मैने नही वोट देना, यह भी कोई बात हुई, श्रीमति वाजपेयी गुस्से मे थी, मै हेरान उन्हे सुनने लगी, मुझे कुछ बोलने या पूछने की आवश्यकता नही थी, मै जानती थी, वह स्वं अपना मन का गुब्बार निकाल देगी। 

और मै उनके लिए चाय बनाने लगी, वह कुछ तैश मे और कुछ दुख मे बोल रही थी। यह भी कोई बात हुई सरकार ने यूँ अचानक यह नोटबंदी कर दी है। इतनी कठिनाई से हम औरते पैसा जोङती है, आप समझ सकती हैं। और हमारे गूड्डू और उसके पिताजी, सरकार के इस बेतुके काम पर तालियाँ बजाते नही थक रहे है, जैसे भ्रष्टाचार अभी और वाकई खत्म हुआ जाता है। मुझे तो बहुत गुस्सा आ रहा है, मैने नही वोट देना इस बार। 

अब पति देव को तो नही बता सकती थी, पर गुड्डू को बताया अपने 500और1000 के नोटो के बारे मे, पता नही उसे क्या हुआ एकदम बोला, आपके पास काला धन है। आप ही बताओ ऐसे कैसे कह दिया उसने अपनी माँ को, मैने कह दिया उससे बेटा यह तेरे बाप के मेहनत की कमाई के रूपये है, सच भाभी जी मेरे ये कुछ भी कर ले, पर इतने गऊ है एक पैसा रिश्वत लेने की हिम्मत नही कर सकते, आप तो जानती है, पार्ट टाइम काम करते है, और मै क्या बाहर………? आँखो मे आँसू लिए बोली, मैने नही वोट देना।

गुड्डू कहता है- नही, यह बात नही है, पर जिस पैसे का कोई हिसाब नही है, वो काला धन होता है। मैने कहा तुम्हारे पापा जो पैसा लाकर मुझे देते है, उसकी सैलरी इत्यादि का रिकार्ड होता है, वो कहता है बात पापा की नही आपकी है, आपके पास जो पैसा है,  वो आपने छिपा कर रखा है और आपके पास कोई हिसाब नही है, बताइए कैसे हिसाब नही है, कैसे एक एक पैसा जोङा है? आप तो समझ सकती है। मैने नही वोट देना यह क्या बात हुई, हमारा पैसा कैसे काला धन हो गया? कोई भी सामान खरीदते हुए कितना मोल भाव करती हूँ, ऐसे ही गृहस्थी नही चलती, इस महंगाई मे, सरकार का क्या, कब किस चीज के दाम बढ़ा दे? सरकार तो पागल बना देती है। एक एक पैसा कहाँ कहाँ किस तरह बचाए पूरा हिसाब लेले सरकार मुझसे, क्यों ठीक कह रही हूँ न! 

आप तो समझ सकती है। गुड्डू से तो मैने कहा, बेटा, मेरे पैसे को तुम काला धन कहते हो, जब सैर सपाटे को तुम्हे जाना होता है तो, पैसे हमारे से ही मांगते हो अगर हम एक-एक पैसा जमा न करते, तब अपनी गर्ल फ्रेडस को तुम यूँ ही गिफ्टस नही दे पाते, अरे ऐसे क्या देखते हो हम कुछ कहते नही पर सब पता है। आप ही बताए, इस तरह हमारे मेहनत से जूङे धन को कैसे काला धन कहा जा सकता है। मैने तो अब वोट नही देना है। आखिर झक मार कर सब रूपए मैने वाजपेयी साहब को दे दिए, और क्या इनकी मेहनत की कमाई जला देती या नाले मे बहा देती। इनके पैसे इन्हे ही वापिस कर दिए। 

