के चुटकुलों को वह अत्यंत सहजता से अपनी मुद्राओं द्वारा अभिनीत करता कि वे दर्शकों को अचंभित तो करते ही पर हंसने पर भी मजबूर कर देते थे ।

वह अपने हाथ- पैरों को मोङकर तेजी से हमारी ओर पलटता और हम दोनों पर दृष्टि डालता। यह सब मुझे प्रभावित कर रहा था।

उसकी चुस्ती-फुर्ती देखकर कोई उसे 40 वर्ष का नहीं कह सकता था। मंच पर वह सिर्फ 12 वर्षीय बालक प्रतीत हो रहा था। उसके क्रियाकलापों में मासूमियत के साथ गरिमापूर्ण शालीनता थी, उस सरलता को देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे ग्रीस के भगवान् का बालरूप मंच में घूम रहा हो। उसकी प्रत्येक प्रस्तुति मेरे अंत:स्थल पर गहरा प्रभाव छोङ रही थी।

क्रमशः

विश्व प्रसिद्ध कहानियां (भाग -19)

MY FINANCIAL CAREER
STEPHEN LEACOCK

मेरा वित्तीय रोजगार (अंतिम भाग)

मैं फिर बोला,” नहीं, मैं कोई जासूस नहीं हूँ , मैं आपके बैंक में एक खाता खोलना चाहता हूँ और अपनी समस्त धनराशि उसमें जमा करना चाहता हूँ ।”


मेरे यह कहने के साथ ही वह थोङा गंभीर हो गया, अब उसने मुझे एक बहुत बङा धनवान व्यक्ति समझा होगा , संभवतः बैरिन रूथचिल्ड की कोई संतान ही समझा हो।
वह बोला,” एक बङा खाता
एक बहुत बङी धन राशि ?”

मैं धीरे से उसके करीब होकर फुसफुसाया,” मैं अभी छप्पन डॉलर खाते में डालूंगा , फिर प्रत्येक माह पचास डाॅलर इसमें जमा करता रहूँगा।”

यह सुनते ही मैनेजर उठा और कमरे का दरवाज़ा खोला और एक क्लर्क को बुलाकर कहा,” श्रीमान माॅनटगोमरी , यह महोदय , अपना खाता खोलना चाहते हैं , जिसमें वह छप्पन डाॅलर जमा करेंगे ।”

मुझे देखकर कहा, “नमस्ते”। मैं भी नमस्ते कहकर खङा हो गया, मैं बाहर की ओर बढ़ने लगा, उसने शांत रहते हुए, मुझे बाहर का रास्ता दिखाया ।

मैं क्लर्क के साथ गया और उसे अपनी समस्त धन राशि, छप्पन डाॅलर खाते में डालने के लिए दे दिए। उस धन राशि को देते हुए मेरे दिल की हालत ऐसी थी जैसे अपने किसी प्रियजन से दूर होते समय होती है।

जब समस्त औपचारिकताएं और प्रक्रियाएं पूरी हो गई तब मुझे ध्यान आया मैंने समस्त धनराशि तो जमा कर दी, पर अपने वर्तमान खर्चों के लिए तो कुछ रखा ही नहीं है।

मैंने सोचा, छः डॉलर निकाल लेता हूँ । अपनी यह इच्छा मैंने क्लर्क के सामने प्रकट की, तो तुरंत एक क्लर्क चेकबुक ले आया और एक ने मुझे बताया कि मुझे कहां, क्या लिखना है।
वे सब मुझे एक करोड़पति ही समझ रहे थे, पर इस समय मेरी मानसिक दशा अस्वस्थ है, ऐसा उन्होंने मान लिया था।


मैं बहुत घबराया हुआ था । चेक में सब लिख कर मैंने क्लर्क को पकङा दिया। वह चेक को देखकर आश्चर्य से बोला, ” आप फिर अपनी समस्त राशि निकाल रहे हैं ?” उसके ऐसा कहते ही वहां बैठे सब लोग मुझे देखने लगे।

उसने पैसे निकाल कर देने से पहले पूछा,” आपको पैसे किस तरह चाहिए ?”
मैं बहुत घबरा रहा था, उसका प्रश्न नहीं समझ सका।
उसने प्रश्न दोहराया, ” आपको पैसा किस रूप में चाहिए?


