• About

शिखा…

शिखा…

मासिक अभिलेखागार: दिसम्बर 2017

सूखे विचारों की गीली खुशबू

16 शनिवार दिसम्बर 2017

Posted by शिखा in Uncategorized

≈ 26s टिप्पणियाँ

​कुछ सूखे पत्ते और सूखी लकङियाँ

कुछ सूखी उम्मीदें और सूखी उलझने

निराशाएँ भी सूखी और मन भी सूखा

यह तो मानों अकाल हो गया।

कहाँ से मिलेगी आद्रता?

कब भीगेगा मन?

सूखी धरती हुई सख्त,

मन भी हुआ कठोर,

कहाँ मिलेगी गीली धरती?

कैसे भीगेगा मन?

आसमान भी फीका पङ गया,

तारें भी हुए बेचमक,

कहाँ होगा नीला आसमान

जिसमें हो टिम-टिम तारे, 

कहाँ मिलेंगे जलभरे बादल?

जैसे ही वे बरस जाएँगे,

वैसे ही खिल उठेंगे सूखे पत्ते और सूखी लकङियाँ,

चमक उठेंगी उम्मीदें और जागेंगी उलझने

निराशाएँ भी मारेगी हिलोरें और मन भी होगा भरा-भरा

 जैसे मानों आएगा बसंत।

पर अभी तो-

कुछ सूखे पत्ते…………मन भी सूखा।

Advertisement

सदस्यता लें

  • प्रविष्टियां (आरएसएस)
  • टिपण्णी(आरएसएस)

अभिलेख

  • नवम्बर 2022
  • अक्टूबर 2022
  • सितम्बर 2022
  • अगस्त 2022
  • जुलाई 2022
  • जून 2022
  • सितम्बर 2021
  • जुलाई 2021
  • जून 2021
  • अप्रैल 2021
  • मार्च 2021
  • फ़रवरी 2021
  • दिसम्बर 2020
  • नवम्बर 2020
  • अक्टूबर 2020
  • सितम्बर 2020
  • जुलाई 2020
  • जून 2020
  • मई 2020
  • फ़रवरी 2020
  • जनवरी 2020
  • दिसम्बर 2019
  • मई 2019
  • अप्रैल 2019
  • मार्च 2019
  • फ़रवरी 2019
  • जनवरी 2019
  • अक्टूबर 2018
  • अगस्त 2018
  • जून 2018
  • फ़रवरी 2018
  • जनवरी 2018
  • दिसम्बर 2017
  • नवम्बर 2017
  • अक्टूबर 2017
  • सितम्बर 2017
  • अगस्त 2017
  • जून 2017
  • मई 2017
  • अप्रैल 2017
  • मार्च 2017
  • जनवरी 2017

श्रेणी

  • Uncategorized

मेटा

  • पंजीकृत करे
  • लॉग इन

WordPress.com पर ब्लॉग. थीम: Ignacio Ricci द्वारा Chateau।

Privacy & Cookies: This site uses cookies. By continuing to use this website, you agree to their use.
To find out more, including how to control cookies, see here: Cookie Policy
  • फ़ॉलो Following
    • शिखा...
    • Join 290 other followers
    • Already have a WordPress.com account? Log in now.
    • शिखा...
    • अनुकूल बनाये
    • फ़ॉलो Following
    • साइन अप करें
    • लॉग इन
    • Report this content
    • View site in Reader
    • Manage subscriptions
    • Collapse this bar