• About

शिखा…

शिखा…

मासिक अभिलेखागार: मई 2019

सीखने-सिखाने की कोशिश- (भाग-12)

27 सोमवार मई 2019

Posted by शिखा in Uncategorized

≈ 4s टिप्पणियाँ

रहिमन मनहि लगाईं कै, देखि लेहू किन कोय।
नर को बस करिबो कहा, नारायन बस होय।

सामान्यतः हम उन बच्चों को प्रतिभाशाली कहते हैं, जो किसी भी विशेष क्षेत्र में सर्वोतत्म कार्य कर दिखाते हैं, हम उनके लिए तालियाँ बजाते हैं, उनके नाम अखबार और मीडिया में प्रसिद्ध होते हैं।
मेरे विचार से तो सभी बच्चे प्रतिभाशाली हैं। पिछले दिनों एक माँ ने मीडिया में एक पोस्ट डाली थी। उसके बेटे ने बारहवीं कक्षा में 60% अंक प्राप्त किए थे, वह अपने बेटे पर गर्व महसूस कर रही थी। एक माँ से अधिक कौन अपने बच्चे की प्रतिभा को पहचान सकता है? उस माँ ने यह कहने का प्रयास किया है कि सिर्फ 90%-100% अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी ही प्रतिभाशाली नही होते है। यह सिर्फ आपके दिमाग में उपस्थित नंबरों का खेल है।

प्रत्येक विद्यार्थी जो मेहनत करता है, पुरज़ोर कोशिश करता है, वह प्रतिभाशाली है, सफलता असफलता के साथ प्रतिभा को नही जोङा जा सकता है। सीखने की इच्छा और आगे बढ़ने की निरंतर कोशिश प्रतिभा परखने के मापदंड हो सकते हैं।

चींटी कितनी बार चढ़ी और कितनी बार गिरी यह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण यह है कि उसने हार नहीं मानी और कोशिश बकरार रखी।

वे बच्चे जिनकी परिस्थितियाँ विकट होती हैं, साधन व सुविधाएँ मामूली व न के बराबर होती है, वे भी सपने देखते हैं व कोशिश करते हैं और मेहनत करते हैं। महत्वपूर्ण यह नहीं कि वे कितने सफल होते हैं? सफलता के आंकङे से उनकी प्रतिभा को आंका नहीं जा सकता है। वे सपने देखते हैं, फिर उनकी मेहनत ही उनको प्रतिभाशाली बना देती हैं। वे अपनी परिस्थितियों व संघर्ष के लिए शिकायत नहीं करते हैं पर बदलाव के लिए निरंतर प्रयास करते हैं। इनकी यही प्रतिभा इन्हें भीङ से अलग खङा कर देती है।

नितिन, सीलु, महीप, प्रेमा और उसकी बहनें आदि, ऐसे कितने बच्चे हैं, जिनमें सीखने की इच्छा और जीवन में आगे बढ़ने का जज्बा कूट-कूट कर भरा होता है। ये वे बच्चे होते हैं, जो दूसरे के जीवन से अपने जीवन की तुलना नहीं करते हैं। अपने जीवन की सच्चाई को स्वीकार करते हुए उससे पूर्णतः संतुष्ट रहते हुए, अपने कठिन पथ पर आगे बढ़ते हैं।

प्रेमा के पिता मज़दूर है और माँ घर- घर जाकर लोगों के घर का काम करती हैं। इस वर्ग के पिता, समाज के सबसे नकारा व्यक्ति होते हैं। दिन- भर मज़दूरी करते हैं, फिर दिन भर की कमाई से शराब पीते हैं। इन्हें अपने परिवार की जिम्मेदारी का अहसास नहीं होता है।

इस वर्ग में माँ मेहनती और हिम्मतवाली होती है, और अपने बच्चों का जीवन सुंदर बनाने का सपना देखती हैं। प्रेमा की माँ ने भी अपनी चार बेटियों का जीवन उज्जवल करने का सपना देखा और बेटियों ने उसका साथ देते हुए उस सपने को पूर्ण किया था।

