घर मेरा है? (माखनलाल चतुर्वेदी )
क्या कहा कि यह घर मेरा है?
जिसका रवि उगे जेलों में,
संध्या होवे वीरानों में,
उसके कानों में क्या कहने
आते हो? यह घर मेरा है?
हो मुकुट हिमालय पहनाता,
सागर जिसक पद धुलवाता,
यह बंधा बेङियों में मंदिर,
मस्जिद, गुरूद्वारा मेरा है।
क्या कहा कि यह घर मेरा है?
मुझे इस स्कूल के बच्चों के साथ समय बिताना अच्छा लग रहा था।मैं इन बच्चों की मौलिक प्रतिभा को विकसित करना चाहती थी।
कुछ बच्चे चित्रकारी अच्छी करते थे, कुछ कहानी व कविता लिखते थे।मैंने उन्हें उनकी रचनाओं में मौलिकता बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया था। मुझे खुशी थी कि वे बच्चे अपनी रचनाएँ लेकर मेरे पास आते व मेरी सलाह को ध्यान से सुनते थे।
इस स्कूल की अध्यापिकाएँ भी प्रशिक्षित नहीं थी, शिक्षित थी, पर आत्मविश्वास उच्च स्तर का नहीं था, वे सब अधिकांशतः निम्न मध्यम वर्ग से संबंधित थी ,अंग्रेजी की पढ़ाई की थी, पर इस भाषा से कामचलाऊ संबध था। अंग्रेजी तो मेरी भी प्रभावशाली नहीं थी।फिर भी सभी अध्यापिकाएँ मेरे अनुभवों से सीखना चाहती थी।
नए सत्र में जब पिछले चार वर्षों से प्रथम कक्षा को पढ़ाने वाली अध्यापिका को प्रिंसिपल ने दूसरी व तीसरी कक्षा पढ़ाने का मौका देना चाहा, तो वह घबरा गई थी। प्रिंसिपल ने सभी अध्यापिकाओं को नई कक्षाएँ पढ़ाने का सुझाव दिया था।प्रिंसिपल का उद्देश्य तो इन अध्यापिकाओं का भी विकास करना था।
वे अध्यापिकाएँ मुझ से मिलीं व अपनी झिझक मेरे सामने रखी थी।जिन कक्षाओं को वे पूर्व दो या तीन वर्षों से पढ़ा रही थी, उसमें उनका अनुभव गहरा व सहज था।उस सहजता को छोङ नई कक्षा को पढ़ाने का अनुभव लेने में वह सब असहज हो रही थी। ये सब वैसा ही था, जैसे किसी छात्र को नए कोर्स को पढ़ने में घबराहट होती है।
मुझे खुशी थी कि वे मेरे पास आईं, उन्हें मैंने याद दिलाया कि वे सब शिक्षित, बुद्धिमान व ज्ञानी है। यह भी अहसास दिलाया कि हम सिर्फ सिखाते नहीं, सीखते भी है।
उन्होंने मुझे विश्वास में लेते हुए कहा कि नया काम करने में उन्हें यदि कोई कठिनाई हुई तो क्या मैं सहायता करूँगी?
मुझे उस समय आनंद की प्राप्ति हुई, जब वे सब अपनी कक्षाओं को पढ़ाने में सिर्फ़ सफल ही नहीं थी अपितु आनंदित भी थीं।
मुझे इस स्कूल में काम करके बहुत खुशी हो रही थी, कुछ नया करने के मौके थे परंतु रीढ़ की हड्डी की समस्या हो गई थी।प्रिंसिपल ने मुझे पुरा सहयोग दिया था।
फिर एस. के. रिटायर हो गए थे । हमें सरकारी आवास छोङना पङा था।
आज मुझे यह स्वीकार करने में संकोच नहीं है कि जीवन में मुझे अच्छे और नए काम करने के अवसर बहुत मिले हैं व मैंने उन पर काम भी किया है, परंतु मैं किसी न किसी कारणवश उस पर स्थिर नहीं रही हुँ। मुझे लगता हैं कि परिस्थितियां सिर्फ बहाना होती हैं, यह आप पर निर्भर करता है कि आप किस परिस्थिति में क्या फैसला लेते हैं?
