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मासिक अभिलेखागार: जुलाई 2022

स्वामी विवेकानंद   (भाग-10)

28 गुरूवार जुलाई 2022

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हमारा तीव्र विकास

प्रत्येक बच्चा अपनी बाल्यावस्था में अपनी दौङ में उपस्थित होते हुए विभिन्न अवस्थाओं को पार करता है। इस ‘दौङ’ को स्वयं विभिन्न चरणों को पार करने में हजारों वर्ष लगे हैं जबकि एक बच्चा कम वर्षों में यह दौङ पारकर जाता है।

यह बच्चा ही हमारा प्रथम आदिकालीन मानव है- और यह एक तितली को अपने पांव तले कुचल देता है ।

बच्चा हमारे प्राथमिक  पूर्वज की भांति है। उस आदिमानव की भांति वह बच्चा विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हुए, अपनी दौङ के विकसित चरण तक पहुंचता है। वह इसे बहुत सहजता से और तीव्र गति से करता है।

अब हम संपूर्ण मानवता को एक दौङ की तरह लेते हैं या न्यूनतम कमजोर जानवर से मनुष्य तक संपूर्ण प्राणी रचना को लेते हैं ।इसका अंत जिस संपूर्ण चक्र की ओर जाता है। उसे हम प्रवीणता कहते है।

कुछ स्त्री-पुरुष जब जन्म लेते हैं, उनका ऐसा पुर्वानुमान होता है कि यहीं मानव जाति का पूर्ण विकास है।

वे यह मानते हैं कि इसके स्थान पर कि इस मानवीय दौङ मे प्रवीणता प्राप्त करने के लिए युगों तक बार-बार जन्म लिया जाए, ये लोग अपने इस वर्तमान जीवनकाल के कुछ समय में ही तेजी से इस प्रवीणता को पाते हैं ।

जैसा हम जानते हैं कि इस प्रक्रिया में हम तीव्र हो सकते हैं ,यदि हम अपने प्रति सच्चे हैं।

यदि कुछ व्यक्तियों को किसी भी संस्कृति के बिना, बहुत कम भोजन, वस्त्र और आवास की सुविधा के साथ एक द्वीप में छोड़ देते हैं,वहां वे स्वयं धीरे-धीरे विकास करेंगे और सभ्यता के उच्चतम से उच्चतम अवस्था को पार करेंगे।

हम जानते हैं कि साधनों के साथ विकास तेजी से होता है।

हम वृक्षों को बङा होने में उनकी सहायता करते हैं। वे प्राकृतिक रूप से भी स्वयं विकसित होते हैं , पर अपना समय लेते हैं। हम उन्हें तेजी  से विकसित होने में सहायता करते हैं ।

हम अप्राकृतिक साधनों द्वारा सभी वस्तुओं को तेजी से विकसित करते हैं।

क्यों हम मानव विकास में तीव्रता नहीं कर सकते हैं?

हम एक दौङ के समान इसे कर सकते हैं। क्यों गुरू दूसरे देशों में जाते है?

क्योंकि इससे हम विकास की दौड़ को तेज कर सकते हैं ।

अब क्या हम व्यक्तिगत विकास में भी तेजी ला सकते हैं ?

यह भी हम कर सकते हैं।

क्या हम इस तीव्रता की सीमा निर्धारित कर सकते हैं ?

हम यह नही बता सकते कि एक व्यक्ति एक जीवन में कितना विकास कर सकता है ।

तुम्हारे पास इसके लिए कोई कारण भी नहीं कि एक व्यक्ति कितना और कितना अधिक कर सकता है।

परिस्थितियां चमत्कारिक रूप से उसे तीव्र कर सकती हैं।

तुम प्रवीण हो, उसकी भी क्या कोई सीमा हो सकती है?

तो क्या परिणाम निकलता है?

युगों से चली आ रही इस दौङ में जो एक प्रवीण मनुष्य है वह आज का मानव है।

मेरी समझ

आज का युग संसाधनों और सुविधाओं का युग है । हम अभी और विकसित होना चाहते हैं । इन संसाधनों और सुविधाओं के प्रयोग से तेजी से निरंतर विकास की दौड़ में दौङ रहा यह मानव ही आधुनिक मानव है।

हम अप्राकृतिक सुविधाओं के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दुरूपयोग कर रहे हैं ।

अवतार और पैगंबर

विवेकानंद जी हमें बताते हैं कि सभी महान अवतार या पैगंबर अपने एक ही जीवन में संपूर्ण निपुणता प्राप्त करते हैं।

हमें विश्व इतिहास में सभी युगों या कालों में ऐसे अवतारी या पैगंबर मिलते हैं ।

अभी कुछ समय पूर्व एक ऐसा व्यक्ति हुआ, जो इस मानवीय दौङ में शामिल हुआ और अपने वर्तमान जीवन में ही इस दौङ के अंत तक पहुंचा था।

