किसका दर्द गहरा? तुम्हारा या मेरा?
किसकी तकलीफ अधिक गहन?
तुम्हारी या मेरी?
किसने किसको अधिक चोट पहुँचाई?
तुमने या मैंने?
जो भी कहो-
दर्द में तो हम दोनो ही है।
लेकिन तुम तो सांमतवादी रहे,
चोट पहुँचाना तो सिर्फ तुम्हारा अधिकार रहा ।
मैंने तो बस अपना बचाव किया, और!
तुम इसी में चोटिल हो गए,
ऐसे क्या देखते हो?
ओह! तुम तो अपने को प्रगतिवादी कहते रहे।
पर मेरे सामने तो तुम सामंतवादी ही रहे न!
जब भी जिस रूप में आए-
पिता, बङा भाई, छोटा भाई, पति और पुत्र भी।
तुम्हारे अधिकार,सिर्फ अधिकार
मेरे अधिकार भी मेरे कर्तव्य,
तुम्हारे प्रति मेरे कर्तव्य,
चाहे जिस रुप में तुम मिलो।
कर्तव्य में हो जाए कमी तो?
तो तुम मुझे प्रताङित करते रहे-
(सामाजिक, आधिकारिक व वैयक्तिक प्रताङना भी।)
चाहे जिस रुप में मैं तुम्हें मिली-
पुत्री, बङी बहन, छोटी बहन, पत्नी और माँ भी।
तो फिर किसका दर्द गहरा?
मैं? जो सदियों से प्रताङित होती रही।
या तुम?
मैंने तो सिर्फ अपना बचाव ही किया था।
और तुम चोटिल हो गए।