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मासिक अभिलेखागार: मार्च 2017

एक सच्चाई.. एक सोच !

11 शनिवार मार्च 2017

Posted by शिखा in Uncategorized

≈ 6s टिप्पणियाँ

​मै जो लिखने जा रही हुँ, वो एक कहानी नही है, वो एक सच्चाई है,  जिसे हम सभी जानते है।  जिन के बारे मे लिख रही हूँ, वे सच्चे पात्र है, उन्हे मैने गढ़ा नही है। ये वो है जिनसे मै किसी न किसी रूप से रूबरू हुई हूँ।

सुमन मेरे घर काम करती है। सुमन के माता पिता नही थे इसलिए मामा मौसी ने अपनी तरफ से अच्छा घर देखकर ग्यारह वर्ष मे ही उसकी शादी कर दी थी। 14 वर्ष मे वह एक बेटी की माँ बन गई थी। अब उसके पांच बच्चे है। उसकी कहानी सिर्फ उसकी कहानी नही है उस जैसी  न जाने कितनो की कहानी है ।  सुमन की बात सुनते  हुए मुझे मैडम गर्ग याद आ रही थीं। वह मेरे साथ स्कूल मे पढ़ाती थी। संस्कृत की  अध्यापिका, बहुत मन से, मेहनत से पढ़ाती थी। उनके विद्यार्थी उन्हे पसंद करते थे। जब मैने उस विद्यालय मे पढ़ाना शुरू किया तब वह एक लंबी छुट्टी के बाद लौटी थी। पुरानी अध्यापिका होने के कारण उनका बहुत मान था, अपनी शर्तो पर ही उन्होने आना शुरू किया था। क्या अपनी व्यक्तिगत जिन्दगी वह अपनी शर्तो पर जी रही थी? जब हमारी कुछ दोस्ती हुई, तब एक दिन स्टाफ रूम मे, जब सिर्फ हम दो थे, उन्होने अपनी कहानी सुनाई। मुझे पता चला था कि अपनी बङी विवाहित बेटी की मृत्यु के शोक मे ही वह लंबी छुट्टी पर थी। बेटी की मृत्यु का कारण उनकी अपनी ही कहानी थी।

कहानी-  ग्यारह वर्षीय मीना अपने माता पिता के साथ एक विवाह समारोह मे सम्मलित होने के लिए गई थी,, वहाँ उपस्थित गर्ग दपत्ति को वह भा गई और तुरंत अपने 22वर्षीय पुत्र के लिए उन्होने मीना का हाथ उसके माता पिता से मांग लिया। पहले तो उसके माता पिता झिझके, माँ ने तो भरसक विरोध भी किया परंतु गर्ग परिवार की अपने गाँव, तहसील मे पद, प्रतिष्ठा, धन-संपत्ति व साथ ही लङका इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था इन सब मे बच्ची मीना की आयु नगण्थ थी। माँ ने सोचा कि गौना इसके वयस्क होने पर ही करेगे लेकिन मीना के सास ससुर को यह बालिका वधू इतनी भाई कि वे उसे इस आश्वासन के साथ कि उसका पूरा ध्यान रखा जाएगा तभी विदा कराकर ले गए। मीना 12-13वर्ष की आयु मे पहली बार गर्भवती हो गई, अर्थात वह 11वर्ष की आयु से ऐसी यातना सह रही थी जिसकी कल्पना भी शायद हर व्यक्ति नही कर सकता है। मीना के माता पिता तब चेते और समझ पाए अपनी कोमल बालिका पुत्री के नारकीय यातनापूर्ण जीवन को और उसकी ससुराल जाकर, यह कह कर कि लङकी का पहला प्रसव मायके मे ही होना चाहिए, मीना को अपने साथ ले आए। मीना ने बेटी को जन्म दिया परंतु जिन हालातो मे उसको जीवन मिला उसके परिणामस्वरूप बेटी का दिमाग अविकसित रह गया। इस बार मीना की माँ दृढ़ता से अङ गई और उसके सास ससुर को कह दिया चूंकि मीना का ध्यान नही रखा गया अतः उसके वयस्क होने तक मीना को उसके पति घर नही भेज सकेगे। मीना के बङे भाई अब तक समझदार हो गए थे। मीना की शिक्षा फिर से आरंभ की गई और  उसने उच्च शिक्षा प्राप्त कर ली व बङे भाई के जोर देने पर उसने बी एड भी कर लिया। उसके सास ससुर को अपनी गलती का अहसास हो चूका था। इस बार शिक्षित मीना ससुराल पहुँची थी। मीना का अपना जीवन तो संवर गया लेकिन वह अपनी बेटी जो बङी तो हुई पर मानसिक रूप से  बच्ची  ही रही थी, के साथ न्याय नही कर सकी थी। जब मीना दुबारा ससुराल गई तब उसकी माँ ने  नवासी रजनी को अपने पास ही रखा था। नानी की मृत्यु के बाद रजनी मीना के पास आ गई। इस बीच मीना के दो बच्चे और हुए, एक बेटा, एक बेटी। न जाने दूनिया की कौन सी बातो  मे आकर शिक्षित मीना ने रजनी की शादी कर दी, ऐसी लङकी के लिए वर व ससुराल कैसे मिले होगे समझा जा सकता है। रजनी के दो बच्चे हुए फिर वह बिमार रहने लगी। रजनी की मृत्यु से मीना को आघात तो पहुँचा पर उससे अधिक पछतावा था।

जिस तरह मीना के लिए उसकी माँ ने दूनिया का सामना किया, उस तरह मीना अपनी बेटी के लिए कोई साहसिक कदम क्यो नही उठा सकी?

रजनी का दिमाग विकसित नही हुआ था यानि दिमाग से वह बच्ची थी, मीना के वयस्क होने पर ही उसे दुबारा ससुराल भेजा गया, पर मीना ने अपनी अवयस्क बेटी का विवाह कर दिया क्यो?

मीना शिक्षित थी, कङवे अनुभवो से मिले जख्म कभी सूखे नही थे, फिर भी ऐसी क्या लाचारी थी?

हमेशा हर समस्या का समाधान शादी क्यो?

लङकी बहुत सुंदर है दूनिया की नजर मे आ रही है, शादी कर दो, लङका जिम्मेदार नही है, शादी कर दो । अब पढ़ाई पूरी कर ली शादी कर दो। अरे इतनी उमर हो गई शादी नही हुई।

शायद मीना अपनी गृहस्थी की जिम्मेदारी मे फंसी थी,  रजनी की जिम्मेदारी उसके लिए अतिरिक्त जिम्मेदारी थी। रजनी शारारिक रूप से पूर्ण वयस्क थी,ऐसी अवस्था मे उसे अतिरिक्त ध्यान की आवश्यक्ता थी। और जैसा कि दूनिया मे रिवाज है , व्यक्ति से ज्यादा परंपरा चलन अधिक महत्वपूर्ण है दूनिया ने कहा इसकी शादी कर दो, और रजनी की शादी कर दी गई।

मैने गर्ग मैडम से कुछ नही कहा, उनके आँसु, उनका पछतावा बता रहा था कि उन्होने अपनी सामाजिक दुनियावी बेबसी के सामने घूटने टेक दिए थे।

बंगाल की राससुंदरी देवी बंगला मे पहली वह महिला थी जिसने अपनी आत्मकथा लिखी थी उनकी आत्मकथा के अनुसार उनका जन्म सन्1809 मे हुआ था। उनकी आत्मकथा सन् 1868 मे लिखी गई थी उनका विवाह सिर्फ 12 वर्ष की आयु मे हुआ था। उन्होने14बच्चो को जन्म दिया था। उन्होने अपनी 25 वर्ष की आयु तक 12 बच्चो को जन्म दिया था।

उन्होने चोरी चोरी पढ़ना लिखना सीखा था, चूंकि तब औरतो के पढ़ने मे पाब॔दी थी। उन्होने लिखा संयुक्त परिवार व्यवस्था मे स्त्री गृहिणी देवी है या दासी, नही है तो केवल मनुष्य। उनके अनुसार स्त्री परिवार के लिए एक देह है, मर्यादा है, वंशबेल बढाने का साधन, वह माँ जिसका अपना कुछ भी नही है।

राससुंदरी देवी का विवाह 1821 मे हुआ था, मीना गर्ग का विवाह 1961 मे हुआ और सुमन का विवाह1994 मे हुआ था।

राससुंदरी बंगाल की थी और मीना व सुमन उत्तर प्रदेश की है।राससुंदरी देवी ने छिप छिप कर लिखना पढना सीखा था। मीना ने अपनी माँ की हिम्मत से उच्च शिक्षा प्राप्त करी थी। सुमन ने स्कूली शिक्षा प्राप्त नही करी थी पर बचपन मे लिखना पढना अपनी आवश्यकतानुसार सीख लिया था।

अपनी बेटियो को भी वह स्कूल नही भेज सकी थी पर जितना उसे आता था उतना उन्हे भी सीखा दिया था। अपनी बेटियो का विवाह भी उसने 18वर्ष और16 वर्ष की आयु मे कर दिया था।

रासदेवी और मीना सभ्रांत व कुलीन वर्ग से थी जबकि सुमन दलित वर्ग से थी।

हमे शहरो मे शिक्षित, नौकरी  करती लङकियाँ नजर आती है, पर गाँवो, छोटे शहरो मे स्त्री की स्थिति अभी भी दयनीय है। बाल विवाह संबधित कानून बनने पर भी बाल विवाह हो रहे है।

मै यह नही कहना चाहती कि स्त्रियों की स्थिति मे सुधार नही हुआ है या वह जागरूक नही हुई है। 

प्रगति हुई है,पर अभी ओर आगे जाना है, सोच और संस्कारो को बदलना आसान नही है। मै विवाह जैसी संस्था पर  पूर्ण विश्वास रखती हुँ।पर यदि विवाह एक ऐसा बंधन है जो किसी एक की प्रगति व विकास मे रूकावट बनता है या वह किसी भी एक के लिए किसी जेल से कम नही है तो?

इस पवित्र बंधन की पवित्रता पर स्थिरता बनाने के लिए अपनी

सोच पर कार्य करना होगा।

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