ज्ञान की केवल एकमात्र कुंजी
विवेकानंद जी कहते हैं कि एकाग्रता की शक्ति ज्ञान के कोषागार खजाने की केवल एकमात्र कुंजी है।
हम अपने शरीर की वर्तमान अवस्था में बहुत व्यग्र रहते हैं और मस्तिष्क ऐसी वस्तुओं में अपनी शक्ति के टुकड़े कर रहा है।
जैसे ही मै अपने विचारों को पुकारता हुँ और अपने मस्तिष्क को ज्ञान के किसी एक तत्व पर एकाग्र करने लगता हूँ, हजारों अनिच्छित प्रवृत्तियाँ मस्तिष्क पर झपट पङती हैं, हजारों विचार दिमाग पर आक्रमण कर इसे व्याकुल करते हैं।
कैसे इसे जांचा जाए और मस्तिष्क को कैसे नियंत्रित किया जाय ये समस्त विषय राजयोग के अध्ययन में हैं ।
ध्यान का अभ्यास ही मानसिक एकाग्रता की ओर ले जाता है।
मेरे लिए शिक्षा का संपूर्ण सार मस्तिष्क की एकाग्रता है न कि तथ्यों को एकत्र करना।
यदि मैं अपनी शिक्षा दुबारा प्राप्त करूं, मैं तथ्यों को एकत्र नहीं करूंगा।मैं एकाग्रता और पृथ्क्करण की शक्ति का विकास करूंगा और तब एक पूर्ण प्रवीण यंत्र के साथ तथ्य एकत्र होंगे।
मेरी समझ
मन की एकाग्रता ही एक समस्या है, हम अपने चंचल मन को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं । ज्ञान प्राप्त करने के लिए
मन को साधने का ही अभ्यास करना है।
एकाग्रता के लिए ब्रह्मचर्य आवश्यक है
विवेकानंद जी कहते हैं, “जो 12वर्ष की अवधि के लिए ब्रह्मचार्य का अनुसरण करता है, उसके पास शक्ति आती है।
पूर्ण सयंम महान (विशाल) बुद्धि और धार्मिक शक्ति देता है।नियंत्रित इच्छा उच्च परिणाम की ओर अग्रसर होती है।
वासनात्मक शक्ति का धार्मिक शक्ति में हस्तांतरण होता है। शक्तिवान इस शक्ति के साथ अधिक से अधिक कार्य कर सकता है।
आत्मसंयम की अवेहलना के कारण, हमारे देश में प्रत्येक वस्तु बर्बादी के तट पर है। कठोर ब्रह्मचार्य का अनुसरण करके, बहुत कम समय में समस्त सीखने वाली वस्तुओं में विशेषज्ञ बना जा सकता है।
एक बार जो सुना या जाना, वह हमेशा याद रहे, ऐसी कभी न मिटने वाली स्मरण शक्ति की प्रत्येक व्यक्ति को आवश्यकता है। एक पवित्र मस्तिष्क में अत्यधिक शक्ति और विशाल इच्छा शक्ति है।
शुद्धता के बिना धार्मिक ताकत नही हो सकती है। संयम मानव प्राणी के ऊपर महान नियंत्रण प्रदान करता है।
प्रत्येक बालक को पूर्ण ब्रह्मचर्य के अभ्यास में प्रशिक्षित होना चाहिए, तब विश्वास और श्रद्धा आएगी।
विचारों, शब्दों और क्रियाओं में शुद्धता और प्रत्येक स्थिति में शुद्धता ही ब्रह्मचार्य कहलाता है।
अपवित्र कल्पना वैसे ही बुरी है, जैसे अपवित्र कार्य ।एक ब्रह्मचारी को विचारों, शब्दों और क्रियाओं में शुद्ध होना चाहिए ।”
मेरी समझ
जीवन में सयंम रखने से व्यक्ति मन और कर्म से शुद्ध हो जाता है, ऐसे व्यक्ति को मन को साधने में कठिनाई नहीं आती है
श्रद्धा समस्त विकास का आधार है।