हम सेक्टर -7 हाउसिंग बोर्ड में एक किराए के मकान में शिफ्ट हो गए थे।मेरे तीनों बेटे अपने-अपने क्षेत्रों में सफल हो रहे थे।सेतु एक अच्छी नौकरी कर रहा था, हम उसकी शादी की योजनाएँ बना रहे थे।
सेक्टर-7, हाउसिंग बोर्ड
सेक्टर-7 हाउसिंग बोर्ड के इस मकान का पिछला भाग रोड पर था व आगे का मुख्य द्वार एक गली में था। चूंकि मकान का पिछला द्वार भी था, हमारा आना-जाना पिछले द्वार से ही होता था।
आगे के द्वार से प्रवेश करते ही एक बङा खुला आंगन था, एक तरफ से सीढ़ियाँ ऊपर जाती थी।नीचे का भाग किराए पर दिया जाता था। ऊपर की दो मंजिलें मकान मालिक श्री सिंह के पास ही थी। अथार्त हम फिर मकान मालिक के साथ रह रहे थे।
अब स्वतंत्र मकानों में स्वतंत्र रूप से रहने की आदत हो गई थी।यह मकान हमने क्यों चुना था? मैं अब किस्मत को मानने लगी थी। किस्मत हमें हमारे पूर्व निश्चित द्वार तक पहुंचा देती है।
आगे का आंगन पार कर दो दरवाजे दो कमरों में खुलते थे। बिलकुल सामने के कमरे को पार कर एक छोटी गैलरी थी, वहीं शौचालय व स्नानाघर था। वह गैलरी चौङी थी, जहाँ हम अपना फ्रिज व वांशिग मशीन रख सके थे।उस गैलरी को ही हमने सेतु की शादी में सब्जी भंडार बनाया था।
उस गैलरी से ही एक दरवाजा किचन में खुलता था। किचन लंबी परंतु पतली थी, पर उसी किचन में सेतु की शादी का काम हुआ था।किचन का दूसरा दरवाजा एक अन्य गैलरी में खुलता था, उस गैलरी से सीढ़ियाँ ऊपर की मंजिलों व छत पर जाती थी व गैलरी के अंत का दरवाजा ही मकान का पिछला द्वार था।
उस द्वार के बाद भी एक चौङा बङा आंगन या दालान था। जहाँ गाड़ियाँ खङी की जाती थी।सेतु की शादी में यहाँ मेहंदी रात की पार्टी बहुत अच्छी हुई थी। सभी रिश्तेदारों की गाङियाँ भी खङी हो सकी थी। सिंह साहब के हम आभारी है। पहले यहाँ एक सुंदर बगीचा भी बनाया था, बाद में उसका पक्का फर्श कर दिया था।
आगे के आंगन से दूसरा दाएं तरफ का दरवाजा, दूसरे कमरे में खुलता था, उस कमरे से दूसरी तरफ के दरवाजे से निकलते ही एक छोटा चौङे भाग के साथ एक अन्य कमरे का दरवाजा था।उस कमरे के पीछे का एक दरवाजा सिंह साहब के ऑफिस का था, जिसे हम बंद रखते थे व उसके साथ ही एक अन्य शौचालय व स्नानाघर था।
सिंह साहब का यह ऑफिस मकान के पिछले भाग में था। सिंह साहब प्रापर्टी डीलर का काम करते थे, लोग उनसे मिलने इस ऑफिस में आते थे। सिंह साहब का एक अन्य ऑफिस शहर के डी. एल. एफ काॅलोनी में था। वह अधिकांशतः अपना काम उसी ऑफिस से करते थे। उनके घर के इस ऑफिस में अब एस. के. बैठने लगे थे। रिटायरमेंट का खाली समय भी व्यतीत हो जाता था।
इस मकान की एक अन्य विशेषता थी कि इस घर की सभी दीवारों में टाइल्स लगी थी। इस मकान में सीलन बहुत थी, अतः टाइल्स लगाकर सीलन को छिपाया गया था।
