ताकत ( शक्ति  )

अनंत शक्ति धर्म है। ताकत पुण्य है और कमजोरी  पाप है। सभी पाप और शैतानियत के लिए मिलाकर एक ही शब्द  है , वह है कमजोरियाँ ।
यही कमजोरियाँ  शैतानियत से गलत कराती हैं  सभी स्वार्थीपन का स्रोत कमजोरी  है,कमजोरी के कारण हम दूसरे को तकलीफ देते हैं।
सबको जानना होगा कि वे क्या हैं ? रात-दिन यह दोहराओ कि मैं  दिव्य  हूँ ।
माँ के दूध के साथ इस शक्ति के विचार को ग्रहण करो- मैं वह हूँ ।
इसे सबसे पहले सुनो, उस पर विचार करो, यह  विचार काम करेगा, ऐसा संसार होगा जैसा कभी नहीं दिखा था।
सच को खुलकर बोलो। सभी सच सार्वलौकिक है। सभी आत्माओं  की प्रकृति सच है। और यह सच की परीक्षा  है,  कोई भी वस्तु   जो तुम्हें शारीरिक रूप से, बौद्धिक रूप से या आध्यात्मिकता में   कमजोर बनाती है,  उसे जहर मानकर अस्वीकार   कर दो। इसमें जीवन नहीं है, इसमें सच नहीं हो सकता है।
सच पवित्र है , सच में सब ज्ञान है। सच को ताकतवर होना होगा, सच को प्रकाशमान होना है, सच को स्फूर्तिदायक होना है।
उपनिषद की ओर लौटो, वह चमकदार, शक्तिमान , उज्जवल दर्शन है। ये सभी महान सच, बहुत सरल हैं , यह हमारी उपस्थिति के समान सरल है।
उपनिषद की सच्चाई  तुम्हारे   सामने हैं , उन्हें  लो और उन्हें जियो, भारत की मुक्ति   यहीं   पर है।
  हमारे देश में  कष्टों का एक तिहाई कारण शारीरिक कमजोरी है। हम आलसी हैं , हम मिले-जुले  नहीं   हो सकते हैं । हम तोते की तरह बहुत कुछ बोल सकते हैं , पर करते नहीं हैं । यह हमारी आदत में है की बोलना बहुत, पर करना नहीं  । इसके पीछे कारण शारीरिक कमजोरी है।
हमारा कमजोर मस्तिष्क हमें कुछ करने नहीं देता है। इसे शक्तिशाली बनाना है।
विवेकानंद जी कहते हैं कि सबसे पहले हमारे युवाओं  को मजबूत होना चाहिए , धर्म बाद  में आता है  ।  मेरे युवा मित्रों , मेरी यह तुम्हे सलाह है कि तुम मजबूत बनो। गीता के अध्ययन की अपेक्षा फुटबॉल के द्वारा  तुम स्वर्ग के अधिक करीब हो। जब तुम्हारी मांसपेशियों में थोङी ताकत होगी, तब  तुम गीता को  अधिक   समझ सकते हो ।
जब तुम्हारे खून में  थोङी ताकत होगी, तब तुम श्री कृष्ण के दिव्य ज्ञान   और चमत्कारिक शक्ति को समझ सकोगे।
जब तुम स्वयं अपने पांव पर खङे हो सकोगे तब तुम उपनिषदों  को और आत्मा की चमक को समझ सकोगे।

मेरी समझ

हमारे  अपने जीवन में जो भी कष्ट या दुख है, वह‌ हमारी अपनी आंतरिक व बाहृय कमजोरियों के कारण है। हमें अपनी कमजोरियों को पहचानना होगा, फिर उन्हें स्वीकार करना होगा।जब स्वीकार करेंगे तभी उन्हें दूर करने का प्रयास करेंगे।

निर्भयता

उपनिषद मुझ से हर पन्ने में   कहते हैं, – ताकत, ताकत। संसार में यही एकमात्र  साहित्य है जिसमें बार- बार  अभय, निर्भय  शब्द  मिलते हैं।
विवेकानंद कहते हैं , मेरे सामने अतीत का एक चित्र  आता है, जिसमें पश्चिम के महान सम्राट महान  एलेक्जेंडर  हैं ।इस चित्र में  महान सम्राट इंडस नदी के किनारे   खङे हैं और जंगल के हमारे एक संयासी से बात कर रहे हैं ।वह बुजुर्ग संयासी  जिससे सम्राट बात कर रहे थे ,  वह शायद नग्न , पूर्णतः नग्न एक काली शिला पर बैठा था, सम्राट उसकी बौद्धिकता से चमत्कृत था, प्रसन्न हो कर  कुछ सोना जो वह युनान से लाया था, उस संयासी को प्रलोभन के रूप में   देना चाहता था।
संयासी उस प्रलोभन को मुस्कराते हुए अस्वीकार कर देता है।  अब सम्राट एक अहंकारी सम्राट   की तरह बोलता है, ” तुम नहीं आओगे तो मैं तुम्हें मार दूंगा ।”
यह सुनकर वह बुजुर्ग संयासी जोर से हंसा और बोला, ” तुमने आज से पहले, जैसा तुमने अभी कहा, वैसा झूठ तुमने अपने जीवन में   कभी नहीं  बोला होगा, मुझे कौन मार सकता है ?  मैं तो एक अजर अमर आत्मा हुं।” यही ताकत है!

