सेवा ही पूजा है
‘स्वतंत्रता, विकास की पहली शर्त है।’ स्वामी जी कहते हैं यह बात एक बार नहीं हज़ार बार गलत है कि तुम में से कोई भी यह कहता है कि ” मैं इस औरत या इस बच्चे की मुक्ति के लिए काम करूंगा।”
छोड़ दो! वे अपनी समस्याएं स्वयं सुलझाएंगे।तुम कौन हो? यह मानने वाले कि तुम सब जानते हो?
तुम यह सोचने कि हिम्मत कैसे कर सकते हो कि तुम्हारा ईश्वर से ऊपर अधिकार है।
क्या तुम नहीं जानते कि प्रत्येक आत्मा ईश्वर की आत्मा है।’
स्वामी जी कहते हैं कि ‘प्रत्येक में ईश्वर देखो। तुम केवल सेवा कर सकते हो।
यदि तुम्हारे पास संसाधन है तो ईश्वर की संतानों की सेवा करो।
तुम भाग्यवान हो कि ईश्वर ने तुम्हें उसके किसी बच्चे की सेवा के लिए अपनी स्वीकृति दी है।
तुम भाग्यवान हो कि तुम्हें वो विशेषाधिकार मिला है जो दूसरों के पास नहीं है।
इसे केवल पूजा की तरह करो।’
मेरी समझ
हम सब ईश्वर की संतान है, हमारे सभी कर्म ईश्वर की आराधना है।हमें अपना जीवन दूसरों की सेवा में अर्पित करना चाहिए , यही ईश्वर की सच्ची पूजा है।
विचारों का समावेश
‘शिक्षा सूचनाओं का भंडार नहीं है, जिन्हें तुम्हारे दिमाग में भर दिया जाए, जहाँ वे मिलकर उपद्रव करे और तुम पूरे जीवन उसे हजम न कर सको।’
विवेकानंद जी कहते हैं, ‘हमारे पास जीवन- निर्माण, व्यक्ति- निर्माण व चरित्र – निर्माण के विचारों का सम्मिलन होना चाहिए ।
यदि तुम पांच ऐसे विचारों को ग्रहण करते हो, जिससे तुम्हारे जीवन व चरित्र का निर्माण होता हो, तब उस व्यक्ति से भी अधिक तुम्हारे पास शिक्षा है, जिसने संपूर्ण पुस्तकालय रट लिया है।’
वे कहते हैं , ‘ यदि शिक्षा का अर्थ सूचनाएं हैं , तब पुस्तकालय संसार के महान संत और विश्वकोश ऋषि हो सकते हैं ।’
मेरी समझ
शिक्षा का अर्थ सूचनाएं एकत्रित करना नहीं है, जैसा कि आज की रटन शिक्षा प्रणाली है , जहाँ बालकों को पाठों को रटना सिखाया जाता है।
हमें बच्चों को ऐसे विचारों को प्रदान करना चाहिए , जिससे उनके चरित्र का निर्माण हो सके उनकी सोचने-समझने की शक्ति का विकास हो सके व वे स्वयं के विचारों का निर्माण कर सके।
गलत शिक्षा
‘दूसरों के विचारों को विदेशी भाषा में रट लेना और उससे अपने दिमाग को भर लेना और कुछ विश्वविद्यालय की डिग्रियां प्राप्त करके, तुम सोचते हो तुम शिक्षित हो। यह शिक्षा है? इस शिक्षा का उद्देश्य क्या है ? ‘
विवेकानंद जी इस शिक्षा प्रणाली पर अपनी नाराजगी दिखाते हुए कहते हैं, ‘ क्लर्की, वकील या बहुत अधिक तो डिप्टी मैजिस्ट्रेट जो क्लर्की का ही एक दूसरा रूप है। यही सब न!
इससे तुम्हारी या देश की क्या भलाई है ?
आँखें खोलो! देखो! अन्न का भंडार भारत, भूख से बिलख रहा है।”
क्या तुम्हारी यह शिक्षा इस कमी को पूरा करेगी?
ऐसी शिक्षा जो आम जनता को जीवन संघर्ष के लिए मददगार न हो, जो चरित्र की ऊर्जा को निकाल न सके, जो एक दयालु आत्मा या शेर जैसी हिम्मत न दे सके, ऐसी शिक्षा का क्या मूल्य है।’
मेरी समझ
हमारी शिक्षा प्रणाली रटन प्रणाली है, यह व्यक्ति को विचारवान नहीं बनाती है।किताबों में लिखी सूचनाओं को रटना शिक्षित होना नहीं है।
शिक्षा का अर्थ व्यक्ति को जीवन संघर्ष के लिए तैयार करना है, उसके अंदर की छिपी प्रतिभा को बाहर निकालना है ।उसे ऐसा विचारवान और कर्मशील व चरित्रवान बनाना है, जिससे उसे स्वयं व देश समाज को लाभ हो।
शिक्षा की आवश्यकता
स्वामी जी ने कहा, ‘हमें ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जो व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करे, दिमागी शक्ति को विकसित करे, बुद्धिमत्ता को पैना करे और उसे अपने पांव पर खङा कर सके।
हमें क्या पढ़ने की आवश्यकता है, विदेशी सत्ता से स्वतंत्रता, हमारे अपने विभिन्न ज्ञान उसके साथ अंग्रेजी भाषा व पाश्चात्य विज्ञान।हमें तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता है, जिससे हम अपने उद्योगों को विकसित कर सके, जिससे व्यक्ति अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए तो उपार्जन कर ही सके साथ ही कठिन समय के लिए भी बचा सके।’
मेरी समझ
शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के व्यक्तित्व व बुद्धि का विकास होना चाहिए। शिक्षा ऐसी हो जिससे व्यक्ति उसके जीवन संघर्ष के लिए मजबूत बन सके।
व्यक्ति निर्माण का उद्देश्य
विवेकानंद जी के अनुसार,
‘व्यक्ति का निर्माण ही समस्त शिक्षा-प्रशिक्षण का उद्देश्य होना चाहिए । प्रशिक्षण जो व्यक्ति को तत्कालीन व भविष्य की समस्त समस्याओं को सुलझाने में सहायक है ,वही शिक्षा है।
हमारे देश को चाहिए, लोहे की मांसपेशियां, स्टील की नाङियाँ और विशाल अभिलाषाएँ, इच्छाशक्तियाँ जो उन्हें कुछ भी करने से रोक न सके, जो ब्रह्मांड के समस्त रहस्यों जानने के लिए रूक न सके, अपने उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए वे समुद्र के तल तक जाने के लिए, मृत्यु का सामना करने के लिए तैयार हो।
यही व्यक्ति निर्माण धर्म हम चाहते है, यही व्यक्ति निर्माण सिद्धांत चाहते हैं , यही व्यक्ति निर्माण शिक्षा सबके लिए हम चाहते हैं ।’
मेरी समझ
शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का संपूर्ण मानसिक, बौद्धिक व शारीरिक विकास होना चाहिए ।
क्रमशः