THE TELL-TALE HEART
EDGAR ALLAN POE
कहानी दिल की- (भाग -3)
आप अगर मुझे अभी भी पागल समझ रहे हैं तो आप जल्दी ही जान जाएंगे कि आप भूल कर रहें हैं क्योंकि मैं आपको बताने जा रहा हूँ कि मैंने लाश को कैसे ठिकाने लगाया।
मैंने बहुत सावधानी से लाश के टूकङे किए। सिर, हाथ, पैर सब शरीर से अलग किए फिर, लकङी की ज़मीन के चैम्बर से तीन तख्ते निकाले और उनके खाली स्थानों पर उन लाश के टूकङों को बहुत सावधानी से रख दिया और उन पर दुबारा उन तख्तों को जमा दिया था।
यह काम इतनी सावधानी से किया था कि कोई होशियार व्यक्ति भी इसे नहीं पकङ सकता था। कोई खून का धब्बा भी नहीं था, जिसे साफ करना पङता। मैं अपनी सफलता पर खुश था कि मैंने शक की कोई गुंजाइश नहीं छोङी थी अन्यथा पानी का एक टब भी शक का कारण बन सकता था
लाश को ठिकाने लगाने और सब चीजें अपने स्थान पर रखते – रखते सुबह के चार बज गए थे, पर अंधेरा अभी भी बहुत था।
तभी गली की ओर मुख्य दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी ।मैं दरवाजा खोलने गया, मैं बहुत शांत था, मेरे मन में कोई भय नहीं था।
दरवाजे पर तीन शख्स खङे थे, उन्होंने अपने परिचय का प्रमाण देते हुए कहा कि वे पुलिस ऑफिसर हैं। हमारे पङोसी ने हमारे घर से आती एक चीख सुनी थी। यह सोचकर कि यहां कोई दुर्घटना न हुई हो, उन्होंने पुलिस को सूचित किया था।
मैं निश्चित था, अतः बिना भय के उनसे कहा, यहाँ सब ठीक है। घर के बुजुर्ग अपने गांव गए हैं , मैं ही अकेला हूँ और चीख मेरी ही होगी क्योंकि मैंने एक डरावना सपना देखा था। फिर उन्हें और आश्वस्त करने के लिए मैंने उन्हें घर का कोना- कोना दिखाया, और उन्हें उस कमरे में भी ले गया । उनका सामान सब व्यवस्थित था, चोरी की भी आशंका नहीं हो सकती थी। वे भी आश्वस्त हो गए थे।
और मैं इतना निश्चित था कि मैंने उन महानुभावों को उसी कमरे में कुछ देर बैठने का निमंत्रण भी दे दिया कुछ और कुर्सियां ले आया और स्वयं भी एक कुर्सी पर बैठ गया, मेरे बैठने के स्थान के ठीक नीचे लाश के टूकङे थे।
हम सहजता के साथ विभिन्न विषयों पर बातचीत कर रहे थे। पर थोङी देर में मेरे कानों में जैसे घंटी बजने लगी थी, घंटी जैसी आवाज़ बहुत हल्की और लगातार आ रही थी, उस आवाज से मैं बैचेन होने लगा था।
अपनी बैचेनी छुपाने के लिए मैं बहुत जल्दी-जल्दी और ज़ोर से बोलने लगा था। यह आवाज़ बहुत हल्की और दूर से आती प्रतीत हो रही थी, ऐसा लग रहा था कि किसी घङी को रूई में दबा कर रखा गया है और उसकी टिकटिक सुनाई दे रही हो।
मैं घबराहट में पीला पङता जा रहा था, चाहता था कि अब ये ऑफिसर यहाँ से जाएं। पर वे बातचीत में मग्न थे। मैं भी उनकी बातचीत में शरीक हो कर अपनी घबराहट छिपाने की कोशिश कर रहा था। पर वह आवाज़ …. टिकटिक निरंतर आ रही थी अपितु अब बहुत स्पष्ट सुनाई दे रही थी और यह मेरे कान के अंदर से नहीं आ रही थी, कान में कोई खराबी नहीं थी।
जैसे-जैसे आवाज बढ़ रही थी, मैं भी उतनी ही ऊंची आवाज़ में और रफ्तार में बोल रहा था। हे भगवान, यह लोग क्यों नहीं चले जाते! मुझे फिक्र हो रही थी कि इन ऑफिसरों ने यह आवाज़ सुन ली तो?
मैं अपने पैरों से अपनी कुर्सी के नीचे फर्श को दबाने की कोशिश करने लगा, मेरी कोशिश थी कि उन लोगों को मेरी हरकत का पता न चले अतः बहुत इत्मीनान से फर्श को दबाने की कोशिश कर रहा था।
पर वो आवाज़ बढ़ती जा रही थी, और उसके साथ मेरी उत्तेजना भी, वे बेशक बहुत निमग्न अपनी बातचीत में व्यस्त थे, पर मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि वे अवश्य मेरी क्रियाओं को ध्यान से देख रहे थे, मेरी घबराहट और उत्तेजना उनकी सूक्ष्म निगाहों से छिपी नहीं थी।
वे सब मुझ पर हंस रहे थे, मेरा मजाक बना रहे थे, यह सब मेरे लिए असहनीय था। ओह! यह आवाज़ तो बढ़ती ही जा रही है! मैं क्या करूँ! और मैं चिल्ला पङा! वो अब इस दुनिया में नहीं है ! मैं अपनी कुर्सी से उछल पङा और सारे तख्तों को निकाल कर फेंक दिया। यह रहा वह छिपा हुआ दिल! मैंने अपने सभी कारनामें कबूल कर लिए ।