मेरी समझ

निर्भयता जीवन जीने की अनिवार्य शर्त है। अपने जीवन को डर से मुक्त करो, निडरता ही ताकत देती है। सच कहने और सुनने के लिए भयमुक्त और शक्तिवान होना होगा।

मेरी ताकत उपनिषद है

हम बहुत बार कमजोर पङते हैं , हमारे पास ऐसी हजारों कहानियां  है, जो हमारी कमजोरी के विषय में बताती है।
इसीलिए मित्रों , तुम एक ही खून हो, एक बार जीते हो और एक ही बार  मरते हो, तो सिर्फ   यही कहो कि हमें ताकत, ताकत और ताकत चाहिए  । और मेरी ताकत उपनिषद है। संपूर्ण  संसार को उत्साहित करने का सामर्थ्य इसकी ताकत में   है। इसी से पूरा संसार पुर्नःजागृत , ऊर्जावान और मजबूत बन सकता  है।
यह कमजोर पर, कष्टों पर, सभी भेद भावों के दलितों पर और सभी धर्मों व मतों   पर विजय की पुकार बनेगा, अपने पांव पर खङे हो और स्वतंत्र हो।हमें  उपनिषदों में स्वतंत्रता , शारीरिक स्वतंत्रता , मानसिक स्वतंत्रता और आध्यात्मिक स्वतंत्रता मिलती है।

मेरी समझ

अगर हम स्वतंत्र रूप से जीना चाहते हैं, तो अपनी कमजोरियों पर विजय पानी होगी। यह विजय ही हमें शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक स्वतंत्रता देगी। एक सुंदर समाज की सरंचना में हमारा योगदान यही होगा।

धर्म बोध है

धर्म बोध है
कोई धर्म ग्रंथ  हमें  धार्मिक नहीं बना सकता है। संसार में मौजूद सभी किताबे पढ़ कर भी हम धर्म का या ईश्वर का एक भी अक्षर नहीं समझ सकते हैं ।
हम जीवन के समस्त  कारणों पर बात कर सकते हैं ,  लेकिन जब तक स्वयं अनुभव नहीं  कर लेते, तब तक जीवन के सच को समझ नहीं सकते हो ।
तुम किसी व्यक्ति को कुछ किताबें दे कर ,सर्जन बना नहीं  सकते हो। तुम  एक नक्शे में  मेरे देश को दिखाकर मेरी जिज्ञासा शांत नहीं  कर सकते हो। नक्शे सिर्फ उत्तम ज्ञान प्राप्त करने के लिए जिज्ञासा पैदा करते हैं । इसके अतिरिक्त इनका कोई महत्व नहीं  है।
मंदिर , चर्च , किताबें और ऐसी सभी सामान्य  वस्तुएं  धार्मिकता के लिए पहला कदम है, इनके द्वारा हम अपने बच्चे की नींव मजबूत करते हैं,  जिससे वह धर्म की शिक्षा के लिए  कठोर शब्द रख सके।
धर्म कोई सिद्धांत या धार्मिक  मत नहीं   है, न कोई बौद्धिक बहस है। यह तो सदा से है , रहेगा। धर्म   एक अहसास है।

मेरी समझ

हम कहते हैं कि हम धार्मिक है, इतने धार्मिक है कि अपने धर्म के गुणगान करने के साथ दूसरे के धर्म की आलोचना अधिक करते हैं। धार्मिक बनने के लिए, अपने को जानो, भेदभाव से मुक्त होकर, सच्चे मन से दूसरे को जानो, जीवन के सच को जानो और फिर अपने अंदर के धर्म को समझो।

ह्रदय  को उन्नत  करो।

हम शायद बहुत अधिक ज्ञानी हो सकते हैं , जिसने संपूर्ण संसार को जाना हो, पर ईश्वर के करीब न गए  हों  । दूसरी तरफ बौद्धिक प्रशिक्षण   से उत्पन्न  अधार्मिक मनुष्य   हो सकते हो। उनमें से एक पाश्चात्य सभ्यता  की बुराइयाँ है-  ऐसा बौद्धिक ज्ञान  जो ह्रदय के बिना मिला  है  ।यह इंसान को 10 गुणा स्वार्थी बनाता है।
जब दिल और दिमाग के बीच बहस हो तो हमेशा दिल की सुनो। ह्रदय जिस ऊंचाई तक पहुंच सकता  है वहां दिमाग  नहीं  पहुंच  सकता  है ।
जो बुद्धि से ऊपर है, वह प्रेरणा है। ह्रदय को उन्नत  करो, उसे समझो। ह्रदय  के जरिये ईश्वर बोलता है।
मानवता जिस गहनतम प्रेम को जानती है, वह धर्म से आता है। हमने जितने भी शांति के उत्तम शब्द इस संसार में   सुने है, वे हमने धर्म के ज्ञानियों   से सुने हैं ।
उसी समय संसार के सभी कङवे, निंदनीय  शब्द भी हमने धर्म  पुरूषों से सुने हैं ।
प्रत्येक  धर्म   के अपने मत है, जिन्हें   वे चाहते है कि सब इसे सच माने। कुछ तो अपने मत की सच्चाई   को स्वीकार   कराने के लिए ,  दूसरों पर दबाव डालने के लिए तलवार निकाल लेते हैं  ।
यह किसी दुष्ट भावना के कारण नहीं है, अपितु यह एक दिमागी बिमारी  है, जिसका नाम धार्मिक  कट्टरता  है। इन सभी धार्मिक मतभेदों , संघर्ष , नफरत और ईर्ष्या के बावज़ूद कुछ आवाजें शांति और अमन की भी सुनाई देती हैं  ।

मेरी समझ

हम किताबें पढ़ कर ज्ञानी बन सकते हैं पर सच्चे धार्मिक बनने के लिए हमें अपने हृदय को जानना होगा। दिमाग उलझा सकता है, भड़का सकता है पर हृदय में सच है, उसको सुनो।

क्रमशः