मैं उसके प्रश्न का अभिप्राय समझकर बोला, “50 डॉलर नोट”
उसने मुझे एक 50 डॉलर का नोट पकङा दिया ।
फिर उसने पूछा, “और 6 डॉलर?”
मैंने जवाब दिया , “6 डॉलर नोटस” उसने मुझे 6 डॉलर दे दिये ।

मैं पैसे लेकर तेजी से बैंक से बाहर निकल गया । बैंक का बङा दरवाजा बंद होते ही, एक जोरदार ठहाके की आवाज़ बैंक की छत को फाङकर बाहर तक आ रही थी।


उसके बाद मैं कभी बैंक नहीं गया था। अपने खर्चे की रकम जेब में रखता और ज़मा राशि एक मोजे में चांदी के डाॅलर के रूप में रखता था ।

विश्व प्रसिद्ध कहानियां भाग-18

MY FINANCIAL CAREER
STEPHEN LEACOCK

मेरा वित्तीय रोजगार

मेरा वेतन 50 डॉलर प्रति माह बढ़ाया गया था। मैं इस बढ़ी हुई राशि को,बचत के रूप में सुरक्षित रखना चाहता था। अतः इसके लिए बैंक से सुरक्षित कोई स्थान नहीं हो सकता, ऐसा विचार कर मैंने एक बैंक के अंदर प्रवेश किया।

सबसे पहले मैंने बैंक के क्लर्कों पर निगाह दौङाई, फिर एक क्लर्क से मैंने पूछा, ” मैनेजर साहब कहाँ है? मैं उनसे एकांत में मिलना चाहता हूँ ।”

मैं नहीं जानता कि मैंने एकांत शब्द का प्रयोग क्यों किया था। पर मैं यह मानता था कि बैंक में खाता खोलने के लिए, उसमें पैसा जमा करने के लिए हमें बैंक मैनेजर से मिलना चाहिए।

वह क्लर्क मुझे मैनेजर के पास ले गया। उस समय मेरी जेब में छप्पन डॉलर ही थे। मैनेजर से मिलते हुए मैंने पूछा,” आप ही मैनेजर हैं ? ” यकिन मानिए यह प्रश्न किसी संदेह के कारण नहीं पूछा गया था।

मैनेजर एक शांत और समझदार व्यक्ति था, उसने जवाब दिया,” हां, मैं मैनेजर हूं ।”
मैंने कहा, ” मैं आपसे एकांत में बात करना चाहता हूँ ।” मैंने फिर एकांत शब्द का प्रयोग बिना सोचे किया, शायद अपना वाक्यांश इसी शब्द के साथ पूर्ण लगता है।

मैनेजर मुझे एक अलग कमरे में ले गया।
उस कमरे में हम दोनों के अतिरिक्त कोई नहीं था।
वह बोला, ” कहिए, यहाँ कोई नहीं आएगा,” आप इत्मीनान से अपनी बात कह सकते हैं ।”
मेरे पास जैसे कुछ कहने के लिए शब्द ही खो गए थे। हम दो मिनट तक एक-दूसरे को देख रहे थे।

फिर वह बोला,” आप शायद पिंकरटरस के एक जासूस हैं ।” यह कहने के साथ उसके माथे पर चिंता की रेखाएं नज़र आने लगी थी। मेरी आँखों के भाव, से, उसको चुपचाप ताकने से और कुछ न बोलने से ,उसने मुझे जासूस समझ लिया था।
मैं फिर बोला,” नहीं, मैं कोई जासूस नहीं हूँ , मैं आपके बैंक में एक खाता खोलना चाहता हूँ और अपनी समस्त धनराशि उसमें जमा करना चाहता हूँ ।”

क्रमशः

विश्व प्रसिद्ध कहानियां (भाग-17)

THE BLIND MAN

D.H. LAWRENCE

नेत्रहीन व्यक्ति ( सूरदास )(अंतिम भाग)

बैरटी ने फिर कहा,” मैंने यहाँ ग्रेंज आकर तुम दोनों को परेशान कर दिया।”
” नहीं , बिलकुल नहीं, अपितु मैं खुश हूँ कि इसाबेल को बात करने के लिए एक साथी मिला, तुम तो जानते ही हो कि मैं तो मितभाषी हूँ। इसाबेल खुश है न! क्या ख्याल है?”

“नहीं, वह खुश नहीं हैं । वह तुम्हारे कारण परेशान है।”
” मेरे कारण ? क्यों ? वह क्या कहती है?”
“वह कहती है वह संतुष्ट है, सिर्फ उसे तुम्हारी चिंता है, शायद वह डरती हो कि तुम परेशान न हो जाओ। “

” नहीं, उसे मुझ से डरना नहीं चाहिए। मुझे लगता है, मैं उस पर अनचाहा बोझ बन गया हूं , जिसके लिए उसे शर्मिंदा होना पङता है” माॅरिस ने सोचते हुए कहा।

नहीं, तुम्हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए।” यह कहते हुए बैरटी को भी भय हो रहा था।
” मुझे तो कई बार लगता है जैसे मेरे कारण उसकी जिंदगी भी रूक गई है।”

फिर उसने सवाल किया, “अच्छा, सच- सच बताना मेरे चेहरे पर चोट का निशान बहुत बीभत्स है क्या?”
” चोट का निशान तो है, पर चेहरे को डरावना नहीं बनाता, लेकिन थोङा खराब तो लगता है” बैरटी ने जवाब दिया।
” थोड़ा खराब ! कई बार मुझे लगता है, अब मैं बदसूरत हो गया हूँ ।
मैं तुम्हें ठीक से नहीं जानता।” माॅरिस बोला।

