स्वर्गिक यात्रा
एक खूबसूरत अनोखे , अनमोल, अवर्णनीय दृश्य के हम साक्षी बने, यह हमारा सौभाग्य था।
वह जा रहीं थी और हम भजन गा रहे थे, हमें किसी ने नहीं कहा था, हमने एक-दूसरे से भी भजन गाने के लिए , नहीं कहा था, पर हम उस दृश्य में डूब गए थे। जैसे कि हम अनुभव कर सकते थे कि माँ को लेने स्वयं प्रभु आए हैं ।
माँ का उज्जवल , शांत चेहरा हमें अभिभूत कर गया था। मुझ अज्ञानी के पास शब्द नहीं कि उस दृश्य को शब्दों में बाँध संकू।
‘स्वर्गिक आनंदित पल ‘
आज मैं आनंदित , उल्लसित,
तुम मुझे लिवाने आए हो,
मेरे प्रभु! तुम मेरे द्वारे आए हो,
आनंदित, उल्लसित दीवानी हुई जाती मैं,
आरती गाऊँ ,भजन गाऊँ?
धूप जलाऊँ, दीप जलाऊँ ?
मैं दीवानी, कुछ समझ न पाती हुँ,
तुम मुझे लिवाने आए हो,
द्वार पर फूल बिछाऊँ,
दीपों की माला सजाऊँ,
या
स्वयं दीप बन जाऊँ ,
आनंदित -उल्लसित दीवानी हुई जाती मैं ,
तुमने थाम मुझे रथ पर बिठाया है,
वाह! यह स्वर्गिक आनंदित पल,
मैं तुम में लीन हुई जाती हुँ,
यह सुंदर भजन स्वर!
हाँ ……….मेरे उत्तराधिकारी……….
तुम्हारे स्वागत में, मेरी अंतिम विदा पर,
भजन गाते हैं ।
तुम्हारी कृपा से इन्होंने मेरा-
यह अंतिम मार्ग सुलभ कराया है।
मैं आनंदित , उल्लसित बाल- सुलभ, किलकारी करती,
तुम संग इन पर शुभाशीषों की वर्षा करती हूं। :
जानती हुँ, विश्वास है मुझे-
तुम संभालोगे इन्हें ।
मैं तो आनंदित, उल्लसित, बस
दीवानी हुई जाती हूँ,
तुम मुझे लिवाने आए हो।
क्रमशः
kehankar ने कहा:
अनुपम…
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शिखा ने कहा:
शुक्रिया ।
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साधना ने कहा:
आनंद से भरा अविस्मरणीय संस्मरण।
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शिखा ने कहा:
Thankyou 🥰
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