वक्त (गुलज़ार )

वक्त को आते न जाते

न गुजरते देखा

न उतरते हुए देखा

कभी इल्हाम की सूरत

जमा होते हुए इक जगह

मगर देखा है।

यह मकान अन्य सभी मकानों से भिन्न था, बङा व खुला मकान (तीन बैडरूम ) था।
यहां अहसास भी भिन्न थे, पोते के जन्म ने बुजुर्ग होने की प्रक्रिया पर मुस्करा कर मोहर लगा दी थी। यहाँ मैं ट्यूशन कर रही थी, पर अब मेरी दिनचर्या बनी के चारों ओर बँधी थी सिर्फ मैं ही नहीं, परिवार का प्रत्येक सदस्य ही जैसे बनी के अनुकुल चल रहा था।
यहाँ हम बनी के दादा- दादी के रूप में ही जाने जाते थे। अब मैं तो जैसे सबकी दादी बन गई थी।

हमारे दाएं तरफ के मकान में ममता व पुनीत जी ( मेरी छोटी बहन के देवर- देवरानी) रहते थे। हमारे पूर्व परिचित व रिश्तेदार होने के कारण हमें बहुत हौसला था। सेक्टर-23 की सब्जी मंडी, बाजार तक हमारी पहुंच उनके कारण ही सरल हो गई थी।

पुनीत जी का अपना बिजनेस है, ममता एक प्रतिष्ठित स्कूल में अध्यापिका है। उनके दो बेटे हैं, उस समय बङा बेटा मुम्बई में और छोटा बेटा गुङगांव में ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहा था।

इस मकान में पानी की बहुत समस्या थी। कई बार पानी आता ही नहीं था, कभी बहुत कम आता था।मोटर लगी थी, पर पानी का प्रवाह कम होने के कारण, टैंक में पानी भर नहीं पाता था।

यहाँ आने के बाद पता चला कि पानी की समस्या बहुत पुरानी है।स्थानीय वासियों ने सरकारी दरवाजे बहुत खटखटाये, पर समस्या का समाधान नहीं किया गया था।
एस. के. ने सभी पङोसियों को प्रोत्साहित किया था व सबने मिलकर इस समस्या का समाधन करने की पुरजोर कोशिश की थी।समस्या का समाधान आसानी से नहीं हुआ था, लगभग डेढ़ वर्ष में हम पुर्णतः इस समस्या से निबट पाए थे।

हमारे बाएं तरफ के मकान में किराएदार ही रहते थे, पर पानी की समस्या के कारण, वे जल्दी मकान खाली कर देते थे।
उस मकान के साथ के मकान में गुप्ता जी का परिवार रहता था । मिस्टर गुप्ता व मिसेज गुप्ता मिलनसार दंपत्ति थे।उन्होंने भी पानी की समस्या सुलझाने में अपना बहुत सहयोग दिया था।

उनके एक बेटा व एक बेटी थे। बेटा सोनु मानसिक रूप से कुछ कमजोर था।सोनु तब 13-14 वर्ष का था, उसकी छोटी बहन काव्या उससे चार वर्ष छोटी थी।

सोनु को जन्म के तुरंत बाद पीलिया हो गया था। डाक्टर की लापरवाही से उसे इलाज मिलने में देर हो गई थी। ईश्वरीय कृपा से वह बच तो गया पर उसके दिमाग पर असर पङा था।दिमाग की एक ऐसी नस प्रभावित हुई थी, जिसके कारण उसे कम दिखता था। दिमाग की कमी के कारण वह अपने व्यवहार में अपनी आयु से पिछङा दिखता था।एक डॉक्टर की लापरवाही ने उस बच्चे के जीवन में संघर्ष, दुख व तकलीफ़ लिख दी थी।

कुछ व्यवसायों में लापरवाही का कोई स्थान नहीं होता है। हम डाक्टरों की लापरवाही के कारण बहुत लोगों की जिंदगी बर्बाद होते देखते हैं।

