झोपड़ी में रहता देश
विवेकानंद जी कहते हैं कि ‘याद रखें हमारा वास्तविक देश झोपड़ी में रहता है। अब तुम्हारा यह कर्तव्य है कि तुम देश के प्रत्येक गांव व प्रत्येक कोने में जाओ, उन लोगों से मिलो, समझाओ कि यूं खाली, बिना कोशिश किए, स्थिति में सुधार नहीं हो सकता है।
उनसे कहो,” भाईयों, उठो! जागो! बहुत लंबे समय से सो रहे हो!
उनके पास जाओ, उन्हें समझाओ कि उन्हें अपनी इस अवस्था से बाहर निकलना होगा, उन्हें सरल व बोधगम्य शब्दों में शास्त्रों की सच्चाई बतानी होगी।
उनमें चेतना जागृत करो कि उनका व ब्राह्मणों का एक ही धर्म है। चंडालो के पास जाओ, उनसे मंत्रों का उच्चारण कराओ। उन्हें बताओ जीवन के लिए व्यापार, वाणिज्य , कृषि इत्यादि बहुत महत्वपूर्ण हैं।
जीवन की समस्त अवस्थाओं में आध्यात्मिकता
सदियों से क्रुर जातिय सामंतो, राजाओ और विदेशियों द्वारा इस वर्ग की ताकत छिनी जाती रही है।
अब इस ताकत को पाने के लिए उपनिषदों का अध्ययन करना है और यह विश्वास करना है कि ” मैं एक आत्मा हूं, कोई तलवार मुझे काट नहीं सकती, कोई हथियार मुझे भेद नहीं सकता, कोई आग मुझे जला नहीं सकती, कोई हवा मुझे सुखा नहीं सकती है, मैं सर्वशक्तिमान,सर्वव्यापी हूँ ।”
वेदों में रचित इन विचारों को, जंगलों से, गुफाओं से बाहर लाना है। इन विचारों को हर शराबखाने, हर कटघरे और प्रत्येक गरीब की झोपङी तक पहुंचाना है, मछुआरों और छात्रों के साथ इन विचारों पर काम करना है।
एक मछुआरा कैसे उपनिषदों के विचारों तक पहुँच सकता है? जब मछुआरा इन विचारों को समझेगा तब वह एक बेहतर मछुआरा बनेगा, छात्र उपनिषदों को समझकर एक उत्तम छात्र बनेगा।
मेरी समझ
निम्न वर्ग के मस्तिष्क में यह बात ब्राह्मण वर्ग ने स्थापित कर दी है कि उन्हें यह जीवन ईश्वर की मर्जी से मिला है। उन्हें इसी तरह गरीबी और तुच्छता में रहना है। ऐसा न करके वह पापी बन जाएंगे। अब अगर हमें एक अच्छे समाज में रहना हैं, देश की उन्नति करनी है तो इस वर्ग के मस्तिष्क से इस अंधेरे को खत्म करना हमारा ध्येय होना चाहिए। उन्हें वेदों – उपनिषदों में रचित सत्यार्थ से परिचित कराना है, जिससे वह स्वयं अपने आत्मिक व बौद्धिक विकास के प्रति जागरूक हो सके।
प्रत्येक घर में शिक्षा
विवेकानंद जी ने कहा कि भारत की प्रत्येक बुराई की एकमात्र जङ, गरीबी है। मान लीजिए आप एक गांव में एक विद्यालय खोलते हैं, पर वह चल नहीं पाता है , क्योंकि गरीब लङका अपने पिता के साथ काम करके पेट भर भोजन की व्यवस्था करे कि स्कूल आकर पढ़ाई करे।
यदि पर्वत मोहम्मद तक नहीं आता तो मोहम्मद पर्वत पर चढ़ता है, विद्यार्थी शिक्षा तक नहीं आता तो शिक्षा को विद्यार्थी तक पहुंचना होगा।
हमारे देश में हजारों ऐसे आत्मकेंद्रित, आत्मत्यागी संयासी है, जो गांव-गांव जाकर लोगों को धर्म की शिक्षा देते हैं । ये संयासी धर्मनिरपेक्ष होकर, संगठित रूप से घर-घर जाएं, एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाकर इन गरीब लोगों को प्रवचन न दे कर शिक्षा प्रदान कर सकते हैं ।
मान लीजिए इन में से कोई दो व्यक्ति अपने साथ एक कैमरा, विश्व मानचित्र, नक्शे लेकर जाएं और इन लोगों को भूगोल और खगोल शास्त्र का ज्ञान दें।वे लोग इन्हें कहानियों द्वारा अन्य देशों की जानकारी दे सकते हैं । जीवनपर्यंत किताबों द्वारा जो ज्ञान प्राप्त हो सकता है उससे सौ गुना ज्ञान ये इन गरीबों को कानों द्वारा दे सकते हैं ।
आधुनिक विज्ञान की सहायता से उन्हें शिक्षित करें। उन्हें भूगोल, इतिहास, विज्ञान और साहित्य की शिक्षा देने के साथ धर्म की सच्चाई से भी अवगत कराना जरूरी है।
ये लोग जीविकोपार्जन के लिए इस तरह संघर्षरत रहे कि ज्ञान की चेतना जागृत होने का समय व ध्यान ही नहीं था।
ये मशीन की तरह काम करते हैं और उसका लाभ चालाक धनिक वर्ग ले लेता है।
पर अब समय बदल रहा है, उनमें भी चेतना जागृत हो रही है, वे अन्याय के विरुद्ध एकजूट हो रहे हैं।
अब वह समय दूर नहीं जब उच्च वर्ग का दबदबा निम्न वर्ग पर समाप्त हो जाएगा। उच्च वर्ग द्वारा निम्न वर्ग को दी गई सहायता झूठ सिद्ध हो रही है। अब ये पाएंगे वो जो उनका वैधिक अधिकार है।
विवेकानंद जी कहते हैं कि इसीलिए मैं कहता हूँ कि अपने को निम्न वर्ग में शिक्षा के प्रसार के लिए तैयार करो। तुम उन्हें जाकर समझाओ कि “तुम हमारे भाई हो, हमारे शरीर के अंग हो।” ऐसे आश्वासन पाकर वे उत्साहित होकर सौ गुना काम करेंगे ।
मेरी समझ
यह गरीब व निम्न वर्ग जीवन की प्राथमिक आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए इतना संघर्षरत है कि शिक्षा और ज्ञान के लिए सोचने का समय ही नहीं है। इनका जीवन स्तर ऊंचा करने के इन्हें शिक्षित करना आवश्यक है। प्रत्येक शिक्षित नागरिक का यह प्रथम कर्तव्य होना चाहिए कि वह अपने आसपास के सभी अशिक्षितों को शिक्षित करें।
महान उपलब्धि की मांग: भावनाएं
विवेकानंद जी ने यह भी कहा कि इस महान उपलब्धि को पाने के लिए तीन बातों की आवश्यकता है। प्रथम , दिल से महसूस करो। ऐसा क्यों करना है?
