THE BLIND MAN
D.H. LAWRENCE
नेत्रहीन व्यक्ति ( सूरदास ) (भाग -4)
वह पहले खेत से होकर दूसरे खेत की ओर बढ़ी, तेज हवा के थपेड़े उसके मुँह पर पङ रहे थे और साथ में बारिश की बौछारें भी थीं जो उसे खुशी भी दे रही थी और साथ ही उसकी उलझन भी बढ़ा रही थी। अंधेरा बढ़ता जा रहा था। उसने सोचा काश! लालटेन ले ली होती। उसे उसके पांव कहां पङ रहे हैं , पता नहीं चल रहा था।
अंततः वह अस्तबल के दरवाजे तक पहुंची , बाहर से ही उसने अंदर झांकने की कोशिश करी, पर वहां सिर्फ अंधेरा था। अस्तबल के ऊपरी दरवाजे से अमोनिया और घोङों की गंध के साथ उसे गरमाहट का भी अहसास हुआ। घोड़े की हिनहिनाहट के अतिरिक्त कोई आवाज़ नहीं थी। उसने पुकारा, ” माॅरिस ! तुम हो क्या?” उसे लगा घोङों को ठंड लग रही होगी। उसने अंदर प्रवेश किया और दरवाजा थोङा भेङ दिया।
उसे डर लग रहा था, वह घोङों के पीछे के पैरों को महसूस कर सकती थी। उसे एक अंजाना भय घेरे था। वह हिली भी नहीं सिर्फ माॅरिस की आहट सुनने की कोशिश कर रही थी। फिर उसे एक तसले की आवाज़ के साथ किसी आदमी की बुदबुदाहट सुनाई दी। यह माॅरिस की आवाज़ थी। वह वहीं खङी रही और माॅरिस के इस तरफ आने की प्रतीक्षा करने लगी। वह समझ पा रही थी कि घोङे भी उसकी अनदेखी अनजानी उपस्थिति को महसूस कर रहे हैं और बैचेन हो रहे हैं ।
अंदर के दरवाजे की तेज आवाज आई, दरवाजा खुल गया। उसे अपने पति के पैरों की आहट करीब आती सुनाई दी। वह उसे घोङों के पास आता महसूस कर सकती थी। वह उसके बहुत करीब होते हुए भी, अदृश्य था। उसे अंधेरे में अजनबीपन का अहसास हुआ।
वह उदग्नि हुई। उसने उसे हल्की और सुरीली आवाज में पुकारा, “माॅरिस ! “
हाँ, इसाबेल ?”
इसाबेल को कुछ दिखाई नही दे रहा था, पर उसकी आवाज़ ने उसे माॅरिस के करीब होने का अहसास कराया। माॅरिस अभी भी घोङों के साथ व्यस्त था। उसकी व्यस्तता से परेशान हो कर, उसने पूछा,” तुम आ नहीं रहे क्या?”
” आ रहा हूँ , एक मिनट में । वहीं रहो! गाङी अभी नहीं आई क्या?”
“नहीं , अभी तक नहीं ।”
माॅरिस की आवाज बहुत साधरण और शांत थी, फिर भी उसे राहत दे रही थी।वह उसके लिए चिंतित भी थी।
” क्या टाइम हुआ?” मारिस ने पूछा।
” अभी छः नहीं बजे।” उसे अंधेरे में जवाब देना पसंद नहीं आ रहा था।
माॅरिस अब करीब आ गया था, वह भी लौटने के लिए मुङ गई थी। वह दरवाजे को टटोलता हुआ आगे बढ़ रहा था।
वह बोला, ” ठंडी हवा अंदर आ रही है।”
आखिरकार अब वह उसे हल्का सा देख पा रही थी।
बैरटी ज्यादा गाङी नहीं चलाता होगा न!” उसने पूछा ।
उसको जरूरत नहीं ” इसाबेल ने जवाब दिया ।
वह शांति से अंधेरे में उसे देख रही थी। बोली,” अपना हाथ मुझे दो।
उसकी बाहों को करीब से पकङ कर वह चलने लगी। उसे लगा , वह एकटक उसे देख रहा है। वह थोङा घबरा गई ।
वह सीधा और गर्दन थोड़ी ऊंची करके चल रहा है। वह अपना एक-एक कदम बहुत सावधानी और मजबूती से धरती पर पैर जमा कर रखते हुए चल रहा था। इसाबेल उसके साथ कदम से कदम मिलाकर कर चलते हुए, उसकी चाल को महसूस कर सकती थी। उसे माॅरिस अंधेरे का एक ऊंचा प्रतिमान प्रतीत हो रहा था, मानों धरती ने स्वयं उसे ऊपर उठा दिया हो।
घर के अहाते पर पहुंचते ही, उसकी गति तेज हो गई और नितांत मौन रहते हुए, अपना ध्यान उसने बैंच की तरफ रखा और फिर उस पर तुरंत बैठ गया।
माॅरिस के कंधे झुके हुए हैं, वह भारी बदन का था, पर पैरों मे ताकत थी, जिन्हें धरती की पूरी समझ थी। उसका सिर छोटा था, पर वह उसे ऊंचा करके रखता था। जब वह झुक कर अपने ग्लीटर और जूते खोलता तो इसाबेल को वह नेत्रहीन नहीं लगता था।
उसके हाथ लंबे गहरे लाल रंग के दिखते थे, जो बुद्धिमत्ता के प्रतीक होते हैं । वह जब खङा होता तो उसके चेहरे और गर्दन पर खून का प्रवाह तेज हो जाता था, माथे की नसें उभर आती थीं । इसाबेल को तब उसका अंधापन नहीं दिखता था।
जब वे घर के अंदर पहुंचे इसाबेल खुश थी साथ ही उसकी मजबूत पीठ को देखकर एक अंजाने भय का भी अहसास हुआ। एकाएक उसका व्यवहार बदला हुआ लगा, वह अपनी पत्नी की ओर से आने वाली खुशबू को सूंघ रहा था। एक अंजानी इत्र की हल्की- सी खुशबू जो किसी पकवान के मसाले से आ सकती है।
क्रमशः
दिलचस्प है 💐💐
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धन्यवाद।
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प्रभावित करती लेखनी,, क्रमशः भाग की ओर तत्पर 👌👌
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धन्यवाद।
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