सोनु के माता-पिता उसके जीवन को संवारने के लिए बहुत मेहनत कर रहे थे।उसे एक विशेष विद्यालय में पढाया जा रहा था। वह अपनी आयु से पीछे अवश्य था, पर उसकी बुद्धि बहुत तीव्र थी। वह बहुत ध्यान से चीजों को देखता समझता था। तकनीकी समस्याओं को और उनके हल को वह शीघ्र समझ लेता था। उसे चलने में हल्की-फुल्की कठिनाई अवश्य थी, पर वह फुर्तीला था। अपने विद्यालय की ओर से वह स्केटिंग में पारंगत था व उसने जिला प्रतियोगिता जीती थी।

वह मेरे पास पढ़ने आता था।सिर्फ उसे पाठ याद करने में कठिनाई थी, अन्यथा वह पाठ के सभी तथ्य भली-भांति समझ लेता था।ऐसे बच्चों के लिए कोई विशेष पाठ्यक्रम नहीं बनाया जाता है। किताबें भी भिन्न नहीं होती हैं ।हां, पढ़ाने की तकनीक भिन्न होती है।
सोनु एक संवेदनशील बच्चा था।वह बनी से बहुत प्यार करता था।

हमारे घर के सामने एक परिवार रहता था, पिता अपने गांव में रहते थे,और माँ व दो बेटे उस मकान में रह रहे थे।बङे बेटे को गुङगांव में एक अच्छी नौकरी मिल गई थी, इसीलिए माँ अपने दोनों बेटों के साथ यहाँ रहती थी। छोटा बेटा तब आठवीं कक्षा का विद्यार्थी था।
आरंभ में गांव से आकर यह परिवार हमारे इस मकान में रहा था, पर इस मकान की पानी की समस्या व सभी बैडरूम ऊपरी मंजिल में होने के कारण, उन्होंने मकान बदल लिया था।

पहले ही दिन वह स्वयं अपने बङे बेटे के साथ आईं व बेटे ने हमें पानी व पानी की मोटर के सिस्टम को समझाया था।हमें वह कुछ अस्वाभाविक तो लगा था, पर उस समय व्यस्तता के कारण ध्यान नहीं दिया था।

बाद में वह एक बार मुझ से मिलने आई, तब उन्होंने अपने परिवार की गंभीर जेनेटिक बिमारी के विषय में बताया था। इस बिमारी का नाम मुझे याद नहीं , पर इस बिमारी में एक स्वस्थ व्यक्ति धीरे-धीरे नेत्रहीन हो जाता है उनके ताऊ ससुर व देवर भी इसी बिमारी के कारण दृष्टिहीन थे। ।इस दृष्टिबंधता की बिमारी ने उनके बङे बेटे को नेत्रहीन कर दिया था ।उनके पति पूर्णतः स्वस्थ थे।

जब उनका बेटा 10वर्ष का था, उसकी दृष्टि कमज़ोर होने लगी थी। डाक्टर ने उन्हें बता दिया था कि इस बिमारी में धीरे-धीरे दृष्टि कमज़ोर होती है और फिर पूर्णतः दृष्टिहीन हो जाते हैं। 18 वर्ष की आयु तक वह दृष्टिहीन हो गया था। बेटा होनहार था, अपनी स्थिति को समझते हुए, उसने हमेशा अपनी शिक्षा पर ध्यान दिया था। उसने एम.बी.ए. किया था , अब एक अच्छी नौकरी कर रहा था।वह अपने कामों के लिए किसी पर निर्भर नहीं था।

उनके छोटे बेटे पर भी इस बिमारी ने अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया था।
विज्ञान ने अभी बहुत खोज करनी हैं , जिससे संसार से लाइलाज बिमारियों का निदान हो सके।
जब हम दूसरों के दुःख व कष्ट देखते हैं, तब हम ईश्वर को धन्यवाद देते हैं कि हम सुखी है, और इतने दुःख के बाद भी वे लोग खुश ही नहीं रहते, अपितु नित हौसले से बढ़ते हुए, अपने संघर्ष के रास्ते पर हँसते-हँसते चलते जाते हैं, यही हमारे सच्चे प्रेरक होते हैं ।

