आदतें, अच्छी और खराब

विवेकानंद जी कहते हैं कि जब मनुष्य के आसपास के वातावरण और विचारों के प्रभावों की एक बङी संख्या उसके मस्तिष्क पर जाती है, ये आपस में मिल जाती हैं और एक आदत बनती है।


यह कहा जाता है कि ‘आदत दूसरा स्वभाव है, यह प्रथम स्वभाव भी है और व्यक्ति की संपूर्ण प्रकृति भी है।
यह जो भी हम हैं, सब आदत का परिणाम है।
यह हमें आश्वासन देती है क्योंकि यदि यह केवल आदत है, हम इसे बना सकते हैं और किसी भी समय इसे मिटा सकते हैं ।
अच्छी आदतें खराब आदतों के लिए केवल औषधि हैं । समस्त बूरी आदतें अच्छी आदतों द्वारा नियंत्रित की जा सकती हैं ।
निरंतर अच्छे कर्म करो, अच्छा सोचो। मूल प्रभावों को दबाने का यही एक रास्ता है।


कभी मत कहो कि कोई आदमी निकृष्ट है क्योंकि वह केवल, एक चरित्र , एक आदतों की गठरी का प्रतिनिधित्व करता है जो नए और सुधरी आदत द्वारा जांचा जा सकता है।
चरित्र आदतें दोहराता है और दुहराई हुई आदतें चरित्र को सुधार सकती हैं ।

मेरी समझ

यह माना जाता है कि व्यक्ति आदतों का शिकार होता है । उसकी आदतें उसके चरित्र का निर्माण करती है।
जो पूर्व जन्म के सिद्धांत को मानते हैं वे यह मानते हैं कि बच्चा जब जन्म लेता है, तब वह अपने साथ पिछले जन्म का अपना स्वभाव व आदतें लाता है, जिसे हम जन्मांतर भी कहते है, या यह भी कहते हैं कि इस इंसान की प्रकृति या प्रवृत्ति ही ऐसी है।
पर आदतें बदली जा सकती है, यदि व्यक्ति की परवरिश सकारात्मक वातावरण में हो, वह अच्छे विचारों और आचरण को ग्रहण करे तो वह अपनी जन्मांतर आदतों को बदल सकता है।

हम अपनी किस्मत बदलते हैं ।

समस्त प्रत्यक्ष पापों का कारण हमारे अंदर है। किसी अलौकिक शक्ति को दोष मत दो। कभी निराशावादी या मायूस मत हो, न ही यह सोचो की हम ऐसी स्थिति में है जिससे हम कभी मुक्त नहीं हो सकते, जब तक कोई हमें मुक्त होने के लिए अपनी सहायता नहीं देता है।
हम रेशम के कीड़ों की तरह है । हम अपने अस्तित्व के बाहर धागा बनाते हैं और रेशम को कातते हैं और इस दौरान अंदर कैद हो जाते हैं ।


हम अपने चारों तरफ, अपने कर्मो का जाल बुन लेते हैं ।
और अपनी अज्ञानतावश, हम महसूस करते हैं ,जैसे हम बंधे हुए हैं और रोते है तथा सहायता के लिए विलाप करते हैं ।
लेकिन सहायता किसी के द्वारा नहीं आती, यह हमारे अंतर से आती है । सभी सर्वव्यापक ईश्वर को पुकारो।

विवेकानंद जी अपना ही उदाहरण देते हुए कहते हैं कि ‘मैं बहुत साल चिल्लाया और अंत में पाया कि सहायता पा चूका था। लेकिन सहायता अंतर से आई थी।
मुझे फिर से सब सही करना था जो मेरी गलतियों के कारण बिगङा था।
मैंने जो अपने चारों तरफ जाल बुना था उसे काट देना था।
मैंने अपने जीवन में बहुत गलतियां की है, लेकिन बिना गलतियों के मैं वैसा नहीं था जैसा तुम मुझे अभी पाते हो।


मेरा यह अभिप्राय नहीं है कि तुम घर जाओ और दृढ़तापूर्वक गलतियों को स्वीकार करो, इस प्रकार मुझे गलत मत समझो। जो गलतियां तुमने कर दी हैं, उन गलतियों के लिए, तुम उदास मत हो।’

मेरी समझ

हम गलतियाँ करते हैं, तभी सीखते हैं और इस तरह सीखने से ही हम निखरते हैं ।
कहते हैं कि जब तक आप स्वयं अपनी सहायता नहीं करते, ईश्वर भी आपकी सहायता नहीं करता है।
हम अपने को परिस्थितियों, आदतों और लोगों का गुलाम बना लेते हैं। और अपने को दुखद और खराब स्थिति में फंसा पाते हैं, पर उससे बाहर निकलने की कोशिश नहीं करते हैं ।
पर यदि पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कोशिश करें तो एक नहीं अनेक दरवाजे खुले दिखेंगे ।

अज्ञानतावश गलतियाँ

हम गलती मानते हैं और हम कमजोर है, क्योंकि हम अज्ञानी है। हमें अज्ञानी कौन बनाता है? हम स्वयं।
हम अपने हाथ अपनी आंखों पर रख देते हैं और रोते हैं यहाँ अंधेरा है। हाथ हटाओ और प्रकाश है। प्रकाश मनुष्य आत्मा की स्वयं- देदीप्यमान प्रकृति के रूप में सदा विद्यमान है।
विकास का कारण क्या है? इच्छा। जानवर कुछ करना चाहता है, पर अनुकुल वातावरण नहीं मिलता है। इसीलिए नए शरीर का विकास होता है। कौन इसका विकास करता है? जानवर स्वयं, उसकी इच्छा शक्ति । यह इच्छा शक्ति महान है। तुम कह सकते हो यदि यह महान है, तो मैं क्यों नहीं कुछ कर सकता हूं। पर तुम अपने बारे बहुत कम सोच रहे हो।
अपना अतीत देखो! तुम अमीबा से मनुष्य बने हो। किसने बनाया? तुम्हारी अपनी इच्छा शक्ति ने। क्या तुम इसके सर्वशक्तिमान होने से इंकार कर सकते हो?
वह जिसने तुम्हें ऊंचाई तक पहुँचाया है, अब तुम और ऊँचे जा सकते हो। तुम जो चरित्र बनना चाहते हो, तो अपनी इच्छा शक्ति को दृढ़ करो।

मेरी समझ

कहा जाता है कि दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण चींटी भी पहाङ पार कर जाती है । फिर हम भी अपनी इच्छाशक्ति से अपने चरित्र की कमियाँ क्यों नहीं दूर कर सकते हैं !
हमें अपनी इच्छाशक्ति को दृढ़ बनाना चाहिए।