“कह नहीं सकता।”
” अगर तुम बुरा न मानों तो क्या मैं तुम्हें छू सकता हूं ?” माॅरिस ने झिझकते हुए कहा ।
बैरटी के अंदर भय की लहर दौड़ गई, फिर भी उसने कहा,” नहीं, बुरा क्यों मानूंगा ।”

माॅरिस सीधा हुआ और अपना हाथ आगे बढ़ाया जो गलती से बैरटी के सिर पर लगा, बोला,” मैंने सोचा, तुम लंबे हो।”

फिर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए, उसकी खोपड़ी को महसूस करते हुये, अपने हाथ से बैरटी‌ के चेहरे को टटोलने लगा, माथा, बंद आँखे, नाक, ठोङी, गर्दन और हाथ भी, उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोला, “तुम तो बहुत युवा लगते हो।”

बैरटी कुछ नहीं बोला। माॅरिस ने उसके हाथों को अपनी आंखों पर रखते हुये कहा,” क्या मेरी आँखों को छुओगे, मेरी चोट के निशान को?”

बैरटी तो जैसे पूर्णतः उसकी गिरफ्त में था। उसके हाथ उसके घाव के निशान पर थे कि अचानक माॅरिस ने अपनी हथेली से उसके हाथ को दबाया और उसकी ऊंगलियों को घाव के एक-एक कतरे, गढ्ढे तक ले गया।

कुछ सैकंड तक उसने अपनी हथेली, उसकी ऊंगलियों पर ही रहने दी, बैरटी तो जैसे अबूझ, अचेत ही था। फिर शीघ्रता से उसने बैरटी का हाथ अपने चेहरे से हटा दिया।


माॅरिस बहुत प्रसन्न था, बोला,” अब हम गहरे मित्र हैं, हम एक दूसरे को जान गए हैं । हमारी मित्रता जीवन पर्यंत बनी रहेगी, क्यों मित्र ठीक है न!”

बैरटी स्तब्ध था, अभी जो हुआ, उसने उसके अंदर डर पैदा कर दिया था।
वह तो मुक्ति चाहता था, बोला, ” हाँ, ठीक कह रहे हो।”

माॅरिस थोङी दूर खङा था, वह सिर झुका कर, जैसे कुछ सुनना चाहता था, वह दोस्ती के इस नए अहसास में डूबा हुआ था। वह बोला,” चलो, इसाबेल को बताते हैं।”

इसाबेल व्यग्रता से उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। उनकी आहट के साथ, उनके पदचापों में आए बदलाव को भी महसूस किया जा सकता था। वह उनके स्वागत के लिए आगे बढ़ी। उसे माॅरिस अप्रत्याशित प्रसन्न दिखा और बैरटी बहुत गुमसुम था।

इसाबेल ने बैचेनी से पूछा, ” क्या हुआ?”
माॅरिस ने उत्साहित होकर जवाब दिया, ” अब हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए हैं ।”

इसाबेल ने चौंक कर बैरटी की ओर देखा, वह इस रहस्य को समझना चाहती थी। बैरटी का चेहरा गमगीन था। वह अभी तक माॅरिस की चोट के छुअन के अहसास से उबर नहीं पाया था।

इसाबेल ने अपने दोनों हाथों में माॅरिस के हाथ को लेकर कहा, ” यह तो वाकई खुशी की बात है।”

वह देख सकती थी कि माॅरिस वास्तव में बहुत खुश था। परंतु बैरटी अचानक थोपी गई इस दोस्ती से भाग जाना चाहता था।

माॅरिस की उंगलियां मानों अभी भी उसके चेहरे पर ही हो, उसे ऐसा लग रहा था, जैसे किसी ने उसके अंदर सेंध मार दी हो, जैसे घोघे के खोल को किसी ने तोङ दिया हो।

विश्व प्रसिद्ध कहानियां (भाग-16)

THE BLIND MAN

D.H. LAWRENCE

नेत्रहीन व्यक्ति ( सूरदास )(भाग-9)

बैरटी थका हुआ लग रहा था।उसकी आँखों के घेरे काले दिख रहे थे। इसाबेल गर्भावस्था की स्वाभाविक खूबसूरती से निखर गई थी। उसके कुछ घुंघराले और लापरवाही से बंधे बाल आकृषित कर रहे थे। पर उसकी पुरानी बैचेनी इस समय जागृत हो रही थी।


” मेरे खयाल से हम सभी में कुछ न कुछ कमजोरियाँ होती हैं।” बैरटी बोला
” हाँ, मैं भी मानती हूँ।”
” सबकी अपनी-अपनी किस्मत” बैरटी आगे बोला

” मुझे पता नहीं, पर मुझे सब शांत प्रतीत होता है। बच्चे के आने की खुशी ने मुझे बदल दिया है, अब कोई समस्या , समस्या नहीं लगती है। मन बहुत शांत है। “