प्रेमा और उसकी बहनें सरकारी विद्यालय में पढ़ती थी, कई बार शाम को माँ की सहायता करने आती थी, ट्युशन पढ़ती और अपने घर का काम भी करती थी।
प्रेमा की बहन को स्कूल की हाॅकी टीम में चुना गया और पिता के विरोध के बाद भी माँ ने अपनी बेटी का दृढ़ता से साथ दिया था। अपने समाज के विरोध की चिन्ता न करते हुए अपनी बेटियों की शिक्षा पूर्ण करने के साथ, उनके अपने पाँव पर खङे होने के बाद ही उनका विवाह किया था।

ममता अपनी बेटी सीलु को स्कूल पढ़ने नहीं भेज सकी थी। सीलु का पिता शराबी नहीं था, घर की जिम्मेदारियों के प्रति सजग होते हुए भी, वह परंपरावादी था। वह अपनी बेटियों को स्कूल भेजना नहीं चाहता था। पर ममता ने अपनी बेटियों को शिक्षित करने की ठान रखी थी।

सीलु एक समाजसेवी संस्था के विद्यालय में पढ़ने जाती थी। पिता के विरोध के बावजूद ममता उसे स्वयं उस विद्यालय तक छोङने जाती थी।

सीलु भी जब समय होता अपनी माँ के साथ दूसरे घरों में काम करने आती थी। एक दिन ममता ने मुझ से कहा,” आप सीलु की पढ़ाई देखिएगा, इसके पापा कहते है,” तु इसे पढ़ने तो भेजती है, पर इसे कुछ आता नहीं है।” “पर सीलु परीक्षा में तो नंबर लाती है, इसकी अध्यापिका भी इसकी प्रशंसा करती है। यह तो घर पर भी बहुत पढ़ती है।”

एक दिन सीलु अपनी किताबें लेकर मेरे पास आई। मैंने उसे उसकी हिन्दी के पाठ पढ़ने को कहा, उसने पाठ बहुत अच्छी तरह पढ़ा था। उस पाठ के प्रश्नों के उत्तर भी रटे हुए तोते की तरह सुना दिए, फिर बिना देखे, लिख कर भी दिखा दिए। दीपावली का प्रस्ताव जैसा अध्यापिका ने लिखाया बिलकुल वैसा सुनाया भी और लिखकर भी दिखा दिया था, लिखाई बहुत साफ और एक भी शब्द गलत नहीं लिखा था।
इंगलिश में भी ‘My teacher’ पर दस लाइनें सही लिख कर दिखाई, पर पाठ नहीं पढ़ सकी थी। छोटे- छोटे शब्द पढ़ लेती थी।
सवाल भी सब आते थे, वह जमा, घटा गुणा और भाग भी बिना कठिनाई के करती थी।

फिर भी मेरे मन में कुछ शंका थी। मैंनै उसे हिन्दी के अखबार से कुछ पढ़ने को कहा, वह पढ़ नहीं सकी थी। अलग काॅपी में कुछ आसान शब्द लिखकर दिए, वह उन्हें भी नहीं पढ़ सकी थी। जिन पाठों को रटे हुए तोते की तरह पढ़ व लिख भी रही थी, उन्हीं पाठों के शब्दों को बीच- बीच में से पढ़ाने पर वह कठिनाई से कुछ शब्द ही पढ़ सकी थी। उसके अक्षर ज्ञान व मात्राओं की परीक्षा लेने पर उसने शतप्रतिशत सही उत्तर दिए थे। अब समझ नहीं आया कि फिर वह पढ़ क्यों नहीं सकती थी?