यह भी है कि तेजी से विकास के भी नियम होते हैं।

मान लीजिए कि हम इन नियमों को खोज पाते हैं, उनके रहस्यों को समझ कर उन्हें हम अपनी आवश्यकताओं के लिए उपयोग में ला सकते हैं, तब हम उन्नत होते हैं।

हम अपनी उन्नति को तीव्र करते हैं, हम अपने विकास में तेजी लाते हैं, तब हम अपने इसी जीवन में प्रवीण हो जाते हैं ।

यह हमारे जीवन का उच्चतम चरण है और मस्तिष्क का अपना विज्ञान है तथा इसकी शक्तियों मे निपुणता ही जैसे वास्तविक परिणाम है।

इस विज्ञान की उपयोगिता यही है कि मनुष्य की निपुणता को उजागर किया जाए, ऐसा नहीं कि उसके लिए उसको युगों, युगों तक प्रतीक्षा कराई जाए।

इस भौतिक संसार में मनुष्य प्रकृति के हाथ का खिलौना बन जाए जैसे समुद्र में एक लकड़ी का टूकङा एक लहर से दूसरी लहर पर डोलता रहे ।

यह विज्ञान अथार्त योग विज्ञान यह चाहता है कि आप शक्तिवान बनो, अपने को प्रकृति के हाथों में देने के स्थान पर स्वयं अपने-आप प्रयत्न करो फिर तुम इस छोटे जीवन के पार जो है, उसे प्राप्त करोगे।

मेरी समझ

यहां स्वामी जी मनुष्य की बाहरी, भौतिक उन्नति की बात नहीं कर रहे हैं। सच्चा वास्तविक विकास तो मनुष्य के अंतर का विकास है।
वह कहते हैं कि अगर मनुष्य अपने अंतर को पहचान ले, व उसका शुद्धिकरण करे तो वह अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से कठिनतम कार्य भी कर सकता है और अपने इस जीवन में ही, जीवन के सत को जान सकता है।

योग विज्ञान वह विज्ञान है जो मनुष्य को उसकी अंतर शक्ति को पहचानने में सहायक होता है।

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स्वामी विवेकानंद (भाग-9)

23 शनिवार जुलाई 2022

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विवेकानन्द जी कहते हैं कि समस्त शिक्षा व समस्त प्रशिक्षण का आदर्श , व्यक्ति – निर्माण होना चाहिए।
लेकिन ऐसा होता नहीं है , अपितु हम अपने  बाह्य व्यक्तित्व को चमकाते हैं । जब अंदर कुछ नहीं है तो बाहर को चमकाने का क्या लाभ ?
समस्त प्रशिक्षण का ध्येय और उद्देश्य व्यक्ति को विकसित करना है।
वह व्यक्ति जो अपने अनुगामियों को अपने करिश्मा से प्रभावित करता है, यह विलक्षण शक्ति है। वह व्यक्ति जब कुछ करने को तैयार है तो वह जो चाहता है, वो कर सकता है, वह व्यक्ति जो करता है उसमें सफल होता है।
अब हम देखते हैं कि इसकी व्याख्या करने के लिए कोई स्पष्ट नियम नहीं है। हम कैसे  शारीरिक व रासायनिक हथियारों,  ज्ञान द्वारा इसकी व्याख्या कर सकते हैं? कितना ऑक्सीजन, हाइड्रोजन और कितना कार्बन हो, और विभिन्न स्थितियों में  कितने परमाणु और कितने अंश इत्यादि इत्यादि से इस गूढ़ व्यक्तित्व की व्याख्या कर सकते हैं ।
और हम देखते हैं कि यही वास्तविक व्यक्ति है, जो जीता है, काम करता है और अपने अनुगामियों को प्रभावित करता है, फिर जब चला जाता है तो अपनी बौद्धिकता और किताबें और अपने काम, उसके निशान पीछे रह जाते हैं। इस पर विचार करो।
धर्म के महान गुरुओं और महान दार्शनिकों में तुलना करो। दार्शनिकों ने कठिनाई से किसी व्यक्ति के अंतर को प्रभावित किया है। जबकि उन्होंने बहुत विलक्षण पुस्तकें लिखी हैं।
और धार्मिक गुरूओं ने अपने जीवनकाल में विश्व के चक्कर लगाए हैं और लोगों पर अपना प्रभाव छोड़ा है। यह अंतर व्यक्तित्व के कारण था, दार्शनिकों में यह शक्तिहीन है, महान पैगंबरों में यह व्यक्तित्व विशाल है, जो सबको प्रभावित करता है।
सबसे पहले हम ज्ञान से जुङे बाद में जिन्दगी से जुड़े हैं ।

