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वह चुपचाप सूने कमरे को देखती रही, अभी थोङी देर पहले वह मीतु को एयर पोर्ट छोङ कर आई है। सही अर्थों मे तो मीतु आज विदा हुई है। एक महीना पहले उसकी शादी हुई थी, दामाद दुबई में काम करते हैं। वीज़ा इत्यादि औपचारिकताओं में एक महीना बीत गया। ससुराल पास में ही है इसलिए मीतु का आना जाना बना रहा। अच्छी गहमा-गहमी रही। एक महीने का समय पंख लगा कर उङ गया। अब उसका कब लौटना होगा। नही, उसे मीतु की चिन्ता नही है।रंजन और मीतु बचपन के मित्र रहे हैं। जब मीतु ने रंजन से विवाह का अपना विचार बताया तभी वह निश्चित हो गई थी। रंजन से ही नही उसके परिवार से भी उनका अच्छा परिचय था।पर फिर भी रूलाई मुँह को आ रही थी, लेकिन आँसुओं को जब्त कर लिया। माँ कहती थी कि बेटी को विदा करके आँसू नही बहाते, अपशगूनी होती है,बेटी अपने नए जीवन की ओर बढ़ी है।

कमरे से बाहर निकल दो कप चाय बनाई और पति के पास ले गई, कहते कुछ नही पर घर का सूनापन उन्हें भी छू रहा होगा।लेकिन वह तो अपना हिसाब किताब खोले बैठे थे।शादी और अभी तक मीतु की विदाई का खर्च, सारा लेखा-जोखा….चाय का कप हाथ में ले वह उससे उन सभी खर्चों की मालुमात करने लगे जो उसके हाथ से हुए थे।उसकी इच्छा अभी इन बातों को करने की नही थी, पर वह जानती थी कि मुक्ति नही है। वह अनमने मुड से उनके साथ उस काम में लग गई। पति का या तो उसके अनमनेपन पर ध्यान नही था या अनदेखा कर दिया था। यूँ भी अपने मन को हल्का करने का सबका अपना ढंग होता है, पर उस ढंग में वह उसे क्यों घसीटते हैं। इस सब में कितना समय बीत गया, पता ही नही चला और उसका मन भी अब दैनिक कार्यों की ओर मुङ गया था। तभी उनकी आवाज आई आज नीलू स्काइप पर बात करेगा, यह सुनते ही वह नए उत्साह में भर गई। नीलू से बहुत बातें करनी है। नीलू की शादी को तो दो साल हो गए है, पर कनाडा गए चार साल। आया भी बस दो बार एक बार अपनी शादी पर दूसरी बार मीतू की शादी पर। करिश्मा बहु अच्छी तो है पर साथ रहने का मौका कहाँ मिला। वह तो नही चाहती थी कि बेटा दूर जाए,पर पति बहुत गर्व महसूस करते हैं, जब सबको बताते हैं कि बेटा विदेश में है अब दामाद भी।

एक महीना बीत गया, यह महीना बहुत बुझा -बुझा और डूबा -डूबा गया। उसने सोचा थोङे दिन की बात है, वह मीतू के बिना रहना सीख जाएगी। जब उसकी शादी हुई थी, तब माता-पिता, भाई-बहन, सहेलियाँ, आस-पङोस सबके बिना उसने जीना सीख लिया था। तब भी कभी उदासी, कभी नए उत्साह के साथ जीवन के नए रूप को अपनाना शुरू किया था। अकेलापन कभी-कभी बहुत थका देता और वह चुपचाप पलंग पर लेटी, छत को ताकती रहती थी। और क्या हो गया है उसे? बिलकुल शादी के शुरुआत के समय की तरह….माँ या दीदी के पत्र आते तो पढने से पहले रोने लगती..जबकि ससुराल अच्छा था। और अब बच्चों से स्काइप पर खूब खुश-खुश बात करती और बाद में तकिए में मुँह दबा खूब रोती है। फिर भी उसे विश्वास था कि कुछ दिन में सब ठीक होगा, सब आदत की बात है। पर दूसरा महीना बीत रहा था और वह अकेलेपन के भयावह जंगल में घूम रही थी। अब तो बच्चे टोकने लगे थे, क्या हो गया? तबियत ठीक है? अपना ध्यान नही रख रही हो, फिर से सिर दर्द शुरू हो गया क्या? नीलू तो नाराज ही होने लगा कि जरूर सारी कामवालियाँ हटा दी होगी। “अरे, नही किसी को नही हटाया, तुम दोनो को यूँ ही लग रहा है”, उसने हँसते हुए कहा कि “मै बिलकुल ठीक हूँ, और थोङा खुल कर हँसते हुए कहा पूछ ले अपने पापा से… ।जी हाँ, उन्हे जैसे सब बताती हो।मीतू चिन्ता के साथ बोली। वे बाद में बोले कि तुम भी तो जैसे उनके सामने बैठती हो, किसी को भी बीमार लगो। उसे लगा बात सही है, बच्चे दूर बैठे हैं, फिर स्काइप पर बहु और दामाद भी होते हैं, थोङा तैयार होकर बैठना चाहिए। 

