THE BLIND MAN

D.H. LAWRENCE

नेत्रहीन व्यक्ति ( सूरदास ) (भाग -3)

ऐसे समय जब बैरटी का पत्र उसे मिलता है, तो वह घबरा जाती है। वह दो वर्ष बाद अपनी दोस्ती को एक नए सूत्र में बांधना चाहता है। माॅरिस की नेत्रहीनता के समाचार से उसका मन द्रवित है। वह उन दोनों से मिलना चाहता था।


इसाबेल ने पत्र माॅरिस को दिखाया। पत्र पढ़ कर माॅरिस ने कहा, ” उसे आमंत्रित करो।”
इसाबेल ने पूछा , ” तुम वाकई चाहते हो, कि वह यहाँ आए? “
” हाँ, अगर वह आना चाहता है।”
” वह तो हमसे मिलना चाहता ही है। पर तुम?”
” हाँ, मैं चाहता हूँ कि हम उसे आमंत्रित करें ।”
इसाबेल ने झिझकते हुए कहा,” मैं समझती थी, तुम उसे पसंद नहीं करते।”
“पता नहीं, अब मैं अलग तरह से सोचने लगा हूँ ।”


माॅरिस के इस जवाब ने उसे और दुविधा में डाल दिया था।
तो आज नवंबर के इस बरसाती मौसम की शाम को बैरटी आ रहा है।


इसाबेल की बैचेनी बढ़ी हुई है। उसे नहीं पता आने वाला समय कैसे बीतेगा?गर्भावस्था के आरंभ का आलस्य और निराशा भरा समय हालांकि बीत गया है, पर इस क्षण वह जैसे फिर वैसा ही कष्ट महसूस कर रही थी। वह कई दिनों बाद अपने मित्र से मिलेगी। उसे खुशी का आवरण अपने चेहरे पर ओढ़ना होगा।


एक नौकरानी लंबे लैम्प को जलाती है। उसने मेज पर एक सफेद चादर बिछाई है। इसाबेल इस लंबे खाने के कमरे के हर कोण को निहार रही हैं । पुराने फर्नीचर के बाद भी कमरा समृद्धि की अनुभूति दे रहा है। सिर्फ गोल मेज पर पङती हल्की रोशनी, बहुत सुंदर प्रतीत हो रही है। मेज पर चमकती सफेद चादर उसके भारी किनारे लगभग कार्पेट को छू ही रहे हैं ।क्रीम और पीले रंग पर बहुत लाल और गहरे नीले रंग के सुंदर डिजाइन का चीनी कार्पेट कमरे की पारंपरिक खूबसूरती को बढ़ा रहा था। लंबे और घंटी के आकार के कप और साथ में एक बढ़िया चायदानी। इसाबेल को यह सब देखकर संतुष्टि हुई।


उसका दिल धङक रहा है, वह बैचेनी में खिङकी के पर्दे हटाकर बाहर देखना चाहती है, देवदार के वृक्षों के पार अंधेरे में कुछ भी नहीं दिख सकता है। बारिश की छींटे खिङकी के सरियों से टकरा रही है। वह सोचती है, “क्यों बैचेन हूँ ? ओह! इन दो आदमियों के कारण! ये दोनों आदमी अभी तक क्यों नहीं आए हैं?”


माॅरिस को तो आ जाना चाहिए था। बैचेनी से वह खङी होती है और दर्पण के सामने अपनी छवि को देख पल भर के लिए वहीं ठिठक जाती है। ऐसा लगा जैसे यह छवि उसकी अपनी पुरानी मित्र की है।


उसका अंडाकार चेहरा शांत था, बड़ी बड़ी आँखों में गहरी चमक थी। तीखी नाक और लंबी गर्दन से कंधे तक एक सीधी रेखा उसकी खूबसूरती को बढ़ा रही थी।मातृत्व की गरिमा उसे गर्वान्वित रूप प्रदान कर रही थी। उसके चेहरे पर एक मुस्कान बिखरी पर आँखों में उदासी की झलक थी। जैसे वह मोनालिसा का चित्र देख रही हो।

वह एक धैर्यवान और दृढ़ निश्चयी महिला की तरह से आगे बढ़ी और हाॅल से होते हुए दरवाजे तक आई। दरवाजे से बाहर ही खेतों का अहाता था।

बाहर कदम रखते ही उसे दुग्धशाला की तीव्र गंध आई। इस गंध के साथ चमड़े और खेतों की उपज उसके साथ मिट्टी की महक भी महसूस की जा सकती थी। वह खेतीहरों के घरों तक पहुंची, जहाँ एक बङी मेज के चारों तरफ बैठे हुए खेतीहर स्त्री-पुरुष , लङके- लड़कियाँ अपने-अपने चाय के कप हाथ में लिए कुछ खा- पी रहे थे।

श्रीमती वर्नहम्स एक बङी चाय की केतली लिए खङी थीं। उन्होंने तुरंत तो इसाबेल को नहीं देखा था, पर जैसे ही देखा तो बोली, ” मैडम, आप! आइए अंदर आइए।” और शीघ्रता से एक कुर्सी उनकी ओर बढ़ा दी।


इसाबेल ने झिझकते हुए कहा, ” नहीं , मैं अंदर नहीं आ रही हूँ । आपको इस समय परेशान नहीं करना चाहती, पर क्या किसी ने माॅरिस को देखा? वह अभी तक घर नहीं आया है।”


” आप उनके लिए परेशान हो रही हैं ? अभी तो नहीं देखा।”
तभी मेज के दूसरी तरफ बैठे एक व्यक्ति की आवाज़ आई, ‘उन्हें ऊपर अश्वशाला में होना चाहिए ।’


श्रीमती वर्नहम्स बोली,” आप उन्हें बुलाना चाहती हैं?” वहां बैठे एक लङके को उठाते हुए बोली, ” यह उनके पास चला जाएगा।”
” नहीं , आप लोग परेशान न हो, मैं स्वयं जाती हूँ ।”
” पर इस खराब मौसम में आप परेशान न हों , यह लङका चला जाएगा ।” श्रीमती वर्नहम्स फिर बोली। वह लङका खङा होने लगा,
पर इस बार दृढ़ता से मना करते हुए इसाबेल ने कहा, ” नहीं, भोजन के बीच में इसे परेशान न करें ।”


इसाबेल ने पूछा,” घोङागाङी को आने में देर हो गई न !”
थोङी दूर पर लगी एक दीवार घङी को देखते हुए श्रीमती वर्नहम्स बोली,” नहीं, संभवतः 20-25 मिनट में पहुंच जाएगी । मौसम भी तो ठीक नहीं है, तो समय लग सकता है।”
” हां, ऐसे समय अंधेरा जल्दी हो जाता है।” यह कहते हुए अपने जूते ठीक से पहनते हुए और शाॅल को लपेट कर, पुरूषों के जैसा एक टोपा पहनकर इसाबेल अश्वशाला की ओर चल दी।

क्रमशः