” यह तो बहुत अच्छी बात है।” बैरटी ने धीरे से कहा।
” यह सब प्रकृति का ही करिश्मा है। माॅरिस को लेकर भी परेशान, नहीं हूं ,अपितु बहुत संतुष्ट हूँ ।” इसाबेल ने शांत मन से कहा।
“पर तुम्हें उसके लिए चिंतित होना चाहिए” बैरटी बोला
“अच्छा , मुझे नहीं पता।” इसाबेल ने कुछ रूखे भाव से कहा।

संध्या काल बीते समय हो गया था। रात गहरा गई थी। इसाबेल ने कहा, ” दस बज गए होंगे, माॅरिस अभी तक नहीं आया अब तो सब अपने घरों में होंगे।”

व्यग्रता से बाहर जाकर तुरंत अंदर आती हैं । “सबके घर के दरवाजे बंद हैं । वह खेतों की ओर गया होगा।” इसाबेल ने कहा।

” मेरे विचार से वह आता ही होगा।”
” हाँ, मुझे भी ऐसा ही लग रहा है। पर सामान्यतः वह इस समय बाहर नहीं जाता है।”

” क्या मैं उसे देखने जाऊं?”
अगर तुम्हें परेशानी न हो।” यह कहते हुए इसाबेल ने अपनी शारीरिक अवस्था पर निगाह डाली ।
” नहीं,मैं जाता हूँ ।” बैटरी ने ओवरकोट पहना और लालटेन लेकर बाहर निकल गया।

बारिश की तेज बौछार और हवा से उसे कंपकंपी होने लगी। चारों तरफ छाया गीलापन उसे बैचेन कर रहा था। एक कुत्ता उस पर भौंक रहा था।

उसने आसपास की इमारतों पर निगाह डाली, बीच वाले खलिहान में झांकने से उसे कुछ आहट लगी। लालटेन की रोशनी से उसने अंदर देखने का प्रयास किया । उसने देखा पर्विन टरनीप पलपर पकड़े खङा है और कुछ सुनने का प्रयास कर रहा है। शायद वह शकरकंदी का गूदा निकाल रहा था।

माॅरिस को आहट हुई तो बोला,” कौन वर्नहम्स ?”
“नहीं , मैं बैरटी।”

एक बड़ी आधी जंगली बिल्ली माॅरिस के पैरों पर लोट रही थी और माॅरिस भी उसकी ओर थोङा झुक कर उसे सहला रहा था। बैरटी ने भी उन्हें देखते हुए अंदर प्रवेश किया । दरवाज़ा जा उसने पीछे से बंद कर दिया। इस खलिहान में चारों तरफ मवेशी बंधे थे. बैरटी धीरे-धीरे माॅरिस की ओर बढ़ा।

माॅरिस बोला,” इसाबेल ने तुम्हें मुझे ढूंढने भेजा है?
” हाँ, वह तुम्हारे लिए चिंतित थी। ‘

“मुझे यहाँ सब व्यवस्थित करना था।, बस आने ही वाला था।” माॅरिस बोला।
बङी बिल्ली फिर अपने मालिक के पास आकर अपने पंजों के बल खङे होकर उसके पैरों तक पहुंचने की कोशिश करने लगी, माॅरिस ने धीरे से उसे अपने से अलग किया।

क्रमशः

विश्व प्रसिद्ध कहानियां(भाग -15)

THE BLIND MAN

D.H. LAWRENCE

नेत्रहीन व्यक्ति ( सूरदास ) (भाग -8)

बैरटी कई बार बहुत डर जाता अपनी ही कमजोरियाँ उसे भयभीत करती थीं। वह एक सफल बैरिस्टर था, समाज में एक रूतबा था। उसकी गिनती बुद्धिजीवियों की श्रेणी में होती थी। फिर भी वह अपने अकेलेपन से घबराता था।


इसाबेल उसे अच्छी प्रकार समझती थी। वह उसके अवगुणों के कारण उसे नापसंद करती तो उसके गुणों से वह प्रभावित भी होती थी। उसके उदास चेहरे और छोटी टाँगें उसके मन में उसके लिए तुच्छता की भावना पैदा करते थे। पर उसकी गहरी भूरी आँखें और उनकी मासूमियत पर उसको प्यार आता है। उसकी समझ लाजवाब थी, जिसका वह सम्मान करती थी।


फिर उसने अपने पति की और देखा,’एक भावहीन, शांत मुर्ति । वह पीठ टिकाकर हाथ मोङे बैठा था। उसका चेहरा थोड़ा झुका हुआ था। उसके घुटने सीधे और बङे थे।
इसाबेल ने एक गहरी साँस ली, और फिर आग को तेज करने के काम में लग गई।