एक स्थिति में यह एक रसायनिक प्रक्रिया है, कुछ निश्चित रसायनिक अंश एक साथ रख दिए गए, जो धीरे-धीरे जुङे और विशिष्ट परिस्थिति में  बाहर लाए गए,  अचानक प्रकाशमय हुए या फेल हो गए।
दूसरी तरफ, यह एक टार्च की तरह है जो बहुत शीघ्र चारों तरफ चक्कर लगाते हैं और दूसरों को प्रकाशमय करते हैं  । 

मेरी समझ

विवेकानंद जी कहते हैं कि हमें अपने अंतर्मन को पवित्र करना चाहिए। ज्ञानी होने मात्र से कोई किसी को प्रभावित  नहीं कर सकता है।
पैगंबर अपनी शुद्ध आत्मा के कारण सबको प्रभावित करते हैं लोगों के जीवन में उजाला फैलाते हैं ।

योगा का विज्ञान

योगा के विज्ञान का यह दावा है कि व्यक्तित्व के विकास के समस्त नियमों को खोज लिया गया है और जो उन नियमों पर अपना पूर्ण ध्यान केंद्रित करते हैं वे अपने व्यक्तित्व को शक्तिशाली और प्रभावी बना सकते है।
यह व्यवहारिक वस्तुओं में से एक है और समस्त शिक्षा का रहस्य है ।इसमें सार्वभौमिक प्रक्रिया है।
यह मकान मालिक की जिंदगी में , गरीब की जिंदगी में , अमीर, व्यापारी, आध्यात्मिक, प्रत्येक व्यक्ति की जिंदगी में, उनके व्यक्तित्व को शक्तिशाली बनाने के लिए महत्वपूर्ण  है
यह नियम बहुत अच्छे है, जैसा हम जानते है कि यह शारीरिक नियम है। यह कहा जाता है कि इसमें एक शारीरिक संसार की वास्तविकता ही नही है, एक मानसिक और आध्यात्मिक संसार की भी वास्तविकता है। यह जो भी है, ये एक है  ।
हम कह सकते हैं कि इसकी स्थिति शंकु के समान है।
यह एक प्रकार से न्यूनतम अवस्था में हैं, पर  स्थूलतम यहाँ हैं, जिसे जब घटाते हैं, तो यह सुंदर से सुंदर बनता है और जो सुंदरतम है, उसे हम आत्मा कहते है, काया स्थूल है।
और जैसे यह मानव का सूक्ष्म रूप है, वैसा ही यह ब्रह्मांड में है।
हमारा सार्वलौकिक वैसा ही है, जैसे इसकी बाह्य स्थूलता को घटाया जाता है, तो यह सुंदर से सुंदर होते हुए भगवान बन जाता है।

मेरी समझ

यहां विवेकानंद जी हमें योग विज्ञान का महत्व समझाते हैं । योगा का अनुसरण करते हुए न केवल हम अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं अपितु अपने मन को भी स्वस्थ रख सकते हैं। यह आपको आध्यात्मिक यात्रा कराता है, जिससे आपकी आत्मा का शुद्धिकरण होता है।

आज के आधुनिक तनावग्रस्त जीवन में व्यक्ति फिर आध्यात्म की ओर मुङ रहा है, इसी कारण योग विज्ञान का महत्व बढ़ गया है ।

कोमलता में शक्ति

विवेकानंद जी कहते हैं की हम जानते हैं कि महानतम शक्ति असभ्य, असुंदर में नहीं, सभ्य सुंदर में स्थित है।

हम एक शक्तिशाली , वजनदार व्यक्ति को देखते हैं , जिसकी मांसपेशियां फूली हुई हैं और हम उसके शरीर में समस्त परिश्रम के चिन्ह देखते हैं फिर हम सोचते हैं कि मांसपेशियां शक्तिशाली वस्तु है।

लेकिन वास्तव में ये कमजोर होती हैं, धागे के समान महीन नाङियाँ होती हैं, जो मांसपेशियों में ताकत लाती है।

जिस क्षण इन धागों में से एक धागा भी जो मांसपेशियों से जुङा है, कट जाता है उसी क्षण ये मांसपेशियां कार्य करने में असमर्थ हो जाती हैं । ये नन्हीं नाङियाँ,  सुक्ष्मता से शक्ति लाती है- सोचो और सोचो। तो यह सुक्ष्मता ही वास्तविक शक्ति का आधार है।

यह सच है कि हम स्थूल क्रियाओं को देख सकते हैं लेकिन जब सुक्ष्म क्रियाएं प्रभावी होती हैं, हम उन्हें देख नहीं सकते हैं।

जब एक स्थूल वस्तु चलती है, हम उसे पकड़ सकते हैं, हम स्वाभाविक रूप से उस स्थूल वस्तु की क्रियाओं को पहचान सकते हैं।