उसे अक्षरों व मात्राओं को स्वयं मिलाकर पढ़ना नहीं आ रहा था। यह उसकी विलक्षण प्रतिभा ही थी कि जब कक्षा में पाठ पढ़ कर सुनाया जाता था, तभी उसे पाठ कठंस्थ हो जाता था। उसके दिमाग में शब्दों के चित्र तो बनते थे, तभी वह लिख भी सकती थी, पर उन शब्दों का निर्माण कैसे हुआ, उसको जानने की कोशिश व इच्छा उसमें नहीं थी। वह मेहनत रटने में कर रही थी।

परंतु सीलु जैसे मेहनती बच्चे जब अपनी गलती समझ जाते हैं, तब वह सुधारने में भी पूर्ण लगन से कोशिश करते हैं। एक कठिनाई थी कि सीलु की भाषा साफ नहीं थी, ग्रामीण उच्चारण उसे नए शब्द सीखने में बाधा उत्पन्न कर रहा था ।अतः अंग्रेजी के शब्द सीखने में उसे अधिक कठिनाई आ रही थी। पर निरंतर अभ्यास व मेहनत से सीलु ने अपनी सभी कमियों में सफलता प्राप्त करी थी। मुझे किन्ही कारणों से उस मकान से शिफट होना पङा था। सीलु को छोङने का मुझे बहुत दुख था, वह भी परेशान थी कि उसकी पढ़ाई कैसे होगी?
पर मुझे विश्वास है कि वह हार मानने वालों में से नहीं है। अवश्य ही वह अपने सपने पूरे करेगी।

नितिन अपने माता-पिता व छोटे भाई नितिश के साथ गाँव से शहर आया था। नितिन के पिता ने शहर में माली का काम करना शुरू किया व माँ ने किसी के घर आया का काम ले लिया था। नितिन व नितिश दोनों का प्रवेश एक छोटे प्राइवेट स्कूल में करा दिया गया था। माता-पिता दोनो अल्प शिक्षित थे। नितिन के दूसरी कक्षा में प्रवेश करने पर उन्होंने उसे मेरे पास भेजना शुरू किया था।

प्रथम दिन नितिन आया और फर्श पर बैठ गया जबकि अन्य बच्चे कुर्सी पर बैठे थे। सब बच्चे हैरान- परेशान उसे नीचे बैठा देख रहे थे, वे सब समझ रहे थे कि वह अपने शौक से नीचे नहीं बैठा है, अपितु अपने को निम्न दर्जे का समझ कर उसने नीचे फर्श पर बैठना उचित समझा है।

मैंने उसे बुलाया और अपने पास कुर्सी पर बिठाया तो सभी बच्चो के चेहरे खिल गए और नितिन के चेहरे पर शर्मीली मुस्कान खिल गई थी।
इस बच्चे को उसकी परिस्थिति का इतनी अच्छी तरह ज्ञान कराया गया था कि वह कभी दूसरे बच्चों की कीमती रंगबिरंगी पेंसिल-रबङ इत्यादि वस्तुओं पर निगाह उठा कर भी नहीं देखता था। हमेशा अपनी वस्तुएँ ही प्रयोग में लाना पसंद करता था।

एक अन्य गुण उसमें था कि वह सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान देता था। अन्य बातुनी बच्चे बातें करते, शैतान बच्चे एक-दूसरे को परेशान करते या आपस में लङते भी थे। पर वह किसी पर ध्यान नहीं देता था, न दूसरे ही उसे परेशान करते थे। पर सभी बच्चे उसे पसंद भी करते थे, चूंकि वह तटस्थ रहता और समय पर दूसरों की सहायता भी करता था। जब वह जरूरी समझता तब बातचीत में भाग भी लेता था विशेष रूप से जब मै कोई विषय समझा रही होती थी, वह अपनी शंकाएँ मेरे सामने निःसंकोच रखता था।