बैरटी ने अचानक पूछा, ” इसाबेल ने बताया, दृष्टि खोने पर भी तुम बहुत कष्ट महसूस नहीं करते हो?”
माॅरिस ने अपने को सचेत किया, पर हाथ मुङे ही रहे। बोला,” नहीं, बहुत नहीं , हां, पर एक अलग, नया संघर्ष तो है, तुम समझ सकते हो। लेकिन फायदे भी हैं ।
” माना जाता है कि यह पूर्णतः बहरा होने से भी बुरा है ” इसाबेल ने कहा

” हां, मानता हूं , पर फायदे?” उसने फिर माॅरिस से पूछा।
” हाँ, आप बहुत सारी चिंताओं और कार्य से मुक्त हो जाते हो।” माॅरिस ने जवाब देते हुए अपने को सीधा किया, अपनी पीठ की मजबूत मांसपेशियों को सीधा किया और पीछे को झुकते हुए सिर ऊंचा उठाया।


“अच्छा , इन सबसे राहत है। पर फिर इन चिंताओं और कार्य से मुक्त हो जाने” पर तुम्हें कैसा महसूस होता है?”
एक लंबी चुप के बाद पर्विन ने बिना सोचे, लापरवाही से जवाब दिया ।” नहीं जानता, पर इसका भी सकारत्मक पक्ष है।”
” अच्छा ऐसा है, पर मुझे तो बिना किसी विचार और बिना कोई भी काम के सब व्यर्थ लगता है।”
फिर माॅरिस कुछ देर चुप रहकर बोला,” कुछ तो ऐसा है, जो मैं समझा नहीं सकता।”


बातचीत फिर रूक गई , वे दोनों मित्र कभी-कभी बीच में अपने पुराने दिनों को याद करते थे और माॅरिस चुप बैठा था।


फिर अचानक वह उठ खङा हुआ। वह बैचेन दिख रहा था,अपने को बंधा हुआ महसूस कर रहा था, वह वहां से निकलना चाहता था।बोला
” आप बुरा न माने , मुझे वर्नहम्स से काम है। उसके पास जाकर आता हूँ ।”

इसाबेल बोली,” नहीं , रूको हम साथ चलते हैं।”
पर वह रूका नहीं , बाहर निकल गया।


दोनों मित्र थोङी देर चुप बैठे रहे। फिर बैरटी बोला, ” कोई बात नहीं, यह उसका बहुत कठिन समय है।”
” हां, बैरटी, मैं जानती हूँ , “
” कुछ है जो उसे हर समय व्यथित करता है।”
” हां, मैं जानती हूँ । माॅरिस सही कहता है, कुछ तो है जिसे समझना और व्यक्त करना असंभव है।”

वो क्या है?” बैरटी ने जानना चाहा
” मैं नहीं जानती, ना ही समझाया जा सकता है, ऐसा कुछ जिसके बिना मैं कुछ नहीं कर सकती। यह कहीं अवचेतन मस्तिष्क में होता है। जानते हो जब हम दोनों अकेले होते हैं , तब कुछ ऐसा महसूस नहीं होता। बहुत समृद्ध और संपूर्ण प्रतीत होता है।”

” माफ करना, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ ।”

वे दोनों इधर-उधर की बातें करते रहे। बाहर हवा तेज चल रही थी। बारिश की बौछारें खिङकी के शीशे से टकरा रही थी। खिङकी के हल्के सुनहरे रंग के दरवाजे अंदर से बंद थे, जब उन पर बौछारें पङती तो लगता ड्रम बज रहा है।
लकङियाँ धीरे-धीरे जल रहीं थी, लपटें अब नहीं दिख रही थी पर आग में ताप और चमक थी।

क्रमशः

विश्व प्रसिद्ध कहानियां (भाग -14)

THE BLIND MAN

D.H. LAWRENCE

नेत्रहीन व्यक्ति ( सूरदास )(भाग-7)

माॅरिस चुपचाप बहुत ध्यान से अपने कांटे- चम्मच संभाल रहा था। वह बहुत ध्यान से खाने की मेज पर रखी चीजों के स्थान का ब्यौरा समझ रहा था। वह सीधा और संभल कर बैठा था। बैरटी उसकी सीधी व प्रस्तर मुद्रा को देख रहा था। वह पर्विन के हाथों को ध्यान से देखते हुए , उसकी भौंहों की चोट के ऊपर छाए गहरे मौन को समझने का प्रयास कर रहा था।


फिर उसे अनदेखा करने की कोशिश करते हुए, उसने मेज पर रखे बैनफिशा फूल के कटोरे को उठाया और उसे नाक के पास ले जाते हुए बोला,” कितनी अच्छी खुशबू ! कहाँ से आए?”
” अपने ही बगीचे के हैं ।” इसाबेल ने उत्तर दिया
” इस बार देर से खिले! पर बहुत खुशबूदार हैं ।
तुम्हें याद हैं ! साउथ वाल की आंटी बैल के बैनफिशा के फूल!”