परंतु वास्तव में समस्त शक्ति सुक्ष्मता में है।

हम सुक्ष्म क्रियाएं नहीं देखते शायद ये क्रियाएं बहुत तीव्र होती हैं , हम उन्हें अपनी इंद्रियों से देख नहीं सकते हैं।किसी विज्ञान या अंवेषण द्वारा हमें इन सुक्ष्म शक्तियों को पकङने में सहायता मिलती है, जो अभिव्यक्ति के कारण होती है, यह अभिव्यक्ति भी दबाव में होती होगी।

झील के बिलकुल नीचे से एक बुलबुला आता है, उसे आता हुआ हम नहीं देखते है, पर जब वह धरातल पर फटता है, हम उसे देख पाते हैं ।

स्वामी जी कहते हैं, इसी प्रकार हम तब विचारों को समझ पाते हैं जब वे विशाल रूप में विकसित होते हैं, जब वे क्रिया बनते हैं ।हम निरंतर यह शिकायत करते हैं कि हमारा अपने विचारों और क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं है। पर यह नियंत्रण कैसे हो सकता है?

अगर हम सुक्ष्म क्रियाओं को नियंत्रित कर सकते हैं, अगर हम विचारों को बनने से पूर्व या उन्हें क्रियाएं बनने से पहले, उन विचारों की जङो को थाम सकते हैं तो यह संभव है कि सबको संपूर्णता से नियंत्रित कर पाएं।

यहां एक उपाय है, जिससे हम विश्लेषण कर सकते हैं, खोज सकते हैं , समझ सकते हैं और अंत में उन सुक्ष्म शक्तियों व सुक्ष्म कारणों के साथ उन्हें बांध सकते हैं, इसी से केवल संभव हो सकता है कि हम अपने ऊपर नियंत्रण कर सकते हैं । वह व्यक्ति जो अपने मस्तिष्क को नियंत्रित कर सकता है, वह किसी भी अन्य व्यक्ति के मस्तिष्क को नियंत्रित कर सकता है।

इसी कारण पवित्रता व नैतिकता धर्म के पात्र होते हैं। एक पवित्र , नैतिक व्यक्ति का अपने पर नियंत्रण होता है।

सभी दिमाग एक है,एक दिमाग के विभिन्न भाग हैं ।

यह व्यक्ति वो है जो जानता है कि ब्रह्मांड की सभी मिट्टी एक ही मिट्टी के ढेर से है।

वह जो अपने मस्तिष्क को नियंत्रित कर सकता है वह प्रत्येक मस्तिष्क के रहस्य को जानता है, उसका मस्तिष्क  सबसे शक्तिवान है।


मेरी समझ

हम अपने मस्तिष्क के गुलाम होते हैं, उसके निर्देशन में ही हम अपनी सब क्रियाएं करते हैं ।

हमारा मस्तिष्क विभिन्न विचारों व समस्याओं से भरा रहता है, अतः सही गलत को समझना कठिन होता है, अक्सर वह हमसे ऐसे कार्य कराता है, जो हमें नहीं करने चाहिए। जैसे हम जानते हैं कि हमें क्रोध नहीं करना चाहिए। लेकिन हमारा मस्तिष्क नकारात्मक विचारों से भरा है और वह हमें शांत रखने के स्थान पर क्रोध कराता है।

विवेकानंद जी के अनुसार योगा वह माध्यम है जिसका अभ्यास करते हुए, हम अपने मन- मस्तिष्क को नियंत्रित कर सकते हैं । वह यह भी कहते हैं कि जब आप अपने मस्तिष्क को समझ सकते हैं तो किसी दूसरे को समझना भी आसान हो जाता है।

स्वामी विवेकानंद (भाग-8)

16 शनिवार जुलाई 2022

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अपने चरित्र का निर्माण करो

स्वामी विवेकानंद कहते हैं,’ यदि तुम घर जाते हो और टाट के कपङे पर बैठते हो और भस्म लगाते हो और बीते हुए जीवन पर रोते हो, क्योंकि तुमने कुछ गलत कदम उठाए थे, यह तुम्हारी सहायता नहीं करेगा बल्कि तुम्हारी इच्छाशक्ति और कमज़ोर हो जाएगी। 
एक कमरे में हजारों वर्षों से अंधेरा है, तुम उस कमरे में जाते हो, अंधेरा देख रोने लगते हो, विलाप करते हो, क्या इससे अंधेरा दूर हो जाएगा? एक माचिस की तीली जलाओ उसी क्षण अंधेरा दूर हो जाएगा।
अपने संपूर्ण जीवन में यही करते रहोगे,कि ” मैंने पाप किए हैं, बहुत गलतियाँ की है।”
यह किसी भूत को बताने की आवश्यकता नहीं है। रोशनी में आते ही शैतान उसी पल चला जाता है।
अपने चरित्र को विकसित करो, अपने वास्तविक स्वभाव को तलाशो,
उसे पुकारों जो दीप्तिमान, चमकदार है, सदा पवित्र है, जिसे तुम सब में देख सकते हो।