कहते-कहते वो बूरी तरह रोने लगी थी, मैने उन्हे पानी दिया, पानी पीते-पीते और हिचकियो के बीच वह बोली, वाजपेयी साहब ने आजकल मुझसे बातचीत बंद कर दी है, ऐसे मुझे देखते है जैसे मैने कोई डाका डाला हो, मैने नही देना वोट इस बार। आप ही बताए, यह ऐसा व्यवहार कैसे कर सकते है, अरे जितने पैसे हाथ मे रखते है, उतने मे अपनी अकलमंदी से घर चलाती हूँ,  यह तो पैसे पकङा कर कह देते है इसी मे सब चलाना होगा,  फिर निश्चित हो जाते है और फिर इनकी और इनके बच्चो की फरमाइशे कौन पूरी करता है,इस महंगाई से जूझने के लिए मै अकेली रह जाती हूँ, आप तो समझ  सकती है। पिछली बार जब प्याज मंहगी हुई, तब भी मै इनके खाने मे कच्ची प्याज रखती थी,, कम प्याज मे भी अच्छी सब्जी बनाने के लिए यू ट्यूब का सहारा लेती थी, तब कभी नही पूछा कैसे कर पाती हो?, और तब जब इनकी बरेली वाली बहन की बेटी की शादी थी, वह तो भात न्योतने आई और बोल गई, भाई मेरी ससुराल मे इज्जत रख लेना, वह तो कह गई, पर बाद मे सब खर्चो का हिसाब लगाया तब इनका तो  ब्लड प्रेशर ही शुट अप कर गया था। फिर मैने कहा इनसे, आप तो बस शादी मे जाने के लिए पूरे परिवार की रिजर्वेशन करा लो, बाकी सब लेना देना मै देख लूगी। तब यह स्वस्थ हुए। लेकिन यह नही पूछा कैसे करोगी? सब किया, लङकी के पायल, बिछूए, नथ, साङी, इसके अलावा ननद के सभी रिश्तेदारो के कपङे नेग। हाँ, भाभी जी, यही परंपरा चली आ रही है बेटी के बच्चे के होने से लेकर उसके विवाह तक, कितने रीति रिवाजो को लङकी के मायके के सामान से निभाना जरूरी माना जाता है।क्या करे सदियों से चली आ रही इन परंपराओ को निभाना पङता है। पर इनकी बात तो ठीक नही न! अरे पैसा बचाती हूँ, तभी तो इनकी नाक नीची नही होने देती। और ये ऐसे रूठे जैसे मैने कितना बङा धोखा दिया है। मैने नही वोट देना, आ रहे है इलेक्शन, मै वोट नही दूँगी। 

इतना कह कर वह कुछ शांत हूई, शायद मन की भङास निकाल दी थी, तभी मंद- मंद मुस्कराने लगी, फिर धीरे से बोली वो कोने वाले फ्लेट मे जो मिस्टर चावला  रहते है, उनका हाल भी बिलकुल हम गृहणियो के  जैसा ही है। मैने हेरानी से देखा, उनकी इस हताशा के समय इस मुस्कान का राज? और मिस्टर चावला? पर मुझे प्रतीक्षा नही करनी पङी, उन्होने मिस्टर चावला के बारे मे बहुत प्रफुल्लित मन से बताना शुरू किया, बोली, मिस्टर चावला नोट बंदी के बाद एक दिन मेरे पास आए और पूछने लगे कि आप अपने जमा पैसो का क्या कर रही है? मै  बङी परेशान हुई, इन्हे कैसे खबर? तब तक तो मैने गुड्डू को भी नही बताया था पर वह बोले उन्हे भी अपने जमा रूपयो को कही ठिकाने लगाना है, मैने कहा, भाई साहब आपका तो अपना बैंक खाता होगा, आप क्यो परेशान? और मन मे सोचा काली कमाई? पर वो बोले, हमारी मिसेज बहुत समझदार है, हमे अपनी अक्ल से ज्यादा उनकी बुद्धि पर विश्वास है, सो हमारी सभी चेक बुक, पास बुक ए टी  एम कार्ड  मिसेज  के पास रहते है, आखिर सब उन्होने ही तो करना होता है। पर  हमारे भी तो अपने पर्सनल खर्चे होते है, तो हम कुछ  रूपया सौदा- सुलफ से बचा लेते है, उन्ही रूपयो की समस्या है, अब वो अगर हम एकाउंट मे जमा कराएँगे तो उन्हे दुख होगा। मिस्टर चावला की बात सुनकर मैने तो कह दिया कि हमारे पति और हमारे बीच कोई पर्दा नही है।

मिसेज वाजपयी ने आगे कुछ  रूखे स्वर मे कहा, हाँ, हमसे अच्छी तो मिसेज चावला, आप तो समझ ही रही है, मैने  नही वोट देना। अब तो नोटबंदी भी खत्म हो गई, पर वाजपेयी साहब का व्यवहार न बदला। आप तो समझ सकती है, इस अंधेर नगरी चौपट राजा मे मै वोट दूँगी, नही! 

मैने नही देना वोट।