एक दिन हम तैराकी पर बात कर रहे थे। गर्मी की छुट्टियाँ शुरू हो गई थी और कुछ बच्चे तैराकी सीखना चाहते थे। इस बात पर चर्चा हो रही थी कि स्वीमिंग पुल का पानी साफ होना चाहिए व तैराकी एक व्यायाम भी है।
तभी मैंने नितिन को देखा, वह अपने काम में व्यस्त होते हुए भी, सबकी बातें ध्यान से सुनते हुए धीमे-धीमे मुस्करा रहा था।
मैंने उससे पूछा, ” तुम छुट्टियों में अपने गाँव जाओगे?”
वह बोला,” हाँ, इसीलिए छुट्टियों का काम जल्दी- जल्दी पूरा कर रहा हुँ।”
मैंने पुछा,” तुम्हें तैरना आता है?
मेरा जवाब उसने शर्माते हुए दिया, ” हाँ, मेरी नानी के गाँव के साथ ही नदी बहती है।”
उसकी बात सुनकर सभी बच्चे दंग थे। मैंने नितिन से कहा कि तुम सबको अपने तैराकी के अनुभव बताओ।

नितिन ने बताया,” मैं बहुत छोटा था जब मेरे मामा मुझे नदी पर ले जाते थे, उनके साथ ही हाथ- पैर चलाते हुए मै तैरना सीख गया था, उसके बाद जब भी मौका मिलता, मैं अपने मित्रों के साथ जरूर तैरने जाता हुँ।छुट्टियों में मुझे गाँव जाना अच्छा लगता है, हम सुबह जल्दी उठते हैं, खेतों में घूमने जाते हैं, नदी में तैरने जाते हैं।”
मानव ने पूछा, ” नदी का पानी साफ होता है?, गंदे पानी में बीमार पङ सकते हैं।”
नितिन ने कहा,” न मैं और न ही मेरे दोस्त कभी बीमार पङे हैं, मेरे दोस्त गाँव में ही रहते हैं, रोज ही तैरते हैं।”
खुशबु ने पुछा,” तुम तैरते हो तो क्या खाते हो? मैं जहाँ तैरने जाती हुँ, वहाँ डाइटिशियन ने मेरी मम्मी को बताया कि तैरना सीखने के लिए विशेष क्या- क्या खाना चाहिए।”
नीतिन बोला,” मैं तो कुछ विशेष नहीं खाता जो नानी और मम्मी खाना बनाती है, वही खाता हुँ। मम्मी और नानी को पता भी नहीं चला था कि मैं और मेरा छोटा भाई कब तैरना सीख गए।”
” इस मौसम में जो भी फल गाँव में लगते हैं, हम वही खाते हैं। गाँव में तो बहुत मजा आता है, हम पेङो पर भी चढ़ते है और दूर- दूर तक दौङ लगाते हैं।”
पहली बार नितिन इतना बोल रहा था और शहरी बच्चें बहुत ध्यान से उसकी बात सुन रहे थे।

नितिन को हर नया काम सीखने में रूचि थी । जब मैंने उससे कहा, ” तुम्हें कुछ समझ न आए तो बार- बार मुझ से पूछ सकते हो, और देर तक यहाँ मेरे पास बैठ कर पढ़ सकते हो।”
तब यह सुन कर वह बहुत खुश हुआ । वह तीन साल मेरे पास पढ़ा था । दूसरे बच्चे उससे अच्छे स्कूल में पढ़ रहे थे परंतु नितिन उन सब बच्चों से होशियार था, वह रटता नहीं था, समझता था ।

मुझे मकान बदलना था, मैंने नितिन से पूछा कि, “अब कहाँ पढ़ोगे?”
उसने पूर्ण आत्मविश्वास से जवाब दिया,” अब तो मुझे पढ़ने का तरीका समझ आ गया है, अपने आप पढ़ लूँगा और छोटे भाई को भी पढ़ा लूँगा।”

कबीर कहते हैं- ” जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा,रहा किनारे बैठ।

Advertisement

सीखने सिखाने की कोशिश-भाग-(11)

08 बुधवार मई 2019

Posted by शिखा in Uncategorized

≈ 2s टिप्पणियाँ

प्रशिक्षित अध्यापक बनने के लिए एन.टी .टी, जे.बी.टी और बी.एड. जैसे कोर्स करने होते हैं। सभी अध्यापकों को बाल- मनोविज्ञान की पूर्ण जानकारी दी जाती है। अध्यापकों के साथ बच्चे जीवन का कुछ समय बिताते हैं, परंतु माता-पिता का साथ तो पूरा जीवन होता है।
प्रश्न यह है कि क्या अपने बच्चों की परवरिश के लिए माता-पिता को प्रशिक्षण की आवश्यक्ता नहीं है?