मेरी समझ

सारे जीवन अपनी गलतियों पर पछताते रहो, पर उसे सुधारने के लिए कुछ नहीं करो हाथ पर हाथ रख कर बैठने से कुछ नहीं बदलेगा। अपने जीवन में रोशनी स्वयं लानी होगी। आप ही स्वयं अपने को बदल सकते हो।

व्यक्तित्व का विकास

व्यक्तिगत आकर्षण शक्ति

तुम देखते हो कि हमारे चारों ओर क्या घट रहा है। संसार एक प्रकार का प्रभाव है।
हमारी शारीरिक ऊर्जा का भाग, हमारे अपने शरीर को सुरक्षित रखने में प्रयोग में आता है।इसके अतिरिक्त दिन-रात हमारी ऊर्जा का प्रत्येक अंश दूसरों को प्रभावित करने के लिए प्रयोग में आता है।
हमारे शरीर, हमारी बुद्धि और हमारी धार्मिकता यह समस्त निरंतर दूसरे को प्रभावित करते हैं। इसके विपरीत हम भी दूसरों से प्रभावित होते हैं।
यह सब हमारे चारों ओर चल रहा है।
एक ठोस उदाहरण लेते हैं:
एक व्यक्ति आता है, तुम जानते हो, वह बहुत ज्ञानी है, उसकी भाषा बहुत सुंदर है, वह तुम से एक घंटा बात करता है- लेकिन तुम पर अपनी कोई छाप नहीं छोड़ता है।
दूसरा व्यक्ति आता है, वह कुछ शब्द बोलता है, जिसका शब्द – विन्यास ठीक नहीं है, व्याकरण में भी त्रुटि है, पर वह तुम पर अपनी अमिट छाप छोङघता है।
तुम में से कई ने ऐसा अनुभव किया होगा।
अतः यह स्पष्ट है कि हमेशा शब्द अपना प्रभाव छोड़ नहीं पाते हैं ।
एक छाप छोड़ने में प्रभाव का केवल 1/3 भाग शब्दों और विचारों का होता है और व्यक्ति का अपना 2/3 भाग होता है।
इसे तुम व्यक्ति का व्यक्तिगत आकर्षण कहते हो, जो तुम्हें प्रभावित करता है।

मेरी समझ

हम इसे ऐसे समझ सकते है कि हम अपना संपूर्ण जीवन दूसरों को खुश करने में बिता देते हैं और दूसरे हमें खुश करने में अपना जीवन व्यतीत करते है।
प्रत्येक व्यक्ति का अपना व्यक्तित्व होता है, किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक होता है कि वह आसानी से दूसरों को प्रभावित कर सकता है।

महान नेता


स्वामी जी कहते हैं कि हम उन महान मानवतावादी नेताओं की बात करते हैं, हम हमेशा देखते हैं कि जिसे हमें जानते थे , वह व्यक्ति का व्यक्तित्व था।
अब पिछले सभी लेखकों और विचारकों को समझते हैं।सच बताओ, कितने विचार उन्होंने विचारे। उन मानवतावादी नेताओं द्वारा लिखे गए लेखों को पढ़ो, प्रत्येक की एक पुस्तक लो और उनको आंकों।
इस समय संपूर्ण संसार में वास्तविक नए और सच्चे विचार मुठ्ठी भर है। उनकी किताबों में जो विचार वे हमारे लिए छोड़ गए थे, उन्हें पढ़ो।
ये लेखक हमें असाधारण नहीं लगते, जबकि हम जानते हैं कि वे अपने समय में महान असाधारण थे।
फिर उनका ऐसा प्रभाव क्यों?
न सामान्य वे विचार जो उन्होंने सोचे, न वे किताबें जो उन्होंने लिखी, न ही वे भाषण जो उन्होंने दिए, यह ऐसा कुछ था, जो चला गया, वह उनका व्यक्तित्व है।
जैसा मैं पहले निर्दिष्ट कर चुका हूं कि व्यक्ति के व्यक्तित्व का दो तिहाई प्रभाव है, उसकी बुद्धि , उसके शब्दों का एक तिहाई प्रभाव होता है।
यही वास्तविक व्यक्ति , व्यक्ति का व्यक्तित्व है जो हमें प्रभावित करता है।
लेकिन हमारे कर्म प्रभावित होते हैं। जब वह व्यक्ति है, तो कर्म भी है, उसके अनुसरण से उसका प्रभाव भी बंधा है।

मेरी समझ

व्यक्ति का आकर्षक व्यक्तित्व ही दूसरे को प्रभावित करता है। सभी संत गुरू एक समान विचार सुझाव देते हैं , पर हम उसी का अनुसरण करते हैं , जिसका व्यक्तित्व हमें प्रभावित करता है।
कुछ विचारों को हम जानते है पर स्पष्ट रूप से हम तब समझ पाते हैं जब कोई करिश्माई व्यक्ति हमें समझाता है।
चूंकि मौलिक या नई बात ऐसी बहुत कम है जो पहले नहीं कही गई हो, हमने न पढ़ी हो या न सुनी हो, पर हमें नई इसीलिए लगती है क्योंकि अब जो समझाने वाला है, उसके व्यक्तित्व से हम प्रभावित है।