दोनों मित्रों ने एक-दूसरे को देखा। और इसाबेल की आँखें चमक उठी, बोली, “भला, मैं कैसे भूल सकती हूँ ! वह बहुत विचित्र थी न!”
” एक अजीब सनकी बुढ़िया । वह परिवार सनकपन की मिसाल था। इसाबेल !”


” पर हम सनकी नहीं हैं ” इसाबेल ने जवाब दिया और साथ ही उसने माॅरिस से पूछा,” क्या तुम फूलों को सूंघना चाहोगे?”

“बैरटी, यह बाउल माॅरिस को दो।” जब उसने बैरटी को मेज पर फूलों का बाउल रखते देखा।


माॅरिस ने हाथ बढ़ाया और बैरटी ने उसकी बङी और दिखने में गर्म उंगलियों पर उस बाउल को रखा जिसमें बैरिस्टर की पतली उंगलियां दब गई , जिन्हें उसने धीरे से निकाल लिया।


माॅरिस ने धीरे से उस बाउल को पकङा, सूंघने के लिए नाक के पास ले गया ,वह दोनों पर्विन की ओर ध्यान से देख रहे थे, ऐसा लग रहा था, जैसे वह कुछ सोच रहा है ।


इसाबेल ने बेताबी से पूछा,” खूशबू अच्छी है न?”
” हाँ, बहुत”
और उसने बाऊल आगे बढ़ाया, बैरटी ने उससे लेकर रख दिया।


भोजन शुरू हुआ। दोनों मित्र बीच-बीच में कुछ बात करते थे। पर माॅरिस चुपचाप अपने कांटो, छुरियों को संभालते हुए खाने में ध्यान लगा रहा था। ऐसा लग रहा था कि वह इस बात के लिए सचेत है कि उसे किसी की सहायता न लेनी पङे।

क्यों ? वे दोनों सोच रहे थे। विशेषरूप से इसाबेल को हैरानी हो रही थी कि जब वे पति-पत्नी अकेले होते हैं तब ऐसे कोई प्रयास नहीं होते, सब बहुत स्वाभाविक रूप से चलता है। इस समय बैरटी की उपस्थिति में वह स्वयं भी सचेत है।

भोजन के बाद तीनों आग के समीप कुर्सियों पर बैठ गए । इसाबेल ने आग में लकङियाँ बढ़ा दी। आग के तेज होने से चिंगारियां निकलने लगी थीं ।
बैरटी को लगा कि इसाबेल को शायद किसी बात की चिंता सता रही है।
” इसाबेल , बच्चे की बहुत खुशी हो रही होगी न तुम्हें ?” बैरटी ने पूछा


” हाँ, बहुत। एक लंबी प्रतीक्षा के बाद यह खुशी मिलने वाली है” इसाबेल ने जवाब दिया और माॅरिस से पूछा,” है न! माॅरिस , तुम भी बच्चे के आगमन पर बहुत खुश होंगे न!”
” हाँ, मुझे भी बहुत खुशी होगी ।”

बैरटी इसाबेल से चार- पांच साल बङा ही है। अभी तक अविवाहित है। वह अपने आरामदायक घर, फरमाबरदार नौकरों और कुछ मित्रों के साथ सुखी है।

वह महिलाओं का सम्मान करता हैं , उन्हें पसंद भी करता है। उसकी कुछ महिला मित्र भी हैं पर वे सब मित्र ही हैं, इससे अधिक न वह उन्हें समझता है न वे। ऐसा नहीं कि उसे किसी महिला के करीब जाने की इच्छा नहीं हुई थी, जो महिलाएं उसे पसंद आईं और उसने उनके करीब जाने का प्रयास भी किया पर जब वे उस पर अपना अधिकार रखने लगती, उसको उसे अपने अनुसार चलाना चाहती तो वह उनसे दूर भाग जाता था। उसे कई बार अपने पर शर्म भी आती कि उसने आज तक किसी महिला के सामने विवाह का प्रस्ताव भी नहीं रखा था।

इसाबेल उसकी ऐसी मित्र थी जो उसके गुणों से ही नहीं उसके अवगुणों को भी जानती थी।

क्रमशः

विश्व प्रसिद्ध कहानियां(भाग-13)

THE BLIND MAN

D.H. LAWRENCE

नेत्रहीन व्यक्ति ( सूरदास )(भाग -6)

पर्विन कहाँ है? घर पर नहीं है?”
” नहीं , घर पर ही हैं, ऊपर अपने कमरे में हैं ।”
” पर्विन, कैसा है?”
” बहुत सही।”
” तुम दोनों आपस में कैसे? वह अभी भी कुढ़ता रहता है क्या?
” नहीं , बिलकुल नहीं । बल्कि हम बहुत आनंद का जीवन जी रहे हैं हमारा प्यार और नजदीकियां और बढ़ी है। “
“यह तो बहुत खुशी की बात है।