हमारे देश में आज भी कई पिछङे स्थानों में बाल- विवाह हो रहे हैं, छोटी आयु में ही वे माता-पिता बन जाते हैं । इन अभिभावकों को उनके बच्चों के लालन- पालन के लिए शिक्षित करने के लिए कई सामाजिक संस्थाएँ काम करती हैं, जिसमें बच्चों के स्वास्थ्य व शिक्षा संबधी ज्ञान दिया जाता है।

छोटे शहरों व बङे शहरों के शिक्षित माता-पिता को भी बच्चों के परवरिश के लिए प्रशिक्षित करना आवश्यक है। ये वे माता-पिता होते हैं जो अपने बच्चों को दुनिया की दौङ में शामिल करने के लिए बेताब व बैचैन होते है, साथ ही इस घबराहट के साथ कि क्या हमारा बच्चा दुनिया की दौङ में सफल हो पाएगा?

मेरी मनोवैज्ञानिक मित्र प्राची का कहना है कि ” कई बार जब माता- पिता मेरे पास अपने बच्चे को एक समस्या बच्चे के रूप में लाते हैं तो मैं हैरान होती हुँ कि बच्चे का व्यवहार स्वाभाविक है। समस्या तो माता-पिता के अपने व्यवहार और समझ में होती है। बच्चे का जिद करना व गुस्सा करना एक स्वाभाविक व्यवहार है पर अधिकांशतः माता-पिता बच्चे के गुस्से व जिद को गलत मानते हैं।वे उसे एक आदर्श बच्चा बनाना चाहते हैं। वे स्वयं अपने व्यवहार और स्वभाव को भूल जाते हैं।”
बाल- मनोवैज्ञानिक प्राची का मानना है कि, “प्रत्येक दंपति को माता-पिता बनने से पहले प्रशिक्षित होना आवश्यक है, उन्हें बाल-मनोविज्ञान की गहरी समझ होनी चाहिए। चूंकि बच्चे की परवरिश एक बहुत बङी जिम्मेदारी है।”

प्रत्येक बच्चा एक स्वतंत्र व्यक्त्तित्व लेकर इस दूनिया में आता है ।दूनिया में उसके आस-पास का वातावरण, परिवेश, परिस्थितियाँ व उसके साथ रहने वाले लोगों का स्वभाव और बच्चे के प्रति उनका व्यवहार उसके व्यक्तित्व के नव निर्माण के लिए उसे एक सांचा देते है।
सबसे महत्वपूर्ण बच्चे के प्रति उसके अभिभावक का व्यवहार, उनका अपना सामाजिक व्यवहार और स्वभाव, एक बच्चे के व्यक्तित्व पर प्रभाव डालता है। अभिप्राय यही है कि बच्चे सबसे अधिक अपने अभिभावकों का अनुसरण करते हैं।

लेखक मायाराम पतंग ने अपनी पुस्तक ‘अभिभावक कैसे हो’ में इस तथ्य को विशेष महत्व दिया है कि अभिभावकों का भी प्रशिक्षण आवश्यक है। यह हिन्दी साहित्य में पहली अनूठी पुस्तक लिखी गई है जो अभिभावकों को सिखाती है । इस पुस्तक में लिखा है कि “माता – पिता बच्चों के प्रथम गुरू होते हैं। माता-पिता तो बन ही जाते हैं, पर अच्छे माता- पिता बनना कठिन कार्य है। अच्छे अभिभावक बनने के लिए भी मेहनत करनी होती है। अच्छे अभिभावक वे ही हो सकते हैं जो अपने बच्चे के सर्वागीण विकास पर ध्यान देते हैं।”