कुछ कदम चलते हैं फिर रूक जाते हैं। प्रेरणा दिल से आती है। प्रेम से कठिनतम दरवाजे खुल जाते हैं । मेरे देश भक्तों महसूस करो। क्या तुम महसूस करते हो? क्या तुम महसूस कर पा रहे हो कि ईश्वर की संताने, संतों के वंशज, तुम्हारे पङोसी जानवरों जैसा जीवन जी रहे हैं ।
क्या तुम महसूस करते हो कि कई हजारों-लाखों लोग सदियों से भूखमरी में जी रहे हैं ?
क्या तुम यह महसूस करते हो कि हमारे देश में अज्ञानता काले बादल की भांति छाई हुई है? क्या तुम बैचेन नहीं रहते, तुम्हारी रातों की नींद नही उङती? क्या ये सब तुम्हारे खून में, नाङियों में बहते हुए, तुम्हारे दिल की धडकनों तक नहीं पहुंचता? क्या बर्बादी का एक विचार तुम्हें गुम नहीं कर देता, तुम अपना नाम, प्रसिद्धि , पत्नी, बच्चे यहां तक कि अपने शरीर को नहीं भूल जाते हो? क्या तुमने ऐसा किया है? तो यही पहला कदम है ।
समाधान
फिर तुम्हें सोचना चाहिए कि व्यर्थ की बातों में समय गंवाने से अच्छा है कि समाधान ढूंढा जाए। उन सबको कष्ट भरी, मृत्यु समान जीवन से बाहर निकालने का व्यवहारिक उपाय किया जाए। जबकि यह बिलकुल भी आसान नहीं होगा। इस काम को करने में पहाङ से ऊंची बाधाएं सामने होंगी।
पूरा विश्व तलवार लेकर तुम्हारे सामने खङा होगा, क्या उनका सामना करने की तुम में हिम्मत होगी? तुम्हारे पत्नी और बच्चे भी तुम्हारे विरूद्ध हो जाएंगे, तुम्हारा नाम डूब जाएगा, तुम्हारी संपत्ति छीन ली जाएगी, क्या तब भी तुम इस काम में डटे रह सकोगे।
दृढ़ता
क्या तुम अपने लक्ष्य को पाने के लिए डटे रह सकते हो? जैसे राजा भृतहरी ने कहा कि ‘ संतो को दोष दो या उनकी प्रशंसा करो,भाग्य की देवी को आने दो या वह जहाँ जाना चाहती है, वहाँ जाने दो, मृत्यु को अभी आने दो या सौ साल में आने दो। उसे ऐसा जिद्दी व्यक्ति चाहिए जो हर परिस्थिति में सच के लिए डटा रहे।’
क्या तुम में ऐसी निष्ठा, दृढ़ता है? यदि है तो तुम्हारे काम चमत्कार करेंगे।
काम पूजा है
आओ हम सब प्रार्थना करते हैं, ‘ ईश्वर ! हमें रोशनी दो। अंधेरे में भी प्रकाश मिलेगा, एक हाथ बढ़ कर हमारा नेतृत्व करेगा।’ हम उन लाखों, करोङो दीन लोगों के लिए प्रार्थना करें, जो गरीबी, अत्याचारी पुरोहितों इत्यादि के कारण व्रत करते हैं । इन सबके दुखो के निवारण के लिए प्रार्थना करें।
मैं कोई दार्शनिक या संत नहीं हूँ , गरीब हूँ और गरीबों से प्यार करता हूँ ।
कौन उन गरीबी और अज्ञानता की दलदल मे फंसे करोङो लोगों के लिए सोचता है? क्या जो गरीबों के लिए सोचता है, उसको मैं महात्मा कहूं ? उन्हें ज्ञान की रोशनी नहीं मिल सकती है। कौन शिक्षा देने के लिए दरवाजे – दरवाजे घूमेंगा? इनके लिए सोचो, इनके लिए काम करो, प्रार्थना करो, ईश्वर , अवश्य रास्ता दिखाएगा।
मेरी समझ
अगर हम अपने को मानवता व इंसानियत का साधक मानते हैं तो हमें अपने आसपास अमानवीय जीवन दिखना चाहिए और यदि हम अपने को सच्चा देशभक्त मानते हैं तो हमें अपने देशवासियों के कष्ट दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
क्रमशः