वे दोनों दूर चले गए और पर्विन को अब कुछ सुनाई नहीं दे रहा था।
लेकिन माॅरिस में एक बचकाना अलगाव का भाव उभरने लगा था।उसे उनकी बहुत हल्की फुसफुसाहट ही सुनाई दे रही थी। वह जैसे अपने को अकेला महसूस करने लगा था।

इसाबेल ने जिस तरह उनके आपसी प्रेम और नजदीकियों की व्याख्या की थी, उसने उसमें झल्लाहट पैदा कर दी थी , उसे बैरटी का स्काॅटिश उच्चारण पसंद नहीं था जो थोङा बहुत इसाबेल के उच्चारण में भी दिखता था। विशेषकर इस उच्चारण में कुछ प्रसन्नता मिश्रित गुनगुनाहट है, उससे उसको नफरत है। वह जानता है, यह नफरत एक बचपना है।

कपड़े पहनते हुए वह अपने को परेशान महसूस कर रहा था। उसके सामने उसका संपूर्ण जीवन-वृत घूम गया। अपनी ताकत, कमजोरियाँ भी, सबसे अधिक अब जो दूसरों पर निर्भरता हो गई है, उसने उसको मन से कमजोर कर दिया है।

उसको बैरटी रैड से नफरत थी पर वह जानता है यह उसकी बेवकूफी थी। यह उसके स्वभाव की कमी को ही दर्शाता है।

मॉरिस नीचे उतर कर आया, इसाबेल खाने की मेज के पास खङी थी, उसने माॅरिस को आते हुए देखा, वह उसे स्वस्थ और मजबूत दिखा, साथ ही उसमें एक नकारात्मकता भी दिखी, शायद उसके मन में ही नकारात्मकता का ख्याल उसकी चोटों के निशानों के कारण आया हो।
” क्या तुम्हें पता लगा कि बैरटी आ गया है?” इसाबेल ने पूछा
” हाँ, क्या वह अभी यहां नहीं है?”
” वह अपने कमरे में है। वह बहुत कमजोर और थका हुआ लग रहा था।
” मुझे लगता है कि काम के अत्याधिक बोझ के कारण वह ऐसा हो गया हो।”
एक नौकरानी ट्रे में लेकर कुछ आई, और थोड़ी ही देर में बैरटी भी आ गया ।

बैरटी छोटे कद का काला आदमी था।उसका माथा बहुत बङा पर पतला था। आँखें बङी और उदास दिखती थी। उसके चेहरे पर एक उदासीनता का भाव था, जो व्यंगात्मक भी था। उसकी टाँगें असाधारण रूप से छोटी थी।


इसाबेल ने झिझकते हुए नीची निगाह से उसे देखा और घबराते हुए एक निगाह अपने पति पर डाली ।
आहट से माॅरिस भी मुङा।
” आ गए तुम? चलो कुछ खाते हैं ।” इसाबेल ने कहा।


बैरटी माॅरिस की तरफ बढ़ गया।
” कैसे हो पर्विन?” बैरटी ने माॅरिस के पास पहुंच कर कहा।
मॉरिस ने अपना हाथ बढ़ाया और बैरटी ने तुरंत उसका हाथ अपने हाथ में लिया।
” ठीक हुँ, तुम आए, बहुत अच्छा लग रहा है।”


इसाबेल ने उन्हें देखा, फिर निगाह उन दोनों पर से हटा दी, जैसे वह उन दोनों को एक साथ देख कर, बैचेन हो गई हो।
” यहां मेज पर आ जाओ, तुम दोनों को भूख नहीं लग रही क्या! मुझे तो बहुत तेज लगी है।” इसाबेल बोली

“मालूम होता है मेरे कारण आप दोनों को खाने मेें बहुत प्रतीक्षा करनी पङी है।” सबके बैठने के बाद बैरटी बोला।

माॅरिस का कुर्सी पर बैठने का एक अपना तरीका है। वह थोङा हटकर और सीधा बैठता है। इसाबेल जब भी उसे ऐसे बैठा देखती है, तो उसके दिल की धड़कन तेज हो जाती है।


इसाबेल ने बैरटी को जवाब दिया, ” नहीं, ऐसी बात नहीं है, हम थोङा देर से ही भोजन करते हैं। अभी भी चाय के साथ नाशता कर रहे हैं, डिनर नहीं । थोङी- थोङी देर में कुछ स्नैक्स लेते रहेंगे । मुझे लगा इससे शाम का समय अच्छा बीतेगा।
तुम्हारे लिए भी यह ठीक रहेगा न!”
” हाँ, मेरे लिए भी बढ़िया है।” बैरटी ने जवाब दिया ।

क्रमशः

विश्व प्रसिद्ध कहानियां (भाग -12)

THE BLIND MAN

D.H. LAWRENCE

नेत्रहीन व्यक्ति ( सूरदास ) ( भाग -5)

वह सीढ़ियों के पायदान पर रूक गया जैसे कुछ सुनना चाहता हो। मानो अपना भाग्य जांच रहा हो। फिर बोला, ” वह जब तक आए मैं कपङे बदल लेता हूँ ।”


” माॅरिस ! तुम नहीं चाहते कि वह आए।”
” नहीं , ऐसा बिल्कुल नहीं , मैं उससे मिलने के लिए उत्सुक हुँ”
” हाँ, मैं जानती हूँ ।” यह कहते हुए उसने आगे बढ़कर उसके गाल को चूम लिया।


उसने देखा इससे उसके चेहरे पर एक हंसी खिल आई है।
इसाबेल ने थोङे रोष के साथ कहा,” तुम मुझ पर हंस रहे हो!”


