स्वर्गिक यात्रा
जीवन में उल्लास व आशा दिखती है तो मृत्यु में रहस्यमय भय व निराशा है। यह सच है कि जीवन है तो मृत्यु भी अवश्यंभावी है।
मृत्यु क्या है? कैसी है? उसके बाद क्या? ऐसे अनेक प्रश्न मृत्यु से जुड़े है।
मृत्यु की रहस्यमयी प्रवृति मन में भय पैदा करती है।
जीवन के अंतिम पङाव में मृत्यु का ख्याल एक अनिश्चितता पैदा करता है।
माँ की बिमारी ने जहाँ हम उनके अपनों को चेताया था, वहाँ माँ भी निश्चित हो गई थी कि यह जीवन पूर्ण हुआ जाता है।
‘अनजाना भयभीत मन’
क्या मैं प्रसन्न हूँ ?
कि
जिस वक्त का था इंतजार ,
आखिर वो आ गया।
अगर हां , तो फिर यह डर कैसा?
यूं तो प्रभु! होती तो हूँ, मैं तुम्हारे ध्यान में ,
पर हर स्वर पर चौंक जाती हूँ ,
क्यों ?
पूर्णतः शांति, बेआवाज़ डराती है मुझे ,
क्यों ?
अकेला होना भयभीत करता है,
क्यों ?
लेटना चाहती हूँ , पर-
लेट कर सोने का ख्याल सहमा देता है,
क्यों ?
क्या यह मृत्यु का भय है?
गर जानती हूँ कि उस पार भी खुशी है,
तो यह भय क्यों ?
गीता के तुम्हारे प्रत्येक अक्षर पर,
विश्वास है मुझे,
पूर्णतः तुम पर विश्वास है मुझे ,
तो यह भय!
क्यों ?
इस शरीर से भी मोह नहीं मुझे,
पर प्राणों के निकलने का भय!
क्या यही है वो डर!
ओह! यह बैचेनी !
ईश्वर ! मेरी हर सांस तेरा नाम लेती!
लेकिन
जब यह सांस निकलेगी इस शरीर से-
तब क्या ले पाऊँगी नाम तेरा?
क्या यही है वो डर?
पर
मै शांत भी हूँ ,
तुम हो साथ मेरे,
यह है विश्वास है साथ मेरे,
पर हूँ तो साधारण मानस,
तब न हो दर्द –
यह भय है क्या?
अब तो तुम्हीं पार लगाओगे!
हाथ तुम्हारा थाम,
भवसागर पार जाऊँगी ।
क्रमशः
kehankar ने कहा:
अविश्वसनीय लिखा है,दिल भीग गया..
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शिखा ने कहा:
धन्यवाद ।
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साधना ने कहा:
मर्मस्पर्शी उस पार जाने की यात्रा
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शिखा ने कहा:
Thankyou ❤️
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