सेक्टर -7 एक्सटेंशन में हमने एक प्लॉट खरीदा था और अब उस पर मकान बनाने का काम शुरू करना था। सेक्टर -23 में हम दो वर्ष रहे थे।सेक्टर 23 से प्रतिदिन मकान बनाने की प्रक्रिया को संभालने में कठिनाई थी, अतः हमने सेक्टर -7 के पास सेक्टर-9 में एक फ्लैट किराए पर ले लिया था।

यह फ्लैट एक हाउसिंग सोसाइटी में था। जम्मू- कश्मीर बैंक ने अपने कर्मचारियों के लिए सोसाइटी बनाई थी।इस सोसाइटी में कश्मीरी, बंगाली, तमिल व पंजाबी इत्यादि प्रदेशवासी रहते थे। सोसाइटी छोटी थी पर फ्लैट अच्छे बने थे।

अंडरग्राउंड पार्किंग स्थल था। चार विंगस में यह सोसाइटी बनी थी। प्रत्येक विंग पांच मंजिला थी। प्रत्येक मंजिल में तीन फ्लैट बने थे। दो फ्लैट तीन बैडरूम के थे, एक फ्लैट दो बैडरूम का था।

हमारा तीन बैडरूम का फ्लैट पहली मंजिल में था। सीढ़ियाँ चढ़ते ही हमारा फ्लैट था। सीढ़ियों के सामने स्टोरेज स्थान था, जहाँ पर्दा डालकर हमने बहुत सामान रखा था।

फ्लैट में एक चैनल गेट व एक लकङी का दरवाजा था, दोनों दरवाजों के बीच एक चौङा ब्लाॅक था, जिसमें एक अलमारी बनी थी।मुख्य दरवाजा पार करते ही, दाएं तरफ एक छोटा बैडरूम था, उसके सामने सिर्फ दो सीढ़ी चढ़कर डाइनिंग हाॅल था व किचन थी।
डाइनिंग हाॅल व किचन के साथ बाॅलकोनी थी।

डाइनिंग हाॅल लंबा व बङा था, जिसमें एक छोर पर किचन थी तो उसके ठीक सामने दूसरे छोर पर एक बङा बैडरूम था। इस बैडरूम में एक छोटा स्टोर भी था व दो खिङकियाँ थी। डाइनिंग हाॅल में भी दो बङी खिङकियाँ थी।

यह फ्लैट हवा की आवाजाही की दृष्टि से खुला फ्लैट था।
डाइनिंग हाॅल के अंत में, इस बैडरूम से पहले फिर दो सीढ़ी थीं ।
यहाँ सीढ़ी से उतरते ही बाथरूम व एक बैडरूम था। इस बैडरूम में भी दो खिङकियाँ थी।सभी कमरों में खिङकियाँ थीं।

मुख्यगेट से प्रवेश करते ही व आरंभ के बैडरूम के पास से गुजरते ही ड्राइंगरूम था। ड्राइंगरूम के साथ एक बाॅलकोनी थी।। मकान बङा व खुला बना था। किचन भी बहुत अच्छी बनी थी, सामान रखने के लिए डाइनिंग हाॅल में भी शेल्फ बने थे।

बनी लगभग पौने दो साल का था, उसे इस फ्लैट में बहुत आनंद आ रहा था।हमारे फ्लैट के ठीक नीचे पार्क था। बनी वहाँ खेलने, झूला झूलने में बहुत खुश होता था।वह बाॅलकोनी से भी नीचे की रौनक देख बहुत खुश होता था।

कुछ मसले जो लिखे जा न सके,

कुछ ऐसे भी जो पढ़े जा न सके।

इन मसलों में न फंस तू प्राणी!

यह मसले नहीं, यह ज़हर है,

इसमें न उलझ!

तू आगे बढ़, तू आगे बढ़ !