प्यार तो सभी अपने बच्चों से करते हैं पर उनके प्रति आप की संवेदनशीलता और उन्हें समझने की कोशिश आपको अच्छा अभिभावक बना सकती है।
लक्ष्य की माँ बहुत महत्वाकांक्षी थी, वह चाहती थी कि उनका बेटा प्रत्येक क्षेत्र में अव्वल आए, जिसके लिए वह बहुत मेहनत करती थी। चूंकि वह एक महत्वाकांक्षी महिला थी अतः उनकी अपने प्रति भी कुछ अभिलाषाएँ थी। इसके लिए उन्होंने स्वयं भी एक छोटा व्यापार करना आरंभ किया था।महत्वाकांक्षी और मेहनती ये दोनो ही गुण सफलता के लिए आवश्यक होते हैं जो उनमें मौज़ूद थे।

पर लक्ष्य अभी मात्र छः वर्ष का था, जब मेरे पास आया था, वह महत्वाकांक्षा और मेहनत दोनो से अंजान था । वह सिर्फ खुश रहना जानता था, और अपनी माँ को खुश देखना चाहता था। अतः माँ की अपेक्षाओं में खरा उतरने के लिए पूरी कोशिश करता व कामयाब भी हो रहा था।

उसकी माँ को अपनी व्यस्तता की मजबूरी में लक्ष्य को मेरे पास पढ़ने भेजना पङा था, लेकिन उन्हें सिर्फ अपने पर विश्वास था। जिस कारण वह लक्ष्य को क्या पढ़ाई करानी है, उसकी एक लिस्ट मेरे पास भेजती थी। यह मेरे काम करने का तरीका नहीं था। लक्ष्य अभी दूसरी कक्षा में आया था, लंबे-लंबे वाक्य लिखना अभी सीख रहा था, अतः लिखने की गति अभी धीमी थी।
आरंभ में लक्ष्य मेरे पास चहकता हुआ आता था, उसे मुझे बहुत कुछ बताना होता था। पर धीरे-धीरे उसका उत्साह कम होता दिखने लगा था।अब लक्ष्य बहुत सहमा होता था और सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देने लगा था । किसी दिन ऐसा लगता कि घर पर शायद उसकी पिटाई लगी हो। लक्ष्य मानव के ही पङोस में रहता था अतः दोनो साथ आते थे। एक दिन मानव अकेला आया और बोला,” आज लक्ष्य देर से आएगा क्योंकि उसकी पिटाई लग रही है।”

मानव ने बताया कि लक्ष्य जब स्कूल से घर पहुँचता है तो उसकी माँ सर्वप्रथम उसकी काॅपियाँ देखती हैं और कक्षा कार्य में हुई गलतियों के कारण उसकी पिटाई होती है। ट्यूशन से जाकर भी वह हम बच्चों के साथ खेलने नहीं आता हैं, पढ़ाई करता है?
लक्ष्य स्कूल की सभी प्रतियोगिताओं में भाग लेता था, प्रतियोगिता की तैयारी में भी पूरी मेहनत की जाती थी, यह प्रसन्नता की बात है कि लक्ष्य सभी प्रतियोगिताओं में अव्वल आता था । परंतु इन प्रतियोगिताओं में खेल प्रतियोगिता नहीं थी।

एक दिन लक्ष्य आया तो उसका मुहँ लाल था, उसका बदन गरम था ।मुझे लगा उसे बुखार है, मानव बोला,” आज भी पिटाई हुई है।”
इस स्थिति में वह पढ़ने में मन लगाएगा, यह सोचना भी व्यर्थ था। मैंने उसकी माँ से बात की, समझाने की कोशिश भी की, ” अभी लक्ष्य बहुत छोटा है, पढ़ाई के लिए इतना दबाव डालना ठीक नहीं है।”
पर उन्हें मेरा सुझाव पसंद नहीं आया था, अपितु यह उनको मेरी दखलअंदाजी लगी थी। अगले दिन से उसने मेरे पास पढ़ना छोङ दिया था।

