आम व्यक्ति की शिक्षा 

राष्ट्र की महानतम त्रुटि 

विवेकानंद जी कहते हैं, ‘ मेरा ह्रदय   अपने देश के गरीब व निम्नतर लोगों की दशा देखकर दुखी होता है।’ उनकी स्थिति दिन- प्रतिदिन गिरती जा रही है।
उन्हें लगता है कि यह क्रुर समाज उन पर प्रहारों की वर्षा कर रहा है, पर वे नहीं जानते कि ये प्रहार कहां से आते हैं ? वे भूल जाते हैं कि वे भी मनुष्य   हैं।


मेरा ह्रदय अपनी भावनाओं को व्यक्त करना चाहता है, कई हजारों वर्षों से भूख और अज्ञानता में रहने के कारण, प्रत्येक व्यक्ति मुझे विश्वासघाती लगता है, जिसने उनके ही पैसों से शिक्षा प्राप्त  करने  के पश्चात भी उन पर रत्ती भर ध्यान नहीं दिया है ।हमारे देश की सबसे कमी, व देश की गिरावट  का कारण यही है कि इस निम्नतर जनता को नजरअंदाज किया गया है। हमारे देश की किसी भी प्रकार की राजनीति ने इस निम्न वर्ग की प्राइमरी आवश्यकताओं, भोजन, शिक्षा पर ध्यान नहीं  दिया है।

मेरी समझ

यह बहुत ही दुखद स्थिति है, समाज में गरीब और निम्न वर्ग की दुर्दशा को सुधारने के प्रयास नहीं किए जाते हैं। इस वर्ग में भी अपनी स्थिति को सुधारने की चेतना जागृत नहीं हो रही है। राजनीतिज्ञ अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए केवल मात्र उनका इस्तेमाल करते हैं। सुधार की बातें नारों तक ही सीमित है।

निम्न वर्ग की शिक्षा- एक समाधान

विवेकानंद जी कहते हैं कि एक देश तभी उन्नत हो सकता है,जब उसकी आम जनता शिक्षित व ज्ञानी   होती है। भारत की दुर्दशा का मुख्य  कारण यही है कि यहाँ ज्ञान व शिक्षा सिर्फ मुठ्ठी भर लोगों की बपौती बन कर रह गए हैं  ।


निम्नतर वर्ग के लिए हमारी एकमात्र   सेवा उनको शिक्षा प्रदान करना होना चाहिए जिससे उनका बौद्धिक व आत्मिक विकास हो सके । वे भी अपने विचार प्रकट करें। संसार में उपस्थित सभी विचारों और क्रियाकलापों से परिचित होकर अपनी भूख मिटाने का उपाय ढूंढ सके। प्रत्येक देश, प्रत्येक औरत, प्रत्येक आदमी को अपने भोजन के लिए आत्मनिर्भर होना चाहिए ।


उन्हें सिर्फ यही आवश्यकता है कि हम उन्हें विभिन्न विचारों और ज्ञान से परिचित कराएं, अन्य समाधान स्वयं अनुसरण करेंगे । प्रकृति के नियमों के अनुसार, रासायनिक तत्वों का सम्मिश्रण  करने से क्रिस्टलीकरण होता है।

मेरी समझ

शिक्षा व ज्ञान प्राप्त करना सबका मौलिक अधिकार है। शिक्षा प्राप्त करने का अर्थ सिर्फ अपना नाम लिखना सीखना नहीं है। जैसा साक्षरता अभियान में दर्शाया जाता है। उन्हें ज्ञान प्राप्त करना है, जो उन्हें अंधेरे से प्रकाश में लाएगा। उन्हें भी राजनीतिक, ऐतिहासिक, सामाजिक व आध्यात्मिक समझ की आवश्यकता है।

