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मासिक अभिलेखागार: नवम्बर 2017

​  एक सच्चाई-एक सोच (भाग-3)

19 रविवार नवम्बर 2017

Posted by शिखा in Uncategorized

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यह दुःख की बात है कि संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार विश्व में बाल विवाह के मामले मे भारत का दूसरा स्थान है। विश्व में होने वाले बाल विवाह में 40% भारत के बाल विवाह है। उसमें भी 49% लङकियों का बाल विवाह होता है। जरूरी नही कि लङकी अभी छोटी है तो उसका वर भी छोटा होगा वह आयु में उससे दुगना या तिगुना बङा भी हो सकता है। यदि वर व वधू दोनो की आयु छोटी होती है तब तो संभव है कि वधू  की विदाई उसके बङे होने पर की जाए परंतु यदि वर वयस्क है तब वधू की आयु  कितनी भी कम क्यों न हो उसकी विदाई तभी कर दी जाती है और वह तभी शारीरिक यौन प्रताङनों से गुजरने लगती है।
लङकी बाल विवाह के आंकङे राज्यानुसार इस प्रकार है:-

             मध्य प्रदेश-75%

             राजस्थान- 68%

               उत्तर प्रदेश-64%

              आंध्र प्रदेश-64%

               बिहार-    67%

देश के लङकी बाल विवाह में 72% लङकियाँ ग्रामीण प्रदेश की होती है। हमारे देश में 1.2 करोङ बच्चों की 10वर्ष से कम आयु में शादी कर दी जाती है।78.4लाख लङकियों की शादी 10 वर्ष से कम उम्र में हो जाती है।अतः ये 12वर्ष से कम आयु मे ही गर्भ धारण कर लेती हैं। सरकारी सूचनाओं के अनुसार बाल विवाह रोकने के लिए कानून बने हैं तथा सख्ती भी बरती जाती है।परंतु ये लोग छिपते-छिपाते बालक – बालिकाओं का विवाह कर ही देते है।राजस्थान में अक्षय तृतीया तिथि को बहुत शुभ दिन माना जाता है,अतः इस दिन अधिक विवाह संपन्न किए जाते है, बहुत रोकथाम व सख्ती के बावजूद विवाह हो जाते है।

अर्थात कहने का अभिप्राय यही है कि कानून बनाने व सख्ती करने के बाद भी सफलता नही मिल रही है, क्योंकि हम ग्रामवासियों की सोच बदलने में सफल नहीं रहे हैं।माना कि सोच बदलना आसान नही है पर 70वर्ष तो बहुत होते है। हमे दुःख है कि हमारा देश सोच के आधार पर कितना पिछङा देश है। क्या देश की प्रगति बङे-बङे उद्योगों, बङे बाजारों, बङे-बङे माॅल,मेट्रो इत्यादि से दिखती है।

हमारे देश के गाँव तो आज भी अविकसित है, फिर कैसे कहा जा सकता है कि देश की प्रगति हो रही है।आज भी हमारे देश की 68.84% जनसंख्या गाँवों में बसती है। हमारे देश की आत्मा यहीं है। परंतु दुःख के साथ कहना होगा कि हमारे देश की सरकारे  देश के ग्रामीण क्षेत्र के सुधार के लिए विशेष कार्य नही कर सकीं है।हमारे देश में 6लाख 49 हजार 4सौ 81 गाँव है। सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में व सबसे कम चंडीगढ़ में है।

कहने को कहा जाता है कि हमारे देश के गाँवों में आधुनिक सुविधाएँ पहुँच चुकी हैं, वे बीती सदियों के गाँव नही हैं, परंतु यह पूर्णतः सच नही है। राजस्थान के गाँवों की औरतों को अभी भी दूर-दूर स्थानों से पानी लेने जाना पङता है। आज भी गाँवो में आधुनिक चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध नही है। अगर चिकित्सालय खोल दिए गए हैं तो चिकित्सक नही है साथ ही दवाइयों और उपकरणों का भी अभाव पाया जाता है।गंभीर मरीजों को शहर ले जाना पङता है, जिसके लिए पर्याप्त साधन नही है, अस्पतालों मे एम्बुलेंस नही है जिससे मरीजों को सुरक्षा पूर्वक शहर के किसी सरकारी अस्पताल तक पहुँचाया जा सके। सही समय पर सही चिकित्सा न मिलने के कारण मरीज की मृत्यु भी हो जाती है।  कोई भी डाॅक्टर, डाॅक्टर बनने के बाद सिर्फ पैसा कमाना चाहता है, अतः वे गाँवों में जाकर चिकित्सालयों में काम करना पसंद नही करते है।ग्रामीणों के लिए सरकार जितना कार्य कर रही है, वह पर्याप्त नही है, परंतु क्या हम उनके लिए कुछ कर सकते हैं?