क्रमशः

स्वामी विवेकानंद (भाग-7)

10 रविवार जुलाई 2022

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आदतें, अच्छी और खराब

विवेकानंद जी कहते हैं कि जब मनुष्य के आसपास के वातावरण और विचारों के प्रभावों की एक बङी संख्या उसके मस्तिष्क पर जाती है, ये आपस में मिल जाती हैं और एक आदत बनती है।


यह कहा जाता है कि ‘आदत दूसरा स्वभाव है, यह प्रथम स्वभाव भी है और व्यक्ति की संपूर्ण प्रकृति भी है।
यह जो भी हम हैं, सब आदत का परिणाम है।
यह हमें आश्वासन देती है क्योंकि यदि यह केवल आदत है, हम इसे बना सकते हैं और किसी भी समय इसे मिटा सकते हैं ।
अच्छी आदतें खराब आदतों के लिए केवल औषधि हैं । समस्त बूरी आदतें अच्छी आदतों द्वारा नियंत्रित की जा सकती हैं ।
निरंतर अच्छे कर्म करो, अच्छा सोचो। मूल प्रभावों को दबाने का यही एक रास्ता है।


कभी मत कहो कि कोई आदमी निकृष्ट है क्योंकि वह केवल, एक चरित्र , एक आदतों की गठरी का प्रतिनिधित्व करता है जो नए और सुधरी आदत द्वारा जांचा जा सकता है।
चरित्र आदतें दोहराता है और दुहराई हुई आदतें चरित्र को सुधार सकती हैं ।

मेरी समझ

यह माना जाता है कि व्यक्ति आदतों का शिकार होता है । उसकी आदतें उसके चरित्र का निर्माण करती है।
जो पूर्व जन्म के सिद्धांत को मानते हैं वे यह मानते हैं कि बच्चा जब जन्म लेता है, तब वह अपने साथ पिछले जन्म का अपना स्वभाव व आदतें लाता है, जिसे हम जन्मांतर भी कहते है, या यह भी कहते हैं कि इस इंसान की प्रकृति या प्रवृत्ति ही ऐसी है।
पर आदतें बदली जा सकती है, यदि व्यक्ति की परवरिश सकारात्मक वातावरण में हो, वह अच्छे विचारों और आचरण को ग्रहण करे तो वह अपनी जन्मांतर आदतों को बदल सकता है।

हम अपनी किस्मत बदलते हैं ।

समस्त प्रत्यक्ष पापों का कारण हमारे अंदर है। किसी अलौकिक शक्ति को दोष मत दो। कभी निराशावादी या मायूस मत हो, न ही यह सोचो की हम ऐसी स्थिति में है जिससे हम कभी मुक्त नहीं हो सकते, जब तक कोई हमें मुक्त होने के लिए अपनी सहायता नहीं देता है।
हम रेशम के कीड़ों की तरह है । हम अपने अस्तित्व के बाहर धागा बनाते हैं और रेशम को कातते हैं और इस दौरान अंदर कैद हो जाते हैं ।


हम अपने चारों तरफ, अपने कर्मो का जाल बुन लेते हैं ।
और अपनी अज्ञानतावश, हम महसूस करते हैं ,जैसे हम बंधे हुए हैं और रोते है तथा सहायता के लिए विलाप करते हैं ।
लेकिन सहायता किसी के द्वारा नहीं आती, यह हमारे अंतर से आती है । सभी सर्वव्यापक ईश्वर को पुकारो।

विवेकानंद जी अपना ही उदाहरण देते हुए कहते हैं कि ‘मैं बहुत साल चिल्लाया और अंत में पाया कि सहायता पा चूका था। लेकिन सहायता अंतर से आई थी।
मुझे फिर से सब सही करना था जो मेरी गलतियों के कारण बिगङा था।
मैंने जो अपने चारों तरफ जाल बुना था उसे काट देना था।
मैंने अपने जीवन में बहुत गलतियां की है, लेकिन बिना गलतियों के मैं वैसा नहीं था जैसा तुम मुझे अभी पाते हो।


मेरा यह अभिप्राय नहीं है कि तुम घर जाओ और दृढ़तापूर्वक गलतियों को स्वीकार करो, इस प्रकार मुझे गलत मत समझो। जो गलतियां तुमने कर दी हैं, उन गलतियों के लिए, तुम उदास मत हो।’

