सीता एक आदर्श

विवेकानंद जी ने कहा कि भारतीय महिलाओं को सीताजी का अनुसरण करना चाहिए । सीता अद्वितीय हैं । वह भारतीय महिलाओं के लिए आदर्श है, सभी महान आदर्शमयी महिलाओं में सीताजी का जीवन चरित्र अनूठा है।


आर्यावर्त के लंबे काल से अब तक सीता को पूजा जाता रहा है। सीता अपने गरिमापूर्ण चरित्र के लिए सदा पूजी जाती रहेगी। उन्होंने बिना ऊफ किए अपने जीवन को शालीनता और पवित्रता के साथ जिया था। वह सब लोगों की आदर्श है, उन्हें सदा के लिए हमारा राष्ट्रीय भगवान मानना चाहिए । वह हमारे जीवन के सभी भेद भाव से ऊपर है । हमने देखा है कि आधुनिक महिलाएं उनके जीवन चरित्र से भिन्न जाती हैं तो असफल होती हैं ।


मेरी समझ

सीताजी का एक गरिमापूर्ण और स्वाभिमानी महिला के रूप में ही चित्रण किया गया है। महिलाओं को उनका अवश्य अनुसरण करना चाहिए । बिना ऊफ किए गरिमा और स्वाभिमान के साथ उस ऊफ के विरुद्ध खङा होना चाहिए । अगर बारिकी से देखें तो सीता का चरित्र भी विरोध कर रहा है।

त्याग का प्रशिक्षण

विवेकानंद जी ने कहा कि आज अगर अध्ययन करें तो समझा जाता है कि इन महान आदर्श चरित्रों को त्याग करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता रहा, जिससे प्राचीन काल से उनके खून में रची बसी पवित्रता गुम न हो जाए । आज हमारी मातृभूमि को आवश्यकता है कि उसके बच्चे पवित्र बह्रमचारी, बह्रमचारिणी बने।


इन सब महिलाओं में से एक महिला भी अगर ब्रह्मा का ज्ञान प्राप्त करती है तो उसका गरिमामय, ओजस्वी पूर्ण चरित्र आने वाले हजारों वर्षों तक अन्य महिलाओं के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करेगा।
ब्रह्मचारिणियों की शिक्षा, व चरित्र निर्माण शिक्षण में मुख्य तत्व होने चाहिए । हर शहर व गांव में स्त्री शिक्षा का प्रचार होना चाहिए व स्त्री शिक्षा केंद्र खुलने चाहिए ।

मेरी समझ

देश व समाज के विकास लिए स्त्री का शिक्षित होना आवश्यक है। एक स्त्री शिक्षित अथार्त पूरा परिवार शिक्षित , इस तरह संपूर्ण समाज, देश शिक्षित । एक शिक्षित स्त्री में समाज को बदलने की हिम्मत और बुद्धि होती है क्योंकि समाज में उपस्थित बुराईयों को वह ही सबसे अधिक समझती है ।

धर्मनिरपेक्षता की शिक्षा

विवेकानंद जी कहते हैं कि सभी धर्मों की शिक्षा उन्हें मिलनी चाहिए । इतिहास, पुराण और साहित्य की शिक्षा के साथ सभी कलाओं और समस्त घरेलू कार्यो जैसे- सिलाई-कढ़ाई, खाना बनाना व बच्चों की परवरिश की शिक्षा भी मिलनी चाहिए । उन्हें चरित्र निर्माण के सिद्धांतों और कर्तव्यों का ज्ञान भी देना चाहिए । सबसे अधिक आवश्यक है कि उन्हें जाप करना, पूजा करना और ध्यान करना सिखाना भी शिक्षण का महत्वपूर्ण भाग होना चाहिए ।

मेरी समझ

अगर एक महिला धर्म निरपेक्ष होगी तो समाज भी धर्मनिरपेक्ष बनेगा। बच्चा पहला पाठ अपनी माँ की गोद में सीखता है। आज हम जातिगत , ऊंच- नीच के भेदभाव में इतना फंस गए हैं कि समाज व देश दलदल में दबता जा रहा है, यानि मनुष्य दलदल में फंस गया है और वह समझ नहीं रहा है। एक बच्चे को माँ के गर्भ से ही धर्म निरपेक्षता की शिक्षा मिलनी चाहिए ।

आत्मरक्षा

विवेकानंद जी कहते हैं कि सभी महिलाओं में वीरता और नेतृत्व के भाव भी जगाने आवश्यक है ।
आज की तारीख में उन्हें आत्मरक्षा का प्रशिक्षण भी देना आवश्यक है,उन्हें महान झांसी की रानी तरह बनना होगा।
महान निर्भीक महिलाओं जैसे – संघमित्ता,लीला, अहिल्याबाई और मीराबाई की पंरपराओं को आगे बढ़ाने के लिए महिलाओं को निर्भीक व बहादुर बनाना होगा।


यही महान नायकों की माँ होती है, ऐसी पवित्र , शक्तिमान महिलाओं को पूजा जाता है।
आने वाले समय में , हमारे अपने घरों में ऐसी महिलाएं होंगी। ऐसी माँओं के बच्चों के विकास में अंतर दिखेगा । जिन घरों में शिक्षित व धर्मनिष्ठ महिलाएं होती हैं वहां महान संतानों का जन्म होता है।
यदि महिलाएं अपने बच्चों को आदर्श व नैतिकता की , देशभक्ति की शिक्षा देती हैं , तो देश में संस्कृति , ज्ञान , शक्ति व भक्ति का जागरण होता है।

मेरी समझ

स्त्री की शिक्षा समाज व देश और मनुष्यता के लिए आवश्यक है। पर दुख की बात है कि आज भी देश में स्त्री शिक्षा का प्रतिशत बहुत कम है।

क्रमशः

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