महान आध्यात्मिक विचारों से सबका परिचय

विवेकानंद जी कहते हैं कि हमारी आध्यात्मिक किताबों में लिखे कीमती विचारों को सबके सामने प्रकट करना है, जो कुछ मुठ्ठी भर व्यक्तियों के आधिपत्य में है, जो मठों या जंगलों में   छिपे है , उन सबको निकालना है, यह ज्ञान सबके लिए प्रकाशित करना है, वह जो सदियों से संस्कृत भाषा के शब्दों में संरक्षित है। एक शब्द में कहना चाहता हूं  कि इस ज्ञान को लोकप्रिय बनाना है।


मैं इन ज्ञानवर्धक विचारों को जनसंपत्ति बनाना चाहता हूं । सभी जन के लिए, चाहे उन्हें संस्कृत भाषा का ज्ञान हो अथवा नहीं हो।
हमारी इस गरिमापूर्ण भाषा संस्कृत में   कठिनाईयां हैं ,  जो तभी दूर हो सकती है कि जब यह संपूर्ण देश की भाषा बन जाए।


इस कठिनाई को तुम ऐसे समझ सकते हो कि जब तुम्हें बताऊँ कि मैंने जीवनपर्यंत संस्कृत भाषा  का अध्ययन किया है, फिर भी  इस भाषा में   रचित कोई नई किताब पढ़ता हूं, तो यह भाषा भी अजनबी लगती है। 
  अगर मुझे कठिनाई है तो उन लोगो के लिए जिनके पास अध्ययन का बहुत कम समय है, संस्कृत भाषा दुष्कर हो सकती है। अतः लोगों को ज्ञान उनकी भाषा में मिलना चाहिए।

मेरी समझ

हम कहते हैं व इस पर चर्चा करते हैं कि हमारे देश में ही प्रत्येक ज्ञान की खोज हुई है, हम शोर मचा रहे हैं कि हमारे ऋषि, मुनि परम ज्ञानी थे। यह सच है कि हमारा अतीत गौरवशाली था। परंतु आज जो स्थिति है, उस पर हम विचार भी नहीं करते हैं। आम व्यक्ति को तो ज्ञान प्राप्त करने से वंचित कर दिया गया था। तो आज देखें हमारा देश अज्ञानता के अंधेरे में डूबा हुआ है।एक देश मुठ्ठी भर लोगों से नहीं बना है, वह तो करोड़ों अरबों आम निम्न साधरण लोगों से बनता है।

मातृभाषा में शिक्षा

सबसे महत्वपूर्ण विचार है कि  आम जनता को, प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा उसकी भाषा में मिलनी चाहिए।
पर इससे भी अधिक जरूरी है कि उन्हें संस्कार मिले, संस्कारी होने पर आम जनता की दुष्कर समस्याएं स्वयं गायब हो जाएंगी ।

संस्कृत की शिक्षा 

मातृभाषा की शिक्षा के साथ संस्कृत भाषा की शिक्षा भी देनी आवश्यक है। संस्कृत के शब्दों में गर्व, शक्ति और ताकत है। महान बुद्ध से भी गलती हो गई थी, उन्होंने आम जनता को संस्कृत की शिक्षा देनी बंद कर दी थी। वह तुरंत परिणाम प्राप्त करना चाहते थे , अतः उन्होंने पालि भाषा में अनुवाद करके लोगों तक ज्ञान का प्रसार किया था, जो आम जनता के लिए  बहुत प्रभावी होने पर भी, उन्हें गौरव नहीं दिला सका, अपितु  एक नया वर्ग बन गया और संस्कृत विद्वान और ज्ञानी हो गए ।

मेरी समझ

हमारे प्राचीन ग्रंथ दुरूह संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं। क्या उस भाषा को सब जानते हैं? क्या यह भाषा सबके लिए सीखना आसान है? और जो इन ग्रंथों की व्याख्या की जाती है, वह‌ सही है? आम व्यक्ति तक इस प्राचीन ज्ञान को पहुंचाना आवश्यक है।

क्रमशः

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