फिर आया नया साल और मैं फिर पहुँची अपने अतीत में
मुझे याद नहीं कब मैनें नव वर्ष को जाना,
मेरे लिए पहले नव वर्ष क्या था?
वो दिन याद है मुझे जब अपनी नन्ही दूनिया के खेल में मग्न,
मैनें सुनी माँ की आवाज़, “आज हमारी बिटिया का जन्म दिन है,
पर अभी उसे इसका अहसास नहीं”फिर मैं जब भी पाती सिर्फ मेरा विशेष दिन-
नई पोशाक, मेरी पसंद के पकवान और हाँ विशेष रूप से सभी का प्यार व दुआएँ।
तब उसे ही मानती नया साल।
तब तारिखों, वर्षों का कहाँ तक ज्ञान।
फिर आया एक ओर विशेष दिन- मिला पहली कक्षा का परिणाम,
किसी ने बताया अब शुरू हुआ तुम्हारा पढ़ाई का नया साल।
फिर नई किताबों-काॅपियों की खुशबू के साथ मनाते नया साल।
यूँ बङे भाई साहब खूब चिढ़ाते,”न बदला तुम्हारा कक्षा कमरा, न बदले सहपाठी(हमारी तो पहली से तीसरी तक अध्यापिका भी नहीं बदली थी)
फिर बोलो, कैसा तुम्हारा नया साल? तुम तो रही वहीं अभी भी पुराने साल।”
फिर काॅपियो में तारिखें बदलते-बदलते जान गए नया साल।
अब इंतज़ार होता एक जनवरी का, सुबह सभी को देनी है नव वर्ष की बधाई।
और फिर जब आया टी.वी., तब से 31 दिसम्बर की रात कटती टीवी के साथ।
लगा समझदार हो गए है, हम भी सभी की तरह करते अपने से एक नया कुछ कर गुजरने का वायदा।
फिर एक साल याद कर आती है, अपने पर हँसी,। इस मिथ को जानकर कि जिस काम को करते हुए नववर्ष की शुरुआत करोगे, वह काम पूरे वर्ष करोगे।
हमने भी उस वर्ष दी टी.वी. को तिलांजलि, ले बैठे किताबें, सारी रात पढ़ने की ठान ली। पर टी.वी. की आवाज़ हमारे कानों तक पहुँचती थी, उससे भी अधिक सभी के ठहाकों की आवाज़े हमारे कानों को चुभती थी।(तब टी.वी. कार्यक्रम मनोरंजक होते थे)कैसे पहुँचे उस साल नववर्ष तक यह हम जैसे सभी अंधविश्वासी समझ सकते है।
अब न रहे हम मिथो के घेरे में, किया है अपने को सभी अंधविश्वासों से आज़ाद।अपने से न कर कोई वायदा, ज़िन्दगी खुल कर जिया करते हैं।
इस इंटरनेट की दूनिया में अपना 60वाँ नववर्ष सभी जाने, पहचाने और अंजानों के साथ मना रहे हैं।
‘आप सभी के लिए नव वर्ष मंगलमय हो।’