मकानमालिक सिंह साहब पहली मंजिल पर रहते थे। श्रीमती सिंह बहुत समझदार महिला थी। न वह हमारी जिन्दगी में दखलंदाजी करती थी, न हम उनकी जीवनशैली से मतलब रखते थे। उनसे दोस्ती नहीं हुई थी, पर एक दूसरे के लिए मन में बहुत सम्मान था।
श्री मती सिंह एक कर्मठ महिला हैं। उनकी एक शादीशुदा बेटी थी व बेटा बाहर पूना में नौकरी कर रहा था। इस मकान में रहते हुए ही सेतु की शादी हुई थी, उसके एक साल बाद उनके बेटे की शादी हुई थी।
यह बहुत ही खुशदिल परिवार था, परिवार के सभी सदस्यों से हमें उचित सम्मान व प्रेम मिला था।
मैं इस मकान में आने से पहले बहुत चिंतित थी, जब से गुडगांव आई हुँ, स्वतंत्र मकानों में ही रह रही थी, अब तो सरकारी आवास छोङा था। हम मकान मालिक की टोका-टाकी व दबाव से मुक्त थे। अतः चिन्ता थी कि अब कैसे मकान मालिक के साथ रहना होगा? पर खुशी हुई है, यहाँ समय पूर्णतः शांति से बीता था।
सेतु की शादी के लिए उन्होंने अपनी दूसरी मंजिल भी हमें दी थी। शादी के बाद भी सेतु व जया उसी मंजिल में रहे थे। जब उनके बेटे की शादी हुई तब सेतु को द्वारका शिफ्ट होना पङा था।आज भी हमारे सिंह साहब व उनके परिवार के साथ मधुर संबंध बने हुए हैं ।
इस मकान में भी मेरा ट्यूशन का काम चल रहा था। पर हमेशा वही किया जो सबसे उचित लगा था। हमने इस मकान से भी शिफ्ट होने का फैसला लिया था।
हमारे इस मकान के एक तरफ एक होम्योपैथिक डाक्टर अपने पिता व परिवार के साथ रहते थे। उन्होंने अपने मकान का निचला भाग नितिश के परिवार को दिया था।
नितिश के पिता माली हैं । वह डाक्टर साहब के बगीचे की देखभाल तो करते ही हैं । उनके घर की भी देखभाल करते हैं । नितिश की माँ उनके बच्चों को संभालती हैं व खाना बनाती हैं ।डाक्टर साहब व उनकी पत्नी उनके साथ बराबरी का व्यवहार करते हैं ।
नितिश जब दूसरी कक्षा में था, तब से उसने मेरे से पढ़ना शुरू किया था।वह मेरा प्रिय छात्र था।
मकान के दूसरी तरफ एक बुजुर्ग दंपत्ति रहते थे, इनके तीन बेटे हैं , तीनों विदेश में रहते थे।दो साल में एक बार वह भी बच्चों के पास जाते थे, बच्चे भी मिलने आते रहते थे।यह एक विचारणीय विषय है कि बच्चों की उन्नति के लिए उन्हें कितनी उङान भरने देनी चाहिए । अगर विदेश में बसना ही उन्नति है!
प्रत्येक को अपने जीवन के फैसले लेने का अधिकार है, बच्चों के फैसले पर माता-पिता बाधा नहीं बनते हैं । जीवन में कठिनाई तो है, अकेलापन भी है, पर जीवन में खुशियाँ पाने के रास्ते अनेक हैं ।यह दंपत्ति खुशमिजाज थे।आंटीजी तरह-तरह के पकवान बनाकर खुश थीं और अंकल जी अपने बगीचे को संवारने में खुश रहते थे।हमारे साथ उनके भी संबध अच्छे बने थे।
खुशी कितनी अपनी, कितनी पराई,
जीवन का सार ढूँढ लो,
जीवन का सुख अपने हाथ में,
एक ढर्रे से तो सब सुख पाते,
चलो तुम कोई नया ढर्रा ढूँढ लो,
बच्चों सा मन हो, तो खुशी ही खुशी।