पर फिर मीतू की बात दिमाग में घूम गई, ‘उन्हे जैसे सब बताती हो’।

हाँ, सच ही है कि कभी मन की बात उनसे नहीं करी। उन्होने करी? वह तो चाहती थी कि वह कुछ अपने मन की कहे, कुछ उनकी सुने। पर नहीं उनके बीच यह रिश्ता कभी बन ही नही पाया। ऐसा नही कि कोशिश नही करी, आरम्भ में की थी बहुत उत्साह के साथ पर एक कठोर दृढ रुखाई ने उसे वहीं रोक दिया। एक रेखा उनके बीच हमेशा खींची रही। फिर एक साल के अंदर नीलू का जन्म।वह नीलू और ससुराल के अन्य नए रिश्तों को संभालने मे व्यस्त हो गई। अपना मन किसी से बाँटे यह सोचने का समय भी न था। पति से बात होती तो सिर्फ इन्ही विषयों में कि नीलू को डाक्टर के ले जाना है या फिर नीलू ने पहला कदम रखा…. इस तरह की खुशियाँ बाँटने पर उनकी हल्की सी मुस्कान उसे मिल जाती। कभी वह इसीलिए भी नीलू की बातें उनसे करती कि उनसे बातचीत का कुछ आदान प्रदान तो होता, कभी वह उससे नीलू के लिए बुने अपने सपने  बाँट लिया करते थे, पाँच साल बाद मीतु हुई थी। इतने समय में वह ससुराल के सभी रिश्तों में अच्छे से रच बस गई थी, पर पति के साथ…. कुछ ठीक से समझ नही पा रही थी। युँ उसकी सभी जरुरतें पूरी हो रही थी, बिमार पर होने पर समय से इलाज… यहाँ तक कि बच्चों के बहाने से घूमने भी जाते थे।उसकी दूनिया भी अब बच्चे ही थे, बच्चों की पढाई, बच्चों के काॅमिक्स, कार्टूनस। कब वे स्कूल से लौटे और उसका सूनापन भर दें। और उनके ऑफिस से लौटने पर उनसे बच्चों की बातें करें….नीलू के रिजल्ट, खेल, शरारतें, मीतू की नित नई मीठी-मीठी बातें, शैतानियाँ…यह वे क्षण थे जब साथ मिलकर थोङा हँसते थे, कुछ खुशियाँ, कुछ चिन्ताओं को बाँटते थे। उसे पता ही नही चला वह कब अपनी आत्मिक खुशियों के लिए अपने बच्चों पर निर्भर हो गई थी। बच्चे जब और जैसे-जैसे बङे होते गए, वह उनसे भिन्न-भिन्न विषयों पर बात करने लगी। वह खुश रहने लगी कि उसकी ज्ञान और उसकी जिज्ञासा की भूख वापिस लौट रही थी।पर फिर भी एक कसक….। तब सासू माँ बहुत बिमार थी और नीलू की आठवी कक्षा, उसने उनसे कहा “नीलू की ट्यूशन लगानी पङेगी मै आजकल उसकी पढाई नही देख पा रही हुँ।” बिना पूरी बात सुने वह तपाक से बोले, “मैने एक पढी-लिखी लङकी से इसलिए शादी की थी कि वह बच्चों की पढाई देख सके। तुम्हारे पढे-लिखे होने का क्या फायदा?” पता नही कैसे उस दिन उसकी भी तल्खी बाहर आ गई, बोली,” क्या!आप जानते हो कि मै पढी-लिखी हुँ?कभी तुम किसी छोटे-बङे फैसले पर मेरी सलाह नहीं लेते। कभी किसी विषय पर हम बात नही करते, किसी समाचार पर भी मैं अपनी राय प्रकट करूँ तो तुम्हे मेरा बोलना पसंद नही आता है” उनका18वीं सदी का जवाब सामने आया,”पढे-लिखे होने से कोई समझदार नहीं हो जाता, फिर मैं बङा हुँ, बाहरी दूनिया देखी है, मुझे तुम क्या सलाह दोगी। और बाते! इतने वर्ष क्या हमने बिना बात किए काट दिए? विभिन्न विषयों में तुम क्या…. छोङों बिना बात की बहस मत करों।”उसे याद आया कि अपनी शादी के कुछ शुरुआती दिनों की बात है जब परिवार के सभी सदस्य  बातचीत कर रहे थे तो वह भी अपने नए परिवार के साथ खुशी-खुशी बातचीत में हिस्सा ले रही थी कि अचानक पति की कठोर आवाज ने चौंका दिया था, “चुप बैठो, तुम्हे बोलने की आवश्यकता नहीं है।” जबकि सास ने कहा अब यह भी घर की सदस्य है, उसे भी बोलने का हक है।” क्या वह तभी उनके 18वीं सदी के दिमाग को नही समझ गई थी? पर शादी तो निभाने के लिए होती है, फिर जब रोटी, कपङा… सब मिल रहा हो तो शादी तो निभ गई न!

