THE BLIND MAN
D.H. LAWRENCE
नेत्रहीन व्यक्ति ( सूरदास ) ( भाग -5)
वह सीढ़ियों के पायदान पर रूक गया जैसे कुछ सुनना चाहता हो। मानो अपना भाग्य जांच रहा हो। फिर बोला, ” वह जब तक आए मैं कपङे बदल लेता हूँ ।”
” माॅरिस ! तुम नहीं चाहते कि वह आए।”
” नहीं , ऐसा बिल्कुल नहीं , मैं उससे मिलने के लिए उत्सुक हुँ”
” हाँ, मैं जानती हूँ ।” यह कहते हुए उसने आगे बढ़कर उसके गाल को चूम लिया।
उसने देखा इससे उसके चेहरे पर एक हंसी खिल आई है।
इसाबेल ने थोङे रोष के साथ कहा,” तुम मुझ पर हंस रहे हो!”
वह मुस्कराते हुए बोला, ” तुम मुझे सांत्वना दे रही हो?”
” नहीं , ऐसा नहीं हैं । तुम हमारे प्रेम को जानते हो, हमारे वैवाहिक जीवन में प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी महत्त्वपूर्ण नहीं है।
” बिलकुल” यह कहकर उसने इसाबेल के चेहरे को अपनी उंगलियों से छुआ।
और तुरंत बोला, “क्या तुम ठीक हो?, कुछ परेशानी है?”
” नहीं , तुम तो जानते हो, मुझे तुम्हारी चिंता रहती है ।”
मेरी क्यों ?” उसके गालों को माॅरिस ने अपनी ऊंगलियों के पोरों से छुआ। इसाबेल को उसके इस स्पर्श ने सम्मोहित कर लिया था।
वह ऊपर चला गया, वह नीचे से ही उसकी हर क्रिया मानों देख सकती थी। ऊपर अंधेरा है, माॅरिस को नहीं पता कि लाइटें बंद है। वह अपने अभ्यस्त हाथ- पैरों से अपने काम कर रहा था।
माॅरिस अवचेतन रूप से अपने जाने- पहचाने परिवेश को समझ सकता है। अंधेरा होने पर भी उसे कोई कार्य करने में असुविधा नहीं है।वह अपनी वस्तुओं को छूने से पहले ही पहचान लेता है। यह सब करके उसे खुशी मिलती है।
अपने-आप उसमें यह समझ उत्पन्न हो गई है। उसे खुशी है कि उसे यह सब बहुत कठिन नहीं लगा था। वह जल्दी ही, समस्त कार्यो को सहजता से करने लगा था। अब वह अपने अंदर किसी दृश्यात्मक चेतना का दखल नहीं चाहता था।
जिन्दगी के इस संघर्ष भरे कठिन समय में सकारात्मक रूप से इन कठिनाइयों को जीतना उसने सीख लिया था। वह अपनी सफलता पर खुश था। वह हाथ बढ़ा कर किसी भी अनदेखी वस्तु को ले सकता था, पकङ सकता था। उसको उस वस्तु को याद करने या उसकी कल्पना करने की आवश्यकता नहीं थी। यह एक नई चेतना उसमें स्स्थापित हो गई थी।
वह अपनी इस कुशलता से बहुत प्रसन्न होता, यह खुशी अपनी पत्नी से प्रणयता के क्षणों में भी उजागर होती थी।
पर कभी वह निराशा के समुद्र में गोते खाता होता। निराशा के थपेड़े उसे गहरी खाई में ले जाते थे।और वह अपनी इन्हीं ताकतों पर, विवेकशीलता पर, संदेह करने लगता।
जब वह यह जांचने लगता कि यह कब तक और कितना लंबा चलेगा ? तब वह अवसाद में पागल हो जाता और उसे समस्त ब्रह्मांड अपना दुश्मन दिखता था। उसे अपने को संभालना कठिन लगता था।
आज वह बहुत शांत था, पर कभी-कभी हल्की-सी अंजानी बैचेनी उसके रगों में गुजर जाती थी। वह सावधानी से शेव कर रहा था, रेजर चलाना कुछ कठिन कामों में से एक था, जिसमें ध्यान लगाने की आवश्यकता होती थी।
उसके सुनने की शक्ति भी अब तीव्र हो गई थी । उसने सुना काॅरीडोर की लाइट जला दी गई है, मेहमानों के कमरे में आग जलाई जा रही है। गाङी के आने और रूकने की आवाज़ के साथ इसाबेल की भी खनकती हुई आवाज़ सुनाई दी थी ।
” बैरटी! आ गए ।”” हेलो, इसाबेल “
” क्या रास्ते में बहुत कठिनाई हुई ?
” माफी चाहती हूँ , कोई बंद गाङी नहीं भेज सके।” इसाबेल बोल रही थी।
“अरे, नहीं , मुझे गाङी चलाने में आनंद आया।”
” इसाबेल ! तुम तो हमेशा की तरह स्वस्थ दिखती हो।”
” और, तुम तो कुछ कमजोर दिख रहे हो”
हंसते हुए” काम के बोझ तले मरा जाता हूँ ।”
” तुम्हारे कपङे तो भीग गए हैं , बदल लो, इन्हें मैं सूखाने के लिए दे देती हूँ ।”
क्रमशः
कहानी दिलचस्प है 💐💐
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शुक्रिया।
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अपनी प्रभाव से गंतव्य की अतिसुंदर अभिव्यक्ति से अग्रसर 👌👌
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धन्यवाद।
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👌👌
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धन्यवाद।
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🙏🙏
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