THE BLIND MAN

D.H. LAWRENCE

नेत्रहीन व्यक्ति ( सूरदास )(अंतिम भाग)

बैरटी ने फिर कहा,” मैंने यहाँ ग्रेंज आकर तुम दोनों को परेशान कर दिया।”
” नहीं , बिलकुल नहीं, अपितु मैं खुश हूँ कि इसाबेल को बात करने के लिए एक साथी मिला, तुम तो जानते ही हो कि मैं तो मितभाषी हूँ। इसाबेल खुश है न! क्या ख्याल है?”

“नहीं, वह खुश नहीं हैं । वह तुम्हारे कारण परेशान है।”
” मेरे कारण ? क्यों ? वह क्या कहती है?”
“वह कहती है वह संतुष्ट है, सिर्फ उसे तुम्हारी चिंता है, शायद वह डरती हो कि तुम परेशान न हो जाओ। “

” नहीं, उसे मुझ से डरना नहीं चाहिए। मुझे लगता है, मैं उस पर अनचाहा बोझ बन गया हूं , जिसके लिए उसे शर्मिंदा होना पङता है” माॅरिस ने सोचते हुए कहा।

नहीं, तुम्हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए।” यह कहते हुए बैरटी को भी भय हो रहा था।
” मुझे तो कई बार लगता है जैसे मेरे कारण उसकी जिंदगी भी रूक गई है।”

फिर उसने सवाल किया, “अच्छा, सच- सच बताना मेरे चेहरे पर चोट का निशान बहुत बीभत्स है क्या?”
” चोट का निशान तो है, पर चेहरे को डरावना नहीं बनाता, लेकिन थोङा खराब तो लगता है” बैरटी ने जवाब दिया।
” थोड़ा खराब ! कई बार मुझे लगता है, अब मैं बदसूरत हो गया हूँ ।
मैं तुम्हें ठीक से नहीं जानता।” माॅरिस बोला।

“कह नहीं सकता।”
” अगर तुम बुरा न मानों तो क्या मैं तुम्हें छू सकता हूं ?” माॅरिस ने झिझकते हुए कहा ।
बैरटी के अंदर भय की लहर दौड़ गई, फिर भी उसने कहा,” नहीं, बुरा क्यों मानूंगा ।”

माॅरिस सीधा हुआ और अपना हाथ आगे बढ़ाया जो गलती से बैरटी के सिर पर लगा, बोला,” मैंने सोचा, तुम लंबे हो।”

फिर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए, उसकी खोपड़ी को महसूस करते हुये, अपने हाथ से बैरटी‌ के चेहरे को टटोलने लगा, माथा, बंद आँखे, नाक, ठोङी, गर्दन और हाथ भी, उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोला, “तुम तो बहुत युवा लगते हो।”

बैरटी कुछ नहीं बोला। माॅरिस ने उसके हाथों को अपनी आंखों पर रखते हुये कहा,” क्या मेरी आँखों को छुओगे, मेरी चोट के निशान को?”

बैरटी तो जैसे पूर्णतः उसकी गिरफ्त में था। उसके हाथ उसके घाव के निशान पर थे कि अचानक माॅरिस ने अपनी हथेली से उसके हाथ को दबाया और उसकी ऊंगलियों को घाव के एक-एक कतरे, गढ्ढे तक ले गया।

कुछ सैकंड तक उसने अपनी हथेली, उसकी ऊंगलियों पर ही रहने दी, बैरटी तो जैसे अबूझ, अचेत ही था। फिर शीघ्रता से उसने बैरटी का हाथ अपने चेहरे से हटा दिया।


माॅरिस बहुत प्रसन्न था, बोला,” अब हम गहरे मित्र हैं, हम एक दूसरे को जान गए हैं । हमारी मित्रता जीवन पर्यंत बनी रहेगी, क्यों मित्र ठीक है न!”

बैरटी स्तब्ध था, अभी जो हुआ, उसने उसके अंदर डर पैदा कर दिया था।
वह तो मुक्ति चाहता था, बोला, ” हाँ, ठीक कह रहे हो।”

माॅरिस थोङी दूर खङा था, वह सिर झुका कर, जैसे कुछ सुनना चाहता था, वह दोस्ती के इस नए अहसास में डूबा हुआ था। वह बोला,” चलो, इसाबेल को बताते हैं।”

इसाबेल व्यग्रता से उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। उनकी आहट के साथ, उनके पदचापों में आए बदलाव को भी महसूस किया जा सकता था। वह उनके स्वागत के लिए आगे बढ़ी। उसे माॅरिस अप्रत्याशित प्रसन्न दिखा और बैरटी बहुत गुमसुम था।

इसाबेल ने बैचेनी से पूछा, ” क्या हुआ?”
माॅरिस ने उत्साहित होकर जवाब दिया, ” अब हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए हैं ।”

इसाबेल ने चौंक कर बैरटी की ओर देखा, वह इस रहस्य को समझना चाहती थी। बैरटी का चेहरा गमगीन था। वह अभी तक माॅरिस की चोट के छुअन के अहसास से उबर नहीं पाया था।

इसाबेल ने अपने दोनों हाथों में माॅरिस के हाथ को लेकर कहा, ” यह तो वाकई खुशी की बात है।”

वह देख सकती थी कि माॅरिस वास्तव में बहुत खुश था। परंतु बैरटी अचानक थोपी गई इस दोस्ती से भाग जाना चाहता था।

माॅरिस की उंगलियां मानों अभी भी उसके चेहरे पर ही हो, उसे ऐसा लग रहा था, जैसे किसी ने उसके अंदर सेंध मार दी हो, जैसे घोघे के खोल को किसी ने तोङ दिया हो।

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