स्काइप पर आज वह और मीतु ही बात कररहे थे।दोनो की कोशिश रहती है कि कभी अकेले में बात हो जाए। बेटी माँ के मन का हाल जानना चाहती है और माँ बेटी का….। “अभी भी आपने अंधविद्यालय जाना शुरू नही किया न!जाने लगोगी तो मन बदलेगा।” मीतु बोली, “अरे कई महिनों से नही गई, अब पता नही उनके पास मेरे लिए कुछ काम होगा या नही?” उसने कुछ उलझे हुए स्वर में जवाब दिया। “एक बार जाकर बात तो करो, फिर तुम्हारा काम उन्हे पसंद आ रहा था, बच्चे भी खुश थे।कुछ  नहीं तो इतने दिनों बाद सबसे मिलोगी तो तुम्हें अच्छा लगेगा।” मीतु ने इस बार थोङा जोर देकर भी कहा।

मीतु ठीक कह रही थी, वह अंधविद्यालय में बच्चो को कहानियाँ  सुनाया करती थी।यह भी उसने मीतु के कहने से ही शुरू किया था।तब नीलू कनाडा उसी साल गया था और वह इसी तरह उदास रहने लगी थी। चूँकि मीतु थी इसीलिए वह बेहाल नहीं थी, पर बहुत अजीब हरकते करने लगी थी, यानि मीतु की ओर से अधिक संवेदनशील हो गई थी कि मीतु परेशान हो गई थी तब मीतु ने ही रास्ता निकाला था। उसी ने उसे अंधविद्यालय भेजा था और उसके खोए हुए आत्मविश्वास को जगाया था। विद्यालय में वह बच्चों को कहानियाँ सुनाती और छोटी-छोटी नाटिकाएँ भी कराती थी।मीतु की शादी के कारण उसने वहाँ जाना बंद कर दिया था, अब इतने लंबे अंतराल के बाद….

वाकई वह भी क्यों खुशियाँ एक ही जगह ढूढँती है। मीतु के जाने के बाद उसने कोशिश की, यह सोचकर कि अब उन्हें भी अकेलापन खलता होगा,बातचीत करने की कोशिश की,उनके साथ टी वी पर उनकी पसंद का ही देखती, उस पर टिप्पणी करती ताकि बातचीत बढ़े,साथ मे चाय पीती और बातों मे अपने बचपन या काॅलेज की बात करने की कोशिश करती और कुछ नही तो शादी के शुरु के दिन याद करती, पर पति होने का गरूर आङे  आ जाता। उसे पापा की बात याद आती कि “अपने दामादजी बहुत ज्ञानी और समझदार है।”और वह सोचती कैसे ज्ञानी जो किसी का मन ही न समझ सके। फिर उसने पाया कि वे अकेले नही है,उनकी मित्र मंडली है, जिनके साथ वह अपना समय व्यतीत करते थे। पहले भी घर हमेशा उनके लिए समय से खाने पीने और सोने की जगह रही है।उनसे फिर से दोस्ती की कोशिश से वह और अकेली हो गई है।

अंधविद्यालय जाने का लाभ हुआ और वह फिर उनसे जुङ गई है। बच्चों को आगे बढ़ना था, वे बढ़  गए तो उसे भी तो आगे बढ़ना है। आज भी बच्चे उसके संबल है और वह हमेशा उनके साथ…

पिछले दिनों उसे वायरल हो गया था, पति उसके माथे पर पट्टी रखते रहे, उसे समय पर दवाईयाँ देते रहे। और उसने सोचा हम अच्छे सहयात्री है।