मेरी समझ

हम गलतियाँ करते हैं, तभी सीखते हैं और इस तरह सीखने से ही हम निखरते हैं ।
कहते हैं कि जब तक आप स्वयं अपनी सहायता नहीं करते, ईश्वर भी आपकी सहायता नहीं करता है।
हम अपने को परिस्थितियों, आदतों और लोगों का गुलाम बना लेते हैं। और अपने को दुखद और खराब स्थिति में फंसा पाते हैं, पर उससे बाहर निकलने की कोशिश नहीं करते हैं ।
पर यदि पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कोशिश करें तो एक नहीं अनेक दरवाजे खुले दिखेंगे ।

अज्ञानतावश गलतियाँ

हम गलती मानते हैं और हम कमजोर है, क्योंकि हम अज्ञानी है। हमें अज्ञानी कौन बनाता है? हम स्वयं।
हम अपने हाथ अपनी आंखों पर रख देते हैं और रोते हैं यहाँ अंधेरा है। हाथ हटाओ और प्रकाश है। प्रकाश मनुष्य आत्मा की स्वयं- देदीप्यमान प्रकृति के रूप में सदा विद्यमान है।
विकास का कारण क्या है? इच्छा। जानवर कुछ करना चाहता है, पर अनुकुल वातावरण नहीं मिलता है। इसीलिए नए शरीर का विकास होता है। कौन इसका विकास करता है? जानवर स्वयं, उसकी इच्छा शक्ति । यह इच्छा शक्ति महान है। तुम कह सकते हो यदि यह महान है, तो मैं क्यों नहीं कुछ कर सकता हूं। पर तुम अपने बारे बहुत कम सोच रहे हो।
अपना अतीत देखो! तुम अमीबा से मनुष्य बने हो। किसने बनाया? तुम्हारी अपनी इच्छा शक्ति ने। क्या तुम इसके सर्वशक्तिमान होने से इंकार कर सकते हो?
वह जिसने तुम्हें ऊंचाई तक पहुँचाया है, अब तुम और ऊँचे जा सकते हो। तुम जो चरित्र बनना चाहते हो, तो अपनी इच्छा शक्ति को दृढ़ करो।

मेरी समझ

कहा जाता है कि दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण चींटी भी पहाङ पार कर जाती है । फिर हम भी अपनी इच्छाशक्ति से अपने चरित्र की कमियाँ क्यों नहीं दूर कर सकते हैं !
हमें अपनी इच्छाशक्ति को दृढ़ बनाना चाहिए।

स्वामी विवेकानंद (भाग-6)

04 सोमवार जुलाई 2022

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चरित्र के लिए शिक्षा

विचार-शक्ति का मूल्य

किसी व्यक्ति का चरित्र उसकी प्रवृत्तियों को एकत्रित करना, उसके मस्तिष्क के झुकाव का योगफल है।
जैसे प्रसन्नता और दर्द उसकी आत्मा से गुजरते हैं, उसमें अपनी विभिन्न तस्वीरें छोङते हैं और इन दोनों के प्रभाव को मिलाकर जो परिणाम होता है, वह व्यक्ति का चरित्र कहलाता है। हम वो हैं जो हमारे अपने विचार हमें बनाते हैं।
प्रत्येक विचार एक छोटा हथौड़ा है,वो लोहे के ढेर पर पङता है, जो हमारे शरीर हैं, जैसा हम चाहते है,वैसा वो बनकर बाहर आता है।
शब्दों का दूसरा स्थान होता है। विचार रहते है, वे यात्रा करते है। अतः जो भी सोचते हो, उसको संभालो।

मेरी समझ

आपके विचार, आपके चरित्र का निर्माण करते हैं। आप जो भी सोचो- विचारों उस पर ध्यान करें, देखें, समझें कि वे आपको किस ओर ले जाते हैं ।

आनंद और दर्द की भूमिका

अच्छाई और बुराई दोनों की चरित्र निर्माण में बराबरी की भागीदारी होती है, कई स्थितियों में प्रसन्नता के स्थान पर दुःख एक महान अध्यापक है।

विश्व में उत्पादित महान चरित्रों के अध्ययन में, मैं विश्वास से कहता हूँ, कि अधिकांशतः स्थितियों में यह पाया जाएगा कि यह प्रसन्नता से अधिक दुःख है, जिसने सिखाया था, यह धन से अधिक गरीबी है, जिसने सिखाया था और यह प्रशंसा के स्थान पर आलोचनाएँ थीं, जिसने अंतर की आग को बाहर निकाला था।
विलास की गोद में पले हो, गुलाब के बिस्तर पर लेटे हो और कभी आँसू न बहाया हो तो कौन महान बनेगा।

ह्रदय में तब प्रेम उत्पन्न होता है, जब चारों तरफ दुःख की आँधी के थपेङे पङते हो, और यह महसूस होता है कि कहीं रोशनी नज़र नहीं आएगी, जब आशा और साहस अधिकांशतः समाप्त हो, यह तब आध्यात्मिक आँधी के बीच में , अंतर में प्रकाश की मंद प्रभा है।

