अमन के दूत श्री रामकृष्ण 

एक महापुरुष का जन्म होता है, जिसे सभी धर्मों में   समानता दिखती  है, सभी मत एक ही भावना से काम करते हैं और सबका एक ही भगवान्   है। जिसका ह्रदय गरीबों , कमजोरों व दलितों के   लिए   रोता है। उसी समय यह बौद्धिक पुरूष  न केवल भारत में अपितु विदेशों में भी उपस्थित विभिन्न   धार्मिक मतों  के विवादों में तालमेल बनाता है व  चमत्कारी   अमन की  स्थापना   करता है। और एक नया धर्म आता है  – सार्वभौमिक धर्म  ।
ऐसे महापुरुष का जन्म हुआ था। विवेकानंद  जी कहते हैं कि मैं   भाग्यशाली था, जिसे उनके चरणों में कुछ  साल बिताने का सुअवसर मिला था।
मेरे गुरू ने मुझे   इस महान सत्य से अवगत कराया कि संसार के सभी धर्म  आपस में अंतर्विरोधी या प्रतिरोधी नहीं   है।   ये सब एक सार्वलौकिक धर्म के विभिन्न पङाव हैं ।
श्री रामाकृष्ण किसी से कठोर शब्द नहीं कहते थे। वह इतने सहज और सहनशील थे कि प्रत्येक धार्मिक मतांवलंबी समझता था कि वह उसी के धर्म से जुङे हैं  ।
वह सभी से प्रेम करते थे , वह सभी धर्मों को   सच्चा मानते थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन धार्मिक रूकावटों को खत्म करने में बिताया था।

मेरी समझ

अगर हम समाज की उन्नति और अपना आत्मिक विकास चाहते हैं तो सभी धर्मों को सम्मान देना और उन पर विश्वास करना आवश्यक है।

कोई सहनशीलता नहीं , सिर्फ स्वीकृति 

अपने शब्दों को स्वीकार करो, उनका बहिष्कार मत करो। बहुत अधिक  तथाकथित सहिष्णुता , ईश्वरीय निन्दा बन जाती है।
सहिष्णुता का अर्थ है कि मैं  सोचता हूँ कि तुम गलत हो और मैं तुम्हें जीने की अनुमति देता हूँ  ।क्या यह ईश्वर की निन्दा नहीं है कि मै और तुम दूसरों को जीने की अनुमति   दें।
मैं पिछले  सभी धर्मों को स्वीकार करता हूँ  और सबकी आराधना करता हूँ । मैं उन सबके साथ पूजा करता हूँ और  उनके  तरीकों का अनुसरण करते हुए ईश्वर   की आराधना करता हूँ ।
मै मौहम्मद की मज्जिद जाऊँगा  , क्रिश्चियन के  चर्च जाऊँगा , क्रुस के   सामने घूटनों पर बैठूंगा। मैं बौद्ध मंदिर  में प्रवेश करूंगा और बुद्ध और उसके नियमों की शरण में जाऊंगा।  मैं जंगल जाऊंगा और उन युवा तपस्वियों के साथ तपस्या करूंगा, जो उस रोशनी को पाना चाहते हैं , जो रोशनी सबके ह्रदय को प्रकाशमान करेगी।
मैं   न केवल यह सब करूंगा अपितु जो भविष्य में  आएंगे उनके लिए अपना ह्रदय खोल कर रखूँगा ।
क्या ईश्वर की किताब समाप्त हो गई  है? क्या यह निरंतर चलने वाला ईश्वरीय रहस्योद्घाटन नहीं  है?
यह एक चमत्कारी किताब है- संसार का आध्यात्मिक  रहस्योद्घाटन  । बाईबल, वेद, कुरान और सभी पवित्र किताबें  चमत्कारी हैं , पर अभी बहुत सारे, अनगिनत पन्नों का ज्ञान जानना शेष है।
अपने अतीत के साथ अपने वर्तमान का आनंद लो, और अपने ह्रदय की खिड़कियां  भविष्य   के लिए खोलकर रखो।
सभी अतीत के पैगंबरों को प्रणाम, आज के महापुरुषों को प्रणाम,जो भविष्य में  आ रहें   हैं   उन्हें भी हमारा प्रणाम।

अंत और उपाय ( साधन)

विवेकानंद  जी कहते हैं कि सबसे महत्वपूर्ण पाठ मैंने  अपने जीवन में  सीखा है कि हमें  अंत के समान उपाय पर भी ध्यान देना चाहिए  ।जिनसे मैंने यह सीखा था, वह एक महान व्यक्ति थे, उनका  अपना जीवन  इस सिद्धांत  का  सफलतापूर्वक  प्रदर्शन    था।
मैंने  स्वयं इस सिद्धांत से बहुत कुछ सीखा है , अंत के साथ उपाय  को भी महत्व देने में  ही जीवन की सफलता का रहस्य  छिपा है।
  हमारे जीवन की सबसे बङी कमी यही है कि हम अपना ध्यान सिर्फ अपने जीवन लक्ष्य  या उद्देश्य की ओर लगाते हैं ।अपने मस्तिष्क  को निरंतर  इसी ओर सोचने में व्यस्त रखते हैं पर इस कारण जो  अंतिम सच हम पाना चाहते हैं , उसे खो देते हैं ।