रिचा की माँ स्वयं बहुत अच्छी अध्यापिका थी। वह पहले अध्यापन कार्य भी करती थी, पर अपने बच्चों के कारण छोङ दिया था। वह रिचा को प्रत्येक पाठ बहुत अच्छी तरह समझाती थी । पेङ-पौधों के विषय में बताने के लिए उसे बगीचे में ले जाती थी। अक्सर पाठों को समझाने के लिए वह उसके साथ प्रेक्टीकल करती थी। रिचा भी होशियार थी, बहुत जल्दी सब समझती थी।

जब मेरे पास आई तब उसकी तीसरी कक्षा का आरंभ था । लिखने की गति धीमी थी और लिखाई भी अच्छी नहीं थी। लेकिन जल्दी ही इसमें सुधार आया था। उसकी छोटी बहन बहुत छोटी थी, अतः माँ उसे कम समय दे पाती थी। तीसरी कक्षा की पढ़ाई उसने बहुत मन से की थी, वह हमेशा खुश रहती थी। रिजल्ट भी अच्छा आया था।

पर चौथी कक्षा में धीरे-धीरे वह क्षुब्ध रहने लगी, पढ़ाई से ध्यान उचटने लगा था। मुझे लगा कि इस आयु में बच्चे खिलाङी होने लगते हैं। कुछ दिन बाद तो जैसे वह मेरे पास पढ़ने नहीं खेलने आती थी। उसका कहना होता, ” आंटी, आप मुझे ज्यादा नहीं पढ़ाओ, घर जाकर फिर पढ़ना तो पङेगा ही, मम्मी स्कूल से आकर पढ़ाती है, फिर आपके पास पढ़ो और घर जाकर दूबारा पढ़ो”

मैंने कहा,” यहाँ सब काम अच्छा करोगी तो घर पर मम्मी को नहीं पढ़ाना पङेगा”
वह बोली,” नहीं, आंटी, मम्मी सिर्फ पढ़ाई की बात करती हैं।”
यहाँ भी समस्या नंबरों की थी । प्रत्येक सप्ताह होने वाली कक्षा परीक्षा का बोझ उसकी माँ ने अपने ऊपर ले रखा था। रिचा में प्रश्न समझ कर उत्तर देने की क्षमता बहुत अच्छी थी। पाठ पर आधारित प्रत्येक प्रश्न के उत्तर बहुत अच्छे देती थी। माँ चाहती थी कि रिचा परीक्षा में प्रत्येक प्रश्न का उत्तर सही लिखकर दें।इस कारण वह उसे पाठ बार-बार समझाती थी। यह समझाना वास्तव में रटाना बनता जा रहा था, यह उन्हें समझ नहीं आ रहा था।

एक दिन रिचा की माँ ने कहा, ” मैंने यह पाठ इतनी बार इसे समझाया था फिर भी रिचा कक्षा परीक्षा में एक प्रश्न का उत्तर नहीं लिख कर आई है।”
मैने उनसे कहा,” यह पाठ रिचा की अध्यापिका ने भी समझाया होगा, आपने भी कई बार समझाया। तो एक बात पर ध्यान दें जब आप पाठ समझा रहीं थी क्या उसका ध्यान आपकी बात पर था? ”
“बच्चें जब बङे हो रहे होते हैं, वह खिलाङी भी हो रहें होते हैं। ऐसा नहीं कि उसे पाठ समझ नहीं आया था, सिर्फ उसका ध्यान बँट रहा है।”
मैंने उनसे उसकी सारे दिन पढ़ने की शिकायत के विषय में बताया था। उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया था।अभिभावकों को बुरा लगता है जब बच्चे उनकी शिकायत किसी अन्य से करते हैं।

मैंने उन्हें कहा कि “शायद वह अपनी छोटी बहन को खेलता देख भी परेशान होती है”
वह बोली, ” हाँ, मुझ से कहती है कि आप छोटी को नहीं पढ़ाती हो।”
मैंने उनसे कहा,” आप उसके अंदर अहसास जगाए कि वह बङी है और अधिक समझदार है। छोटी बहन की कुछ देखभाल उससे कराएँ।अपने को बङा समझेगी तो अपनी पढ़ाई को भी उससे बङा समझेगी।”

छोटी बेटी अब कुछ समय के लिए स्कूल जाने लगी थी और माँ के पास बङी बेटी की चिन्ता करने का अधिक समय हो गया था।
मैंने उन्हें इसका अहसास भी कराना चाहा कि वह स्वयं रिचा को पढ़ाने में समर्थ है। उस पर ट्यूशन का बोझ न डाला जाए।

मुझे अफसोस होता है कि अभिभावक बच्चे के बालपन पर ही पढ़ाई का इतना बोझ डाल देते हैं कि किशोरावस्था तक उनकी पढ़ाई से रूचि समाप्त हो जाती है। फिर भी अभिभावक नहीं समझते और बच्चों को ही दोष देते हैं।

आज का अभिभावक अपने बच्चों को हर गतिविधि में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित तो करता है पर बहुत कुछ सिखाने की चाह में बच्चों से उनका बचपन छीन लेता है।

एक बार प्रसिद्ध भरतनाट्यम नृत्यांगना हेमामालिनी ने कहा कि मैं अच्छी नृत्यांगना अपनी माँ के कारण बनी हुँ। उनके अनुशासन और मेहनत ने मुझे इस मंजिल तक पहुँचाया है। पर आज मैं अपना बचपन याद करती हुँ, जो मुझे कभी मिला ही नहीं था, गुङियों का खेल नही खेला, बाहर मैदान में दौङ नहीं लगाई, दोस्तों के साथ मस्ती नहीं करी, मुझ से मेरा बचपन छीन गया था।

सदस्यता लें

  • प्रविष्टियां (आरएसएस)
  • टिपण्णी(आरएसएस)

अभिलेख

  • नवम्बर 2022
  • अक्टूबर 2022
  • सितम्बर 2022
  • अगस्त 2022
  • जुलाई 2022
  • जून 2022
  • सितम्बर 2021
  • जुलाई 2021
  • जून 2021
  • अप्रैल 2021
  • मार्च 2021
  • फ़रवरी 2021
  • दिसम्बर 2020
  • नवम्बर 2020
  • अक्टूबर 2020
  • सितम्बर 2020
  • जुलाई 2020
  • जून 2020
  • मई 2020
  • फ़रवरी 2020
  • जनवरी 2020
  • दिसम्बर 2019
  • मई 2019
  • अप्रैल 2019
  • मार्च 2019
  • फ़रवरी 2019
  • जनवरी 2019
  • अक्टूबर 2018
  • अगस्त 2018
  • जून 2018
  • फ़रवरी 2018
  • जनवरी 2018
  • दिसम्बर 2017
  • नवम्बर 2017
  • अक्टूबर 2017
  • सितम्बर 2017
  • अगस्त 2017
  • जून 2017
  • मई 2017
  • अप्रैल 2017
  • मार्च 2017
  • जनवरी 2017

श्रेणी

  • Uncategorized

मेटा

  • पंजीकृत करे
  • लॉग इन

वर्डप्रेस (WordPress.com) पर एक स्वतंत्र वेबसाइट या ब्लॉग बनाएँ . थीम: Ignacio Ricci द्वारा Chateau।

Privacy & Cookies: This site uses cookies. By continuing to use this website, you agree to their use.
To find out more, including how to control cookies, see here: Cookie Policy
  • फ़ॉलो Following
    • शिखा...
    • Join 290 other followers
    • Already have a WordPress.com account? Log in now.
    • शिखा...
    • अनुकूल बनाये
    • फ़ॉलो Following
    • साइन अप करें
    • लॉग इन
    • Report this content
    • View site in Reader
    • Manage subscriptions
    • Collapse this bar