मेरी समझ

व्यक्ति को कष्ट और दर्द से जीवन को समझने में अधिक मदद मिलती है। ऐसे समय वह स्थिति का अधिक बारीकी से विश्लेषण कर सकता है।
आध्यात्म की ओर झुकाव भी इन दुखद परिस्थिति में पैदा होता है।और तभी अंतर्मन को वे सब स्पष्टता से समझ आता है जो सुखद परिस्थितियों में नहीं आता है।

क्रिया का परिणाम

अपनी मुस्कराहटों का प्रयोग, अपने मस्तिष्क के लिए करो, उसकी प्रत्येक लहर, प्रत्येक तरंग मस्तिष्क में उत्पन्न होती है और जब यह लुप्त होती है, पूर्णतः समाप्त नहीं होती है, बल्कि एक चिन्ह छोङती है और उस चिन्ह का संभावित भविष्य दुबारा आता है।

प्रत्येक कार्य जो हम करते है, शरीर की प्रत्येक हरकत, प्रत्येक विचार जो हम सोचते हैं, मस्तिष्क पर कुछ प्रभाव छोङते हैं।और यहाँ तक कुछ प्रभाव धरातल पर स्पष्ट नहीं होते हैं, ये प्रभाव अवचेतन रूप से धरातल के नीचे कार्य करने के लिए पर्याप्त शक्तिवान होते हैं । जिससे हम प्रत्येक क्षण मस्तिष्क पर इन प्रभावों के योगफल द्वारा दृढ़ होते है।प्रत्येक व्यक्ति का चरित्र इन प्रभावों के योगफल से दृढ़ होता है।

यदि अच्छे प्रभाव प्रबल होते हैं तो चरित्र अच्छा बनता है, यदि बुरा तो बुरा बनता है।
यदि एक व्यक्ति निरंतर खराब शब्द सुनता है, बुरा सोचता है, गलत कार्य करता है। वह मस्तिष्क बुरे प्रभावों से पूर्ण होगा और उसके विचार और कार्य उसकी जागृत चेतना के बिना सच्चाई में असर करेगे।

वास्तविकता में ये बुरे प्रभाव सदा कार्य करते हैं ।इन प्रभावों का योगफल उसमें बुरी क्रिया करने के लिए शक्तिवान प्रेरक शक्ति की रचना करेंगे । वह अपने प्रभावों के हाथों एक यंत्र के जैसे होगा।

मेरी समझ

आप का चरित्र कैसा बनता है, यह इस पर निर्भर करता है कि आपकी कैसे वातावरण में परवरिश हुई है। आप कैसे विचारों को सुन कर बङे हुए हैं । नकारात्मक विचार आपको नकारात्मक बनाते है।
आप जैसे विचार सुनते रहे हैं, वे आपके विचारों व चरित्र के निर्माण में अवचेतन रूप से प्रभाव डालते हैं।
अतः हमें अपने बच्चों को स्वस्थ व सकारात्मक परिवेश और सोच देनी चाहिए ।

चरित्र का ढांचा

इसी तरह यदि एक व्यक्ति अच्छे विचार सोचता है और अच्छे कार्य करता है, इन सब प्रभावों का योगफल अच्छा हो और इसी प्रकार उसके द्रोह में उसमें अच्छा करने का दबाव होगा।


जब एक व्यक्ति ने बहुत अच्छे काम किए हैं और अच्छे विचारों को सोचा है तो यह उसमें अच्छा कार्य करने की अनिवार्य प्रवृत्ति है।
यहाँ तक कि यदि वह पाप करने की इच्छा करता है, उसका मस्तिष्क, जैसा उसकी प्रवृत्तियों का योगफल है उसे ऐसा करने नहीं देगा ।


वह पूर्णतः अच्छी प्रवृत्तियों के प्रभाव में हैं। जब कुछ स्थिति में एक व्यक्ति चरित्रवान प्रमाणित है। यदि तुम वास्तव में एक व्यक्ति का चरित्र निर्णीत करने चाहते हो, उसके महान कार्यों को मत देखो, उसकी सामान्य क्रियाओं को परखो। वे एक यथार्थपूर्ण तथ्य है, जो तुम्हें महान व्यक्ति का वास्तविक चरित्र बताएंगे।

निम्नतम व्यक्ति में भी महानतम,कुछ दयालु कार्य करने के अवसर उत्पन्न होते हैं , लेकिन व्यक्ति तभी महान है, उसका चरित्र महान है, जब वह जहाँ भी होता है, एक समान उच्च चरित्रवान होता है।

मेरी समझ

व्यक्ति के चरित्र के विभिन्न पहलू होते हैं , सामान्यतः उसके आचरण विभिन्न स्थानों और लोगों के साथ भिन्न – भिन्न होते हैं
एक महान चरित्रवान व्यक्ति वह व्यक्ति ही हो सकता है जो सब स्थानों और प्राणियों के साथ एक समान अच्छा व्यवहार करता हो।

क्रमशः

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