श्रद्धा का विचार हममें फिर से लाया जाना चाहिए । हमारा अपना स्वयं में विश्वास फिर से जागृत होना चाहिए और तब हमारा देश जिन समस्याओं का सामना कर रहा है, धीरे-धीरे हमारे द्वारा सुलझ जाएगी।
हम कैसी श्रद्धा चाहते हैं ? जो आदमी आदमी में अंतर होता है, वैसा ही श्रद्धा में अंतर हैं और कुछ नहीं है।
जो एक आदमी को महान बनाता है और दूसरे को कमजोर, यह एक श्रद्धा है।
मेरे गुरू अक्सर कहा करते थे, जो अपने को कमजोर सोचता है, वह कमज़ोर बनता है, और यह सच है।
ऐसी श्रद्धा तुममें होनी चाहिए।
जो तुम भौतिक विषय में देखते हो, पाश्चात्य दौङो या उन्नतियों द्वारा उत्पादन इस श्रद्धा को बाहर लाता है, क्योंकि वह अपनी मांसपेशियों पर विश्वास करते हैं । और यदि तुम आत्मा पर विश्वास करते हो तो कितना अधिक कार्य करोगे।
मेरी समझ
हम जैसी भावना अपने लिए रखते हैं, हम वैसे ही बन जाते है।अतः हमें अपने ऊपर विश्वास रखना चाहिए। हमारा आत्मविश्वास हम से बङे से बङा कार्य करा सकता है।
एक वह बनता है जो वह सोचता है
विवेकानंद जी कहते हैं, ‘ मैं यह एक सत्य समझाना चाहता हूँ। कोई भी अच्छाई आदमी से बाहर नहीं आती। जो रात – दिन सोचता है वह कुछ नहीं है, वह ‘कुछ नहीं’ बन जाता है।
यदि तुम कहते है, मैं हूँ, मैं हूँ , इसलिए तुम होंगे, यह महान सच्चाई है, तुम्हें याद रखनी चाहिए ।
हम परमेश्वर की संतान है, हम अपरिमित दैवीय अग्नि के अग्निकण हैं ।
हम कैसे कुछ नहीं हो सकते? हम सब कुछ हैं , सब कुछ करने को तैयार हैं, हम सब कुछ कर सकते हैं ।
हमारे अंदर का यह विश्वास, हमारे पूर्वजों के ह्रदय में था, हमारे में यह विश्वास, एक प्रेरक था, जो सभ्यता के विकास की तीव्र गति में आगे बढ़ा दिया गया था।
यदि वहां कुल की मर्यादा भंग है, यदि वहां गलती है, तुम पाओगे कि कुल की मर्यादा का त्याग उस दिन से शुरू हो गया था, जिस दिन हमारे लोगों ने अपने अंदर यह विश्वास खो दिया था।
श्रद्धा या सच्चे विश्वास के सिद्धांत का उपदेश मेरे जीवन का कर्म है। अब मैं तुम्हें दुहराता हूँ कि यह विश्वास मानव के महत्वपूर्ण तत्वों में से एक है।
प्रथम तुम्हारे अंदर स्वंय पर विश्वास होना चाहिए ।
यह जानो कि किस प्रकार एक छोटा बुलबुला होता है और दूसरी उच्च शिखर की लहर होती है, इन दोनों, बुलबुले और लहर के पीछे अपरिमित समुद है।
अपरिमित सागर मेरा पिछला आधार है, जिस प्रकार तुम्हारा है। मुझमें भी जिन्दगी का, शक्ति का, आध्यात्मिकता का सागर है जैसे तुम्हारा है।
इसीलिए मेरे भाइयों! इस जीवन को बचाना, महान प्रतिष्ठा को बढ़ाना, ऊँचे सिद्धांत अपने बच्चों को सिखाओ, यहां तक कि तब से जब से उनका जन्म हुआ है, उन्हें सिखाओ।’
मेरी समझ
हमारे अंदर बहुत अच्छाईयाँ हैं, हमें उन पर विश्वास रखना चाहिए।हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति पर विश्वास करना चाहिए। अपने बच्चों को भी यह सिखाना चाहिए । विश्वास, आत्मविश्वास ही जीवन संघर्ष की शक्ति है।