असफलता के  कारण

निन्यानवे  प्रतिशत मामलों  में , जब असफलता से सामना होता है, और उस असफलता की समीक्षा की जाती है, तब ‘उपाय को महत्व न देना’ ही असफलता का कारण  मिलता है।
यह बहुत जरूरी है कि अंत तक उपाय को मजबूत रखने पर ध्यान दिया जाए। सही साधनों  या उपाय होने से लक्ष्य की प्राप्ति  अवश्य होगी।
हम भूल जाते हैं कि  कारण से परिणाम  उत्पन्न   होता है, प्रभाव स्वयं नहीं आता है, यदि मनोरथ उचित, वास्तविक और शक्तिशाली  नहीं   है तो परिणाम   भी उत्पन्न   नहीं  होगा।
जब एक बार अपना आदर्श चुन लिया जाता है और उपाय या साधन निश्चित कर लिए  जाते हैं ,  तो लगभग लक्ष्य  को पा ही लेते हैं , क्योंकि जब उपाय उत्तम है तो हम निश्चित  होते हैं  कि लक्ष्य  भी प्राप्त  होगा।
जब मनोरथ वहां है, तो परिणाम के लिए कोई कठिनाई  नहीं होती है, वह आता ही है। यदि हम कारण पर ध्यान देते हैं ,  तो प्रभाव स्वयं अपना ध्यान रखता है।
आदर्श  को ठीक से समझना, उसको प्राप्त करना ही परिणाम है।

मेरी समझ

हम अपना लक्ष्य तो निर्धारित कर लेते हैं पर उस लक्ष्य तक पहुंचने के सभी रास्ते या साधनों को चुनने में सावधानी नहीं रखते हैं, हम जल्दी में रहते हैं, फिर असफल होने पर पछताते हैं।

उपाय

उपाय कारण होते हैं , उपाय पर ध्यान दो इसी में जीवन का रहस्य छिपा है।
हमने गीता में पढ़ा है कि हमे कर्म करना चाहिए , अपनी संपूर्ण  ऊर्जा के साथ निरंतर कर्म करना चाहिए , चाहे वह जो भी कर्म हो, हमें अपना मन- मस्तिष्क  उस कर्म में  लगाना चाहिए ।
इसी के साथ इस कर्म से लगाव नहीं रखना हैं । यह कह सकते हैं कि किसी भी कारण से हमें   उस कार्य को करते हुए परेशान  या हारना नहीं  चाहिए, लेकिन  हमारे में यह  योग्यता होनी चाहिए  कि जब हम चाहे उस कार्य को सरलता से छोङ सके ।
यदि हम अपने जीवन  को  जांचें तो हम पाते हैं कि हमारे दुःख का सबसे बङा कारण होता है कि हम कुछ   लेते है और उसमें अपनी ऊर्जा  लगाते है, शायद वो असफलता है, जिसे हम साथ लेकर चलते है, उसे छोड़ नहीं   सकते हैं ।
हम जानते हैं कि इससे हमें कष्ट हो रहा है, फिर हम उसे अपने साथ ले कर चलते रहते हैं , हम उससे तब तक आजाद नहीं हो सकते, जब तक हम स्वयं उसे अपने से अलग करके फेंक  नहीं देते हैं ।
मधुमक्खी  शहद पीने आती है, पर उसके पैर शहद में चिपक जाते हैं  । वह शहद के घङे से शहद लेना चाहती है पर फंस जाती है।
हमारे साथ भी बार-बार यही स्थिति   होती   है। यह ही अस्तित्व का संपूर्ण रहस्य है।
हम यहाँ  क्यों है?
हम शहद लेने आए थे, पर हमारे हाथ- पैर फंस जाते हैं । हम पकङने आए थे, पर पकङे जाते हैं  । हम आनंद लेने आए थे, आनंद  के साधन बन जाते हैं , शासन करने आए थे, शासित बन जाते हैं , हम काम करने आए थे, स्वयं काम हो जाते हैं , जीवन के सभी चरणों में  हम अपने को ऐसा पाते हैं । हम दूसरों के मस्तिष्क के आदेश पर कार्य करते हैं और पूरे  जीवन   दूसरों के मस्तिष्क पर    काम करने के  लिए संघर्ष करते रहते हैं । हम जीवन की समस्त खुशियों का आनंद जीना चाहते हैं पर वे हमारी प्राणशक्ति  नष्ट कर देते हैं ।
हम प्रकृति  से लेना चाहते हैं,  पर हमें बहुत समय बाद ज्ञात होता है कि प्रकृति   ने हम से सब ले लिया   है, हमें   शुन्य कर दिया है, हमें एकतरफ फेंक  दिया है।

मेरी समझ

गीता में लिखा है ‘ कर्म कर फल की चिंता मत कर’। पर हम उल्टा करते हैं, हमारा ध्यान सिर्फ फल की ओर रहता है और ध्यान के साथ चिंता रहती है, जिससे कर्म बोझ बन जाता है। सोचिए बोझिल काम अच्छा फल कैसे दे सकता है? हम एक गलती यह भी करते हैं कि इस असफलता का दोष दूसरों को देते रहते हैं। फिर जीवन भर खुशियां ढूंढते रह जाते हैं।

क्रमशः