खेती से पर्याप्त आय न होने के कारण कृषक परिवार शहरों की ओर आ रहे है, जहाँ उनके परिवार का पालन ठीक से हो सके, वे एक शांति पूर्ण सुखमय जीवन का  सपना  ले कर आते है। परंतु  इन परिवारों के मर्द शीघ्र ही शराबखोरी की आदत के शिकार हो जाते है। नशा उनकी बुद्धि और सपना दोनो भ्रष्ट कर देते है। तब इन परिवारों की औरतें घर से बाहर मेहनत मजदूरी करने निकलती है। दिन भर मेहनत के बाद रात को नशेबाज पतियों की मार खाती है, फिर भी उसे भरपेट भोजन कराती है, जो सपना मिलकर देखा था, उसे पूर्ण करने की जिम्मेदारी  अकेले अपने कंधों पर उठाती हैं।

अब प्रश्न यह उठता है कि यदि हमारे गाँव आधुनिक गाँव है तो क्यों परिवारों को शहर की ओर पलायन करना पङता है? अगर गाँवों में ही सुरक्षित भविष्य हो तो किसान क्यों शहर आकर मजदूरी करें और गलत आदतों के शिकार बने।कभी बाढ़, कभी सूखा,ऐसी स्थिति में ये पुरूष किसान या तो आत्महत्या करते हैं या शहर आकर बुरी आदतों के शिकार होते हैं।हर स्थिति में किसान औरत ही परिवार की जिम्मेदारी उठाती है। वह अपने बच्चों को यूँ बेसहारा या भूखा नही रख सकती है।आज इतने सहस्त्रों वर्षों से क्यों हमारी कृषि वर्षा पर निर्भर है, ऐसे उपाय क्यों नही किए गए कि यह निर्भरता कम हो पाती।

          पर मेरा यही विषय है कि ये सब इन कमज़ोर औरतो को सहना पङता है।छोटी आयु में विवाह फिर हर वर्ष एक बच्चा या गर्भपात, उस पर भूख, कमजोर शरीर तो आत्महत्या नहीं पर इनकी हत्या तो हो ही जाती है।जिसके लिए सिर्फ सरकार नहीं, समाज भी जिम्मेदार है। समाज में सदियों से चली आ रही परंपराएँ ही इन्हें घूटती जिन्दगी देती है।

इन औरतों को मै दलित नहीं कहुँगी न कमज़ोर कहुँगी। बंगाल की रेवा व अंजलि के अपने गाँवों मे इनके परिवारों के अपने खेत है, चावल, धान की खेती होती है। अपने मकान भी है, परंतु इनके बच्चों का भविष्य वहाँ नहीं है, अच्छे विद्यालय, चिकित्सा सुविधाएँ कुछ भी उपलब्ध नही है।

मध्यप्रदेश की राजकुमारी, कमला, मीना इन सबके गाँवों में अपने खेत है, अपने मकान भी है, किसी के कच्चे, किसी के पक्के मकान है, पर रहने के लिए अपने स्थान है।जब गाँवों में काम नहीं होता, ये शहर आते है, कुछ धन कमाकर फिर कुछ समय के लिए गाँव जाते है, वहाँ अपनी खेती संभालते हैं। जिनके गाँवों मे विद्यालय हैं, उनके बच्चे वहीं पढ़ते हैं, पर उच्च शिक्षा के लिए शहर जाना पङता है। चिकित्सा सुविधा नाममात्र की है, अतः बच्चों की बीमारी की सूचना मिलने पर राजकुमारी गाँव को भागती है।गाँव में बङे बुज़ुर्ग है जो बच्चों को संभालते हैं। इन्हें शहर काम करने आना ही पङता है सिर्फ खेती से गुज़ारा नहीं हो सकता है।अगर पति भी मेहनतकश है, नशे से दूर रहता है, समझदार है तब तो पति-पत्नी मिलकर परिवार को संभाल पाते है।पर यदि नहीं तो………

बिहार की अनीता के गाँव में अपने खेत व पक्का मकान है, परंतु बच्चों का भविष्य नहीं है।कई वर्षों से शहर में रह रही है तो उसका राशन कार्ड व आधार कार्ड है, इसलिए बच्चों को सरकारी विद्यालयों में दाखिला मिल गया है। तीन बच्चों के बाद और बच्चे नहीं! वह अपने फैसले पर मजबूती और हिम्मत से दृढ़ रही। पति भी मेहनती है, अतः जीवन सही चल रहा है।

अब एक प्रश्न फिर कर रही हुँ जो न केवल आप सबसे अपितु अपने से भी कर रही हुँ। जब सरकारी तंत्र इन कमज़ोर असहाय स्त्रियों की एक सशक्त तरीके से सहायता नहीं कर पा रहा है, सामाजिक संस्थाओं के कार्य भी अच्छे परिणाम नहीं दे रहे हैं, तब हम क्या करें?   हम हमारे पास आने वाली इन कमज़ोर स्त्रियों की सहायता कर सकते हैं। हमें इनकी सहायता पैसे से नही करनी है क्योंकि ये आत्मनिर्भर व स्वाभिमानी औरतें हैं।हमें उनके जीवन में उन्हें नैतिक रूप से सहयोग देना है, उन्हें शिक्षित और जागरूक बनाना है।हमें इनकी सोच बदलने का प्रयास करने चाहिए। चूंकि यह समस्या गरीबी से अधिक अशिक्षा की है।अतः सर्वप्रथम इन लोगों को शिक्षित और जागरुक बनाना है। हमें अपने व्यस्त समय से अपने इन देशवासियों के लिए थोङा समय निकालना है।

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