इस किताब मे पांच कहानियाँ है, प्रत्येक कहानी अपना अलग अस्तित्व रखते हुए भी अपने को अगली कहानी से जोङती है और इस तरह एक दूसरे से जुङते हुए, वह एक लंबी कहानी बन जाती है। पहली कहानी शुरूआत है तो पांचवी कहानी अंत है।
लेखिका के अनुसार यह उसका एक चौराहे पर खङे होकर, अलग-अलग राहो को देखने का,और उन पर चलते अलग-अलग राहियों को देखने का एक तजुर्बा है।
यह कहानियाँ जीवन की सच्चाईयाँ है, इसमे कल्पना नही है, सपने नही है, सिर्फ है सच।
कच्चे रेशम सी लङकी
‘कच्चे रेशम सी लङकी’ कहानी वास्तविकता से पूर्ण एक प्रेम कहानी है। या इसे एक विद्रोह की कहानी भी कह सकते है। माता पिता अपनी इच्छाओं को अपने बच्चो पर कैसे लादते है? फिर बच्चे उनके विद्रोही हो जाते है, इसका अच्छा विश्लेषण है। इस कहानी की नायिका जिसकी उम्र अभी कच्ची है, अपने हिटलर पिता द्वारा प्रताङित, पिता की आकांक्षा (दामाद आई सी एस चाहिए) के विरूध्द कुछ भी करने को तैयार है।नायक से उसे प्रेम तो नही है,पर उसे अच्छा लगता है फिर पिता द्वारा चुने भावी वर के विरोध मे उसे वह सही लगता है। नायक को भी उससे प्रेम नही है पर उसकी चिन्ता है।नायिका जो अभी कच्ची उम्र की है, नायक के साथ भाग जाना चाहती है पर नायक समझदार है, उसे जीवन मे बहुत कुछ करना है। वह नायिका को पांच वर्ष प्रतीक्षा करने को कहता है, उसे भी जीवन मे कुछ करने को प्रेरित करता है। इस कहानी का अंत यही है। आगे की कहानियाँ इस शुरूआत के अंत की संभावनाओ से भरी है कि अगर ऐसा होता तो….और ऐसा हुआ तो….।
दीवारो की ठंडी गंध
इस कहानी का नायक पांच वर्ष बाद अपने देश लौटा है। जानी पहचानी चीजो को महसूस करता है(कोई भावुक नायक नही है) परंतु अपनी सी चीजो को एक लंबे अर्से के बाद देखो तो कुछ भावनाएँ तो जगती ही है।
विदेश जाने से पहले एक लङकी को जिसे वह उसे एक लंबे समय से जानता है उससे प्रेम हो जाता है।ठीक से वह भी नही जानती कि यह भावनाएँ उसके सच्चे प्रेम की है या नही, पर अभी वह उसके जाने के कारण भावुक है और एक प्रकार से वह प्रतीक्षा करने का वायदा कर लेती है। ऐसा नही कि नायक को उससे प्रेम था या उम्मीद थी कि वह प्रतीक्षा करती होगी, फिर भी लङकी के हाथ का बना स्वेटर गले मे डाल कर आता है।माँ झिझकते हुए उसे बताती है कि उसके छोटे भाई ने उसी लङकी से शादी कर ली है, यह पहली संभावना है।
इसमे माँ की भावनाएँ भी है, बेटे के कमरे को उसने वैसा ही रखा है जैसे पांच वर्ष पहले था। चीजे अंदर से बदल जाती है पर बाहर से वही रहती है।माँ बेटे के आने से खुश है, बेटा भी माँ के साथ सुखी है। पिता की मृत्यु से माँ का व्यक्तित्व प्रभावित हुआ है। लेखिका शायद यह बताना चाहती है कि समाज मे स्त्री का अस्तित्व उसके पति पर निर्भर है उसके बिना वह कमजोर व असहाय है। माँ बुढ़ापे मे अकेली रह गई है, उसे भय है कि बेटा फिर चला न जाए।
समाज राग
समाज राग इस किताब की तीसरी कहानी है, अथार्त चौराहे की तीसरी सङक व लेखिका की एक अन्य अनुमानित संभावना है।