वह मुस्कराते हुए बोला, ” तुम मुझे सांत्वना दे रही हो?”


” नहीं , ऐसा नहीं हैं । तुम हमारे प्रेम को जानते हो, हमारे वैवाहिक जीवन में प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी महत्त्वपूर्ण नहीं है।

” बिलकुल” यह कहकर उसने इसाबेल के चेहरे को अपनी उंगलियों से छुआ।

और तुरंत बोला, “क्या तुम ठीक हो?, कुछ परेशानी है?”
” नहीं , तुम तो जानते हो, मुझे तुम्हारी चिंता रहती है ।”


मेरी क्यों ?” उसके गालों को माॅरिस ने अपनी ऊंगलियों के पोरों से छुआ। इसाबेल को उसके इस स्पर्श ने सम्मोहित कर लिया था।


वह ऊपर चला गया, वह नीचे से ही उसकी हर क्रिया मानों देख सकती थी। ऊपर अंधेरा है, माॅरिस को नहीं पता कि लाइटें बंद है। वह अपने अभ्यस्त हाथ- पैरों से अपने काम कर रहा था।

माॅरिस अवचेतन रूप से अपने जाने- पहचाने परिवेश को समझ सकता है। अंधेरा होने पर भी उसे कोई कार्य करने में असुविधा नहीं है।वह अपनी वस्तुओं को छूने से पहले ही पहचान लेता है। यह सब करके उसे खुशी मिलती है।

अपने-आप उसमें यह समझ उत्पन्न हो गई है। उसे खुशी है कि उसे यह सब बहुत कठिन नहीं लगा था। वह जल्दी ही, समस्त कार्यो को सहजता से करने लगा था। अब वह अपने अंदर किसी दृश्यात्मक चेतना का दखल नहीं चाहता था।

जिन्दगी के इस संघर्ष भरे कठिन समय में सकारात्मक रूप से इन कठिनाइयों को जीतना उसने सीख लिया था। वह अपनी सफलता पर खुश था। वह हाथ बढ़ा कर किसी भी अनदेखी वस्तु को ले सकता था, पकङ सकता था। उसको उस वस्तु को याद करने या उसकी कल्पना करने की आवश्यकता नहीं थी। यह एक नई चेतना उसमें स्स्थापित हो गई थी।

वह अपनी इस कुशलता से बहुत प्रसन्न होता, यह खुशी अपनी पत्नी से प्रणयता के क्षणों में भी उजागर होती थी।


पर कभी वह निराशा के समुद्र में गोते खाता होता। निराशा के थपेड़े उसे गहरी खाई में ले जाते थे।और वह अपनी इन्हीं ताकतों पर, विवेकशीलता पर, संदेह करने लगता।


जब वह यह जांचने लगता कि यह कब तक और कितना लंबा चलेगा ? तब वह अवसाद में पागल हो जाता और उसे समस्त ब्रह्मांड अपना दुश्मन दिखता था। उसे अपने को संभालना कठिन लगता था।


आज वह बहुत शांत था, पर कभी-कभी हल्की-सी अंजानी बैचेनी उसके रगों में गुजर जाती थी। वह सावधानी से शेव कर रहा था, रेजर चलाना कुछ कठिन कामों में से एक था, जिसमें ध्यान लगाने की आवश्यकता होती थी।

उसके सुनने की शक्ति भी अब तीव्र हो गई थी । उसने सुना काॅरीडोर की लाइट जला दी गई है, मेहमानों के कमरे में आग जलाई जा रही है। गाङी के आने और रूकने की आवाज़ के साथ इसाबेल की भी खनकती हुई आवाज़ सुनाई दी थी ।


” बैरटी! आ गए ।”” हेलो, इसाबेल “
” क्या रास्ते में बहुत कठिनाई हुई ?
” माफी चाहती हूँ , कोई बंद गाङी नहीं भेज सके।” इसाबेल बोल रही थी।
“अरे, नहीं , मुझे गाङी चलाने में आनंद आया।”
” इसाबेल ! तुम तो हमेशा की तरह स्वस्थ दिखती हो।”
” और, तुम तो कुछ कमजोर दिख रहे हो”
हंसते हुए” काम के बोझ तले मरा जाता हूँ ।”
” तुम्हारे कपङे तो भीग गए हैं , बदल लो, इन्हें मैं सूखाने के लिए दे देती हूँ ।”

क्रमशः