इस कहानी को एक व्यंग कहा जाए तो अधिक ठीक होगा,क्योकि यह व्यंग है समाज पर उसकी उपस्थिति पर कि वो क्यो बना, कैसे बना? कहानी का अभिप्राय यही है कि एक इंसान अकेला नही रह सकता, चुप नही रह सकता। अकेला इंसान विवाह करता है बच्चे पैदा करता है, अपना समाज बनाता है, जहाँ सिर्फ शोर होता है, हर कोई अपनी बोलता है, दूसरे की नही सुनता, न समझता, केवल शोर करता है।
और इस तीसरी कहानी मे जिन्दगी का सच नजर आता है, पहली दो कहानियों मे कुछ रूमानियत और भावनाएँ थी, पर इसमे तो इंसान के अंदर का सच उभरता है।
खामोशी
यह चौथी कहानी खामोशी एक तरह से समाज राग का विस्तार ही है।इंसान अपने लिए समाज बनाता है, परंतु उसकी इच्छाओ का अंत नही है, वह समाज को अपने अनुसार ढालता है और अधिक सुविधाओं को पाने के चक्कर मे नीचे गिरता जाता है।
इस कहानी मे नायक व नायिका विवाहित है, उनमे प्रेम भी है पर वह किसी भी कीमत पर आधुनिक समाज मे बसना चाहते है(जैसा समाज इंसान ने बना दिया है।) उसके लिए वह नीचे गिरने को तैयार है,क्योकि यह समाज मे होने लगा है, इससे क्या फर्क पङता है।
लेकिन एक बात महत्वपूर्ण है कि यहाँ इंसान को अहसास है कि उससे क्या हो गया है और यह दर्द उसे टीस रहा है कि वह समाज को क्या रंग दे रहा है। यह अहसास एक सर्द खामोशी पैदा करता है। जो इस बात का संकेत है कि समाज मर रहा है, वह प्रेम जिसके कारण इंसान ने समाज की रचना की थी, वह रुमानी कल्पनाएँ जो उसके हृदय मे पैदा हुई थी,जिनके कारण वह समाज को लाया था, नष्ट हो गई है। वह गुम हो गया है, उसका रोमांस खत्म हो गया है। जिस चुप को तोङने के लिए (या चुप के कब्र जैसे रंग को तोङने के लिए) उसने शोर पैदा किया था, उसे तोङ न सका है और उसने अपने को ह्रदयहीन, प्रेमहीन बना दिया है।
पर वह फिर लौट रहा हो, उसी रोमांस की ओर ‘आग की लपट’ लेखिका की पांचवी कहानी है। उसने जीवन की समस्त कङवाईयों को चखा है। वक्त की लंबी सङक पर बहुत धूप, ठंड और बहुत बारिश और अंधेरे से गुजरते हुए सङक के अंत मे पहुँचा है।जहाँ उसे सङक का आरम्भ मिला।या एक-एक करके रोज रात की बिजली बुझाकर एक-एक दिन को अंधेरे मे फेंक कर पहुँचता है उसी सुख तक जिसकी तलाश मे उसने न जाने कितनी सङके नापी थी, वह सुख उसी सङक के आरम्भ व अंतिम सङक के मिलन मे छिपा था।
आग की लपट
इस कहानी के साथ इस किताब की पांचो कहानियों का अंत होता है। कहानी वही है, पांच वर्ष पूर्व एक लङका व एक लङकी मिलते है।उनमे शायद प्रेम उपजता है। लङकी बहुत शिद्धत के साथ उस प्रेम को महसूस करती है और सोचती है कि वह अपने प्रेमी की प्रतीक्षा करेगी। लङका गंभीर नही है पर उलझा हुआ है।पांच वर्ष का समय बीतता है।इस बीच लङकी के जीवन मै कोई ओर आ जाता है।वह यह बात उस लङके को बताती है। लेकिन फिर भी दोनो मिलते है।
“और उन दोनो ने देखा, उनके पैरो के आगे जो सङक टूट गई थी, अब वह टूटी हूई नही थी।“
और इस प्रकार पांचो कहानियों का अंत होता है। चौराहा मे चार राहे होती है, पर एक सङक टूटने से वह पांच राहे दिखती है, अब सङक जुङने से फिर चारो राहे एक जगह मिलती है।कहानियाँ बहुत खूबसरती से हमे इंसान की फितरत